बांध, बैराज और जलाशय

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महिपाल सिंह नेगी की पुस्तक ‘टिहरी की जलसमाधि’ का लोकार्पण आमंत्रण
महिपाल नेगी की किताब ‘टिहरी की जलसमाधि’ कुछ पल उन डूब चुकी गलियों और मोहल्लों के बीच टहलने सरीखा है। जहां कभी हमने जिंदगी के हसीन वक्त गुजारे। गजब का रिसर्च वर्क और महत्वपूर्ण दस्तावेजों से भरी ये किताब भर नहीं बल्कि पुरानी टिहरी से नई पीढ़ी को मुखातिब कराता एक संग्रहालय भी है।
Posted on 28 Jul, 2023 02:03 PM

पत्रकार एवं लेखक महीपालसिंह नेगी की पुस्तक ‘टिहरी की जलसमाधि, एक दस्तावेज' के लोकार्पण समारोह में आप सादर आमंत्रित हैं। लोकार्पण समारोह में मुख्य अतिथि कुलपति स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय डॉ. राजेन्द्र डोभाल होंगे। विशिष्ट अतिथि के तौर पर पूर्व आई.ए.एस., तिब्बतोलॉजिस्ट: श्री एस. एस.

टिहरी की जलसमाधि की प्रतिकात्मक फोटो
जलवायु अनुकूल वर्षा आधारित कृषि नीतियां
भारत जैसे देश में जलवायु परिवर्तन एक बहुत बड़ी समस्या है, विशेषकर कृषक समुदायों के लिए मानसून पर अधिक आश्रित होने एवं दक्षिण-पश्चिम मानसून के  असामान्य व्यवहार के कारण वर्षा आधारित कृषि पर इसका प्रभाव सबसे अधिक है।

Posted on 05 Jul, 2023 01:49 PM

भारत जैसे देश में जलवायु परिवर्तन एक बहुत बड़ी समस्या है, विशेषकर कृषक समुदायों के लिए मानसून पर अधिक आश्रित होने एवं दक्षिण-पश्चिम मानसून के  असामान्य व्यवहार के कारण वर्षा आधारित कृषि पर इसका प्रभाव सबसे अधिक है। वर्षा के वितरण में अधिक अंतर होने अंतर मौसमी विविधता एवं अत्यधिक तापमान ऐसे कारण हैं, जिनसे फसलों को नुकसान होता है। मानसून के आरंभ में देरी या लंबा शुष्क दौर एवं जल्दी मानसून का लौट

