1-2 मार्च, 2020, गांधी भवन, भोपाल
नर्मदा, गंगा, कोसी, पेरियार व अन्य नदी घाटियों पर विचार मंथन
अब खतरा मात्र नदी नही, नदी घाटियों पर सामने दिखता है। नदी घाटियों का व्यवसायिकरण हो रहा है। बांधों की बात तो पीछे छोड़े, पूरी नदी घाटी, नदी जोड़ परियोजना से प्रभावित होने की बात है; जिसका न केवल मानव बल्कि पूरी प्रकृति पर स्थानीय देशी और वैश्विक प्रभाव भी हो रहा है। विकास और लोकहित की आड में नदी पर बनाए जा रहे बांधों के वास्तविक उद्देश्यों से तो पर्दा पूरी तरह हट चुका है। सिंचाई, पेयजल आपूर्ति और विद्युत उत्पादन के जिन लक्ष्यों को प्रचारित किया जाता है, वह काफी हदतक दिवास्वप्न साबित हुए हैं। बांधों पर बनी विश्व बांध आयोग की रिपोर्ट में भी सुझाई गई प्रक्रिया या पूर्वशर्तों पर भारत के शासनकर्ता और समाज में भी जरुरी है गंभीर और गहरी बहस और अमल!
नर्मदा व टिहरी बांध के अनुभव व खुलासे सामने है। नर्मदा का पानी पीने और सिंचाई के बदले उद्योगपतियों को बेचा जा रहा है।
खासकर हिमालयी राज्यों सहित सब नदियों को बांधो में बांधा जा रहा है। दूसरी तरफ बांधों के कारण बाढ़े आ रही है। सभी बांधो की पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्टों में आंखों में धूल झोकने जैसी कमियों के बावजूद पर्यावरणीय स्वीकृतियां दी जा रही है।
दूसरी तरफ सिक्किम, आसाम से लेकर केरल तक बांधो के जुड़े सवालों पर आंदोलन चल रहे हैं। पर स्थिति यह भी है कि आज दूरस्थ इलाकों में जहां रिलायंस-लैंको-लार्सन टुब्रो जैसी कंपनियां बांध बना रही हैं वहां लोग बांध से भविष्य में होने वाले सांस्कृतिक, मानवीय, जानवरों, पारिस्थितिकी, पर्यावरण आदि पर पड़ने वाले दूरगामी प्रभावों से अनभिज्ञ हैं और संघर्ष के तरीकों, अपने अधिकारों, नियम-कानूनों आदि से संबंधी जनजागरण जरुरी है।
यह भी सच्चाई है कि सरकारें अपने ही बनाये कानूनों व नीतियों का पालन नही कर रही है। पुनर्वास पर हो या पर्यावरण संरक्षण किसी के लिए भी दिये गये अदालती आदेशो का पालन नही हो रहा है।
विकास की जो अभी तक अवधारणा रही है उसका आकलन करना समय पर बहुत जरुरी है हमने इतने सालों तक नदियों को मात्र मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति का साधन माना इसके परिणाम हमारे सामने हैं। प्रायः सभी नदियां गंदगी को ढोने से प्रदूषित हो गई हैं। बांध जैसी परियोजनाओं से भी क्या लाभ हुआ है? किसको लाभ पहुंचा है? उसकी भी निष्पक्ष जांच जरुरी है।
इन सभी परीक्षाओं के घेरे में, आज की स्थिति में भी पूरी नदी घाटी का नियोजन कैसा हो? इसी पर आयोजित है नदी घाटी विचार मंच!
