अरण्या ईको, इंडियन सोशल रिस्पांसबिलिटी नेटवर्क और डिवाइन इंटरनेशनल फाउंडेशन की संयुक्त रूप से आयोजित कार्यक्रम ‘डायलॉग आन रीवर इंटर-लिंकिंग’ में कई वक्ताअों ने नदी जोड़ परियोजना और खासकर केन-बेतवा लिंक पर अपने-अपने विचार व्यक्त किये। कुछ वक्ताओं ने यह भी कहा कि नदी जोड़ परियोजना की जगह दूसरी कम खर्चीली और दीर्घावधि परिणाम वाली परियोजनाओं पर काम किया जा सकता है। केन्द्र सरकार ने फिर एक बार केन-बेतवा लिंक परियोजना को किसी भी कीमत पर पूरा करने की प्रतिबद्धता दुहराई और आश्वासन दिया कि इससे वन्यजीवों और पर्यावरण को बहुत नुकसान नहीं होगा।
06 अगस्त 2016 शनिवार को अरण्या ईको, इंडियन सोशल रिस्पांसबिलिटी नेटवर्क और डिवाइन इंटरनेशनल फाउंडेशन की संयुक्त रूप से आयोजित कार्यक्रम ‘डायलॉग आन रीवर इंटर-लिंकिंग’ में कई वक्ताअों ने नदी जोड़ परियोजना और खासकर केन-बेतवा लिंक पर अपने-अपने विचार व्यक्त किये। कुछ वक्ताओं ने यह भी कहा कि नदी जोड़ परियोजना की जगह दूसरी कम खर्चीली और दीर्घावधि परिणाम वाली परियोजनाओं पर काम किया जा सकता है।
इन सब आशंकाओं को केन्द्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती दरकिनार करते हुए दो टूक शब्दों में सन्देश दे दिया कि केन-बेतवा लिंक परियोजना को ठंडे बस्ते में डालने का सवाल ही पैदा नहीं होता है और इसे किसी भी सूरत में पूरी की जाएगी।
तबीयत खराब होने के बावजूद कार्यक्रम में पहुँची उमा भारती ने साफ और स्पष्ट शब्दों में कह दिया, ‘केन-बेतवा रीवर लिंक बनेगा और इस परियोजना के शुरू होने के 7 साल के भीतर काम पूरा हो जाएगा।’
इण्डिया वाटर पोर्टल (हिन्दी) के केसर सिंह ने कार्यक्रम में केन-बेतवा लिंक से होने वाले नुकसान की ओर इशारा करते हुए कहा कि इससे गिद्धों और बाघों का आशियाना उजड़ जाएगा और पर्यावरण को भी नुकसान होगा। इस पर उमा भारती ने कहा, ‘हम गिद्ध, बाघ और वनों को बचाएँगे। जितना भूखण्ड डूबेगा उसकी तुलना में 8 हजार हेक्टेयर जमीन मध्य प्रदेश सरकार दे रही है। यह मॉडल प्रोजेक्ट होगा।’
केसर सिंह ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि केन-बेतवा लिंक में खर्च होने वाली राशि ठेकेदारों, इंजीनियरों की जेब में जाएगी और किसानों को कोई फायदा नहीं मिलेगा। इसके उल्टे तालाबों के निर्माण से पैसा सीधे किसानों के पास जाएगा। इस काम में गदहों का इस्तेमाल भी किया जा सकता है। तालाब बनने से इलाके में ईको-सिस्टम भी बनने लगेगा जिससे पर्यावरण को फायदा मिलेगा।
जवाहर कौल ने भी केसर सिंह के विचारों का समर्थन करते हुए कहा कि इतनी बड़ी परियोजनाओं को लेकर जल्दबाजी नहीं करना चाहिए। छोटी-छोटी संरचनाओं पर जो काम किया गया है उसे आगे बढ़ाना चाहिए और देखना चाहिए कि ये प्रयोग कितने सफल हुए हैं।
वरिष्ठ पत्रकार पंकज चतुर्वेदी ने भी ऐसे ही विचार व्यक्त किये। पंकज चतुर्वेदी ने कहा कि वर्षाजल का ठीक ढंग से संरक्षण करने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘हमें बड़ी परियोजना नहीं चाहिए बल्कि हमें तालाबों को संरक्षित करना चाहिए।’
कानपुर आईआईटी के विनोद तारे ने कहा, ‘हमें नदी जोड़ परियोजना का काम जमीनी स्तर से शुरू करना होगा। उन्होंने कहा कि राज्य सरकारों की जो शंकाएँ हैं, उन्हें गम्भीरता से लेकर इस पर विचार करना चाहिए।’
इन आशंकाओं पर उमा भारती ने कहा, ‘तालाबों की मरम्मत की जहाँ तक बात है तो 99 प्रोजेक्ट हाथ में लिये गए हैं जिनमें 2017 में 23 प्रोजेक्ट पूरे करेंगे। इन प्रोजेक्टों में तालाबों की मरम्मत और संरक्षण भी शामिल होगा। सिंचाई स्कीमों को भी शामिल कर रहे हैं।’
उमा भारती ने कहा, ‘इस परियोजना से 6 लाख हेक्टेयर खेतों की सिंचाई होगी। इस परियोजना से महज 7 हजार लोग प्रभावित होंगे जबकि 70 लाख लोगों को फायदा होगा। मुझे पेड़ों से भी प्यार है, गिद्धों से भी प्यार है। हम सारी बातों को ध्यान में रखकर चल रहे हैं। अगर पानी नहीं होगा तो जानवरों को भी दिक्कत होगी। हम वो व्यवस्था कर रहे हैं कि गिद्धों को मांस मिल जाये, जानवरों को पानी मिल जाये और गरीबों को रोटी मिल जाये।’
उन्होंने कहा कि बुन्देलखण्ड के मजदूर यहाँ जिस प्रकार की स्थिति में हैं वह मेरे और मेरे जैसे लोगों के लिये डूब मरने की बात है। केन बेतवा प्रोजेक्ट से बुन्देलखण्ड के लोगों को फायदा मिलेगा।
उधर, एनडब्ल्यूडीए के डायरेक्टर जनरल मसूद हुसैन ने नदी जोड़ परियोजना के पक्ष में दलील देते हुए कहा, ‘कुछ बेसिन में पानी की बहुलता है जबकि कुछ बेसिनों में पानी की घोर किल्लत रहती है। इस समस्या के समाधान के लिये एक बेसिन से दूसरे बेसिन में पानी पहुँचाना आवश्यक है। नदी जोड़ परियोजना कोई नई परियोजना नहीं है बल्कि वर्ष 1850 में भी इसकी परिकल्पना की गई थी। हुसैन ने नदी जोड़ परियोजना के सम्बन्ध में विस्तार से बताया और कहा कि इसके अन्तर्गत 30 प्रोजेक्ट्स पर काम होगा।’
उन्होंने कहा, ‘इससे अतिरिक्त 35 मिलियन हेक्टेयर भूखण्ड की सिचांई होगी और 34 हजार मेगावाट पनबिजली का उत्पादन होगा।’ पर्यावरण को होने वाले नुकसान