जलवायु अनुकूल वर्षा आधारित कृषि,फोटो क्रेडिट-IWP flicker
विस्थापन व युद्ध से बचाव हेतु विश्वशांति जलयात्रा : चीन
भारत अपनी प्रकृति रक्षा की आस्था से शांति कायम करने की दिशा पकड़ सकता है। लेकिन वर्तमान में इस दिशा में आगे बढ़ने की संभावना नहीं है। क्योंकि जिस अच्छे संस्कार हेतु हम दुनिया में जाने जाते थे, उन्हें अब अपना नहीं रहे हैं। चीन अपनी पूंजी बढ़ाने वाला देश व दुनिया का नेता बनना चाहता है। इसलिए यहां का भौतिक विकास बहुत तेजी से बढ़ा है। इससे यहां का प्राकृतिक विनाश बहुत हुआ है। परिणामस्वरूप इसी देश से कोविड-19 महामारी फैलनी शुरू हुई है। यहीं से वर्ष 2002 में भी ऐसे ही वायरस ने कनाडा, अमेरिका आदि देशों में कहर मचाया था।
चीन अतिक्रमणकारी राष्ट्र है। अफ्रीका-मध्य-पश्चिम-एशिया के बहुत से देशों के भू-जल भंडारों पर जल समझौता के तहत या लीज लेकर अपने जल बाजार हेतु कब्जा कर रहा है। इस देश ने भविष्य में जल व्यापार की नीति बनाकर, जल को तेल और सोने की तरह पूंजी मानकर सुरक्षित-संरक्षित कर लिया है।
ब्रह्मपुत्र नदी
भारत में आने वाली ब्रह्मपुत्र नदी की कई सहायक एवं उप-नदियों पर बांध बनाकर जल के बड़े भंडार बना लिए हैं। इन भंडारों को युद्ध और व्यापार व उद्योगों में काम लेने का पूरा मन बना लिया है। भारत के लिए ये हाईड्रोजन बम की तरह उपयोग किये जा सकते हैं।
विकास और पूंजी का लालची राष्ट्र दुनिया का सामरिक, व्यापारिक, आर्थिक सभी रूप में अगुवा बनने की चाह रखता है। इसीलिए वायरस की महामारी पैदा कर रहा है। यह विकास मॉडल अच्छा और टिकाऊ नहीं है। फिर भी भारत जैसे विकासशील देश विकसित बनने हेतु चीन विकास, मॉडल को ही सर्वश्रेष्ठ मानते हैं।
खैर मैंने भी भारत से अपनी यात्रा अपने पड़ोसी देश चीन से ही आरंभ की। कोविड-19 के कारण शांति केवल ऊपर से दिखाई देती है। यह एक विशेष महामारी का भय है। जीने की चाह हेतु जलवायु को स्वस्थ रखना जब समझ आयेगा, तभी से ग्रस्त इंसान भी लड़ने की तैयारी कर लेगा। यही क्षण “मरता सब कुछ करता” बना देता है। यही शोषित और शोषक के बीच युद्ध करवाता है। तीसरा विश्वयुद्ध इसीलिए शुरू होगा। इससे बचने की पहल भारत ने ही शुरू की है। यह विश्वयुद्ध अभी तक के युद्धों से बिल्कुल भिन्‍न है। इसलिए इसे रोकने हेतु छोटी-छोटी पहल करने की जरूरत है।
मैं, 9 अप्रैल 2015 को ही डॉ. एसएन सुब्बाराव तथा देश भर के गांधीवादी और विविध सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ गांधी शांति प्रतिष्ठान में विश्व शांति के लिए जल हेतु सद्भावना बनाने के विषय पर बातचीत करके शंघाई-चीन हेतु प्रस्थान किया।
अगले दिन प्रातः 8 बजे शंघाई पहुंचे। यहां साउथ-नॉर्थ नदी के अनुभवों को जानने के लिए कुछ लोगों से बातचीत करके शंघाई शहर में घूमे। इस शहर को देखकर लगा कि, यहां किसी को प्रकृति की चिंता नहीं है। साझे भविष्य को लेकर लोगों में चिन्तन दिखाई नहीं दिया। सिर्फ व सिर्फ पूंजी के लिए काम होता है। लाभ की विश्व प्रतियोगिता में सबसे आगे निकलकर विश्व नेता बनने का ही इनका लक्ष्य है।
अब सब जगह साम्यवादी और पूंजीवादी ही दिखाई देते हैं। समाजवाद अर्थात साझी सुरक्षा, जिसे भारतीय भाषा में शुभ कहते हैं; पहले उसके लिए ही काम करते थे।
पहले सभी की भलाई हेतु विचारते और काम करते थे, अब इनके जीवन में साझी सुरक्षा की चिंता नहीं है। अब केवल लाभ प्रतियोगिता के जाल में फंसे हुए हैं।
लाभ कमाने में चीन दुनिया में सबसे आगे निकलना चाहता है। अब चीन पूरी दुनिया के भू-जल भंडार खरीद रहा है। जमीन खरीद रहा है। यह भौतिक जगत में रावण की तरह चीन को "सोने की लंका” बनाने के स्वप्न देख रहा है। कोरोना वायरस ने इसकी पोल खोल दी है। अब सारी दुनिया इसके रावणीय काम के लिए थू-थू कर रही है।
एयरपोर्ट पर उतरते हुए लॉन व पार्कों में केवल सरसों के फूल दिखाई दिये। जब हमने यह पूछा कि, यहां इसको ही क्यों पैदा करते हैं, तो कहा कि ये देखने में सुन्दर लगते हैं और इसके तेल का भी उपयोग करते हैं। यहां हर वस्तु के उत्पादन में केवल लाभ की ही गणना करते हैं। इसलिए यहां सभी काम केवल लाभ के लिए होते हैं। मैंने यह बात कई लोगों से सुनी।
यहां का विकास दुनिया के दूसरे शहरों के विकास से थोड़ा अलग है। यहां के नदी-नालों में सफाई दिखती है! लेकिन वातावरण में सांस लेने में कठिनाई हो रही थी। ये प्राकृतिक सौंदर्य में भी केवल कमाई ही देखते हैं। यहां के औद्योगिक क्षेत्रों में हरियाली दिखाई देती है। देखने में भोजन और पीने में पानी स्वादिष्ट ही लगा। यहां की महिलाएं अंग्रेजी में बात करती हैं और पुरुषों की अपेक्षा थोड़ी ज्यादा घमंडी होती हैं, यहां के पुरुष अपेक्षाकृत विनम्र हैं।
आज का पूरा दिन शंघाई के होटल में मैनेजर, कार्यकर्ताओं व शहर बाजार व विकास में लगे इंजीनियरों के साथ बातचीत करने में ही बीता। यदि संक्षेप में कहें तो यहां प्रकृति के प्रति कोई आस्था या पर्यावरण के रक्षण का विचार दिखाई नहीं दिया। ये दुनिया में जलवायु परिवर्तन संकट पैदा करके स्वयं भी नहीं बचेंगे। इन्होंने कोविड-19 में भी दुनिया के अर्थतंत्र को बिगाड़ने वाली लॉकडाउन की दिखावटी चाल चली है।
Posted on 24 Jan, 2023 08:41 AM