इस कार्यक्रम में हर नदी घाटी से 2 या 5 प्रतिनिधि जो नदी घाटी की जिंदगी, अस्मिता, अधिकार और प्रकृति संस्कृति के रिश्तों पर बात रख सकेंगें, अपेक्षित हैं। देश के कई विशेषज्ञ, अध्ययनकर्ता और वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता भी सम्मिलित होंगे। कार्यक्रम में हर नदी घाटी से दो या पांच प्रतिनिधि जो नदी घाटी की जिंदगी अस्मिता अधिकार और प्रकृति संस्कृति की रिश्तों पर बात रख सकेंगे अपेक्षित हैं। देश के कई विशेषज्ञ, अध्ययनकर्ता और वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता भी सम्मलित होंगे। कार्यक्रम में नर्मदा की घाटी के ज्यादा लोग पहुंचेंगे और नर्मदा आंदोलन के संघर्ष व निर्माण के अनुभवों का आदान प्रदान करेंगें। इस मंच से ना केवल एक संकल्प होगा बल्कि ठोस रणनीतिक कार्यक्रम आंका जाएगा।
पृथ्वी पर हमारा जीवन बचाने का जबकि बहुत ही कम समय बचा है। समय रहते इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो भारत के किसान एवं वंचित लोगों की जिंदगी तबाह एवं बर्बाद होने से रोका नहीं जा सकता है। इन परिस्थितियों में आवश्यक है कि हम सब साथ आये, सांझे संघर्ष और निर्माण की रणनीति बनायें।
आप अपने साथ अपने बांधो के अनुभवों/प्रभावों पर एक प्रद र्शनियां/संघर्षों से संबधिंत साहित्य, बैनर आदि जरुर लेकर आये।
कृपया आपके आने की खबर, सफरनामा सहभागी व्यक्तियों के नाम, उम्र, संबंधित विशेष कार्य/ अनुभव इत्यादि के साथ त्वरित में भेजें। 30 जनवरी से पहले भेजने से नियोजन में सहूलियत होगी।
आप सादर आमंत्रित हैं।
मेधा पाटकर -9423965153
राजकुमार सिन्हा -9424385139
राकेश दीवान -9424467604
महेन्द्र यादव -9973936658
विमल भाई -9718479517
जन आंदोलनो का राष्ट्रीय समन्वय एवं भोपाल प्रगतिशील नागरिक समूह, नर्मदा बचाओं आंदोलन, माटू जन संगठन, कोसी नव-निमार्णमंच, बरगी बांध विस्थापित संघ, चुटका परमाणु परियोजना विरोधी संघर्ष समिति एवं भोपाल के साथी संगठन
दो दिवसीय कार्यक्रम
1 मार्च, 2020
- 9.00 पंजीकरण
- 9.45 प्रस्तावना
- 10.00 उद्घाटन- विषेश अतिथि द्वारा
- 10.30 नर्मदा नदी घाटी, गंगा व हिमालयी नदी घाटियों पर प्रस्तुति
- 1 से 2.00 भोजनावकाश
- 2 से 3.30 विभिन्न नदी घाटियों कोसी, गोदावरी, पेरियार पर प्रस्तुति
- 4.00 विभिन्न समूहों में चर्चा
1. जलनीति-बड़े बांध और विकल्पों को देखते हुये आगे की रणनीति।
2. भूमि अधिग्रहण कानून/पुनर्वास कानून व नीति के प्रभाव व आगे की रणनीति।
3. पर्यावरणीय कानूनो में बदलाव व असरों की हकीकत और आगे की दिशा।
4. बांधों के पर्यावरणीय सामाजिक, आर्थिक पहलूः प्रक्रिया व जनहस्तक्षेप। 5. नदी कछार के संसाधनः अधिकार, सुरक्षा, दोहन व विकास की दिशा
2 मार्च, 2020
- दूसरे दिनः- कार्यशाला (प्रत्येक संघर्षों से दो-तीन साथी व अन्य कोई
- 9.00 समूह चर्चाओं में सहमति से बनी रणनीति की प्रस्तुति
- 9.30 से 10.45 खुला सत्रः प्रत्येक नदी घाटी के प्रतिनिधि व अन्य सहकारी साथी 15 मिनट: चाय के लिये अन्तराल
- 11 से 2 बजे: रणनीति सत्र-कैसे संघर्षो मे साझीदार बने। सहयोग के तरीके सरकार पर कैसे दवाब लाये? आगे का कार्यक्रम।
- 2.30 / 3 बजे प्रैस वार्ता
जनआंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय राष्ट्रीय कार्यालय
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