भारत अपनी प्रकृति रक्षा की आस्था से शांति कायम करने की दिशा पकड़ सकता है। लेकिन वर्तमान में इस दिशा में आगे बढ़ने की संभावना नहीं है। क्योंकि जिस अच्छे संस्कार हेतु हम दुनिया में जाने जाते थे, उन्हें अब अपना नहीं रहे हैं। चीन अपनी पूंजी बढ़ाने वाला देश व दुनिया का नेता बनना चाहता है। इसलिए यहां का भौतिक विकास बहुत तेजी से बढ़ा है। इससे यहां का प्राकृतिक विनाश बहुत हुआ है। परिणामस्वरूप इसी देश स

राजेन्द्र सिंह की स्वाल नदी यात्रा
हिमालय को तबाह करती परियोजनाएं
Posted on 16 Oct, 2010 09:37 AM आज दुनिया-भर में जलवायु-परिवर्तन के कारण संकट के बादल मंडरा रहे हैं, लेकिन अन्य क्षेत्रों के मुकाबले हिमालय के पर्वतीय इलाकों में बढ़ते तापमान के असर साफ नजर आ रहे हैं।

एशिया और हिमालय की महानदियों- सिंधु, गंगा और नूं-के तेजी से पिघलते ग्लेशियर इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। जलवायु-परिवर्तन से ग्लेशियर पिघलने, नदी का जलस्तर बढ़ने, बाढ़ आने और बादल फटने जैसी घटनाएं बढ़ जाएंगी। जैसे-जैसे पानी और नदियों की स्थिति में परिवर्तन आएगा, जलवायु और मौसम चक्र का पूर्वानुमान लगाना कठिन हो जाएगा।

दिसम्बर 2008 में छपी अपनी रपट
तबाही की योजनाएँ
विकास की सोचिए
Posted on 08 Oct, 2010 09:20 AM

अभिमत

इस समय उत्तराखंड कुछ जोगियों और संन्यासियों से त्रस्त दिख रहा है, जबकि इन्हें मनुष्यों के त्रास निवारण के भौतिक उपायों के बारे में सोचना चाहिए। जोगी और संन्यासी शब्द में अर्थ का बहुत बड़ा अंतर है। जोगी का संबंध ‘योग’ से है, जबकि संन्यासी का संबंध संसार से असंपृक्तता और वैराग्य से। लेकिन दोनों के आजकल घोर राजनीतिकरण और संसार से अधिकतम संलिप्तता वाले संबंध उजागर हो रहे हैं। हिंदू धर्म में संन्यासी के जो आचरण और कर्तव्य निर्धारित किए गए हैं, उनके अनुसार उन्हें गृहस्थों के बीच और निकट निवास नहीं करना चाहिए। एकांतवास और कुटिया बनाकर रहना उनके आचरण का प्रमुख हिस्सा है।
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पंचेश्वर बाँध: झेलनी ही होगी एक और बड़े विस्थापन की त्रासदी
Posted on 07 Sep, 2010 11:17 AM
सैकड़ों बाँधों से लगभग पूरा नक्शा ही काला हो गया था। बाँधों से उभरी यह कालिख प्रतीकात्मक रूप में तथाकथित ऊर्जा प्रदेश के भविष्य को भी रेखांकित करती है।
विकास ढांचा बदलने से नदियों की मुक्ति
Posted on 29 Aug, 2010 08:16 AM
गंगा की मुक्ति के लिए काम करने वाले एक बार पुन: उत्साहित हैं। आखिर केन्द्र सरकार के मंत्रिमण्डलीय समूह ने लोहारी नागपाला जल विद्युत परियोजना पर काम रोक दिया है।
भ्रष्टाचार का बांध
Posted on 25 Aug, 2010 12:36 PM ‘‘सबसे पहले यह समझना होगा कि भ्रष्टाचार का कारण न व्यक्ति है, न विकास है। अगर विकास के ढांचे में भ्रष्टाचार का बढ़ना अनिवार्य है तो वह फिर विकास ही नहीं है।‘‘ किशन पटनायक

सरदार सरोवर बांध के विस्थापितों को दिए गए विशेष पुनर्वास पैकेज के अन्तर्गत हुए फर्जी रजिस्ट्री कांड की जांच कर रहे न्यायमूर्ति (अवकाशप्राप्त) एस.एस.झा आयोग के सम्मुख गवाही के लिए आ रहे सैकड़ों दलितों और आदिवासियों के साथ हुई धोखाधड़ी के प्रमाण देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने स्वीकार किया है कि उसने तकरीबन 2902 व्यक्तियों को यह पैकेज स्वीकृत किया है। इसमें से 1486 व्यक्तियों को एक किश्त का ही भुगतान हुआ है अर्थात उन्होंने अभी तक जमीन नहीं खरीदी है। इसके बावजूद रजिस्ट्रियों की संख्या 3800 का आंकड़ा पार कर चुकी है। गौरतलब है कि इस विशेष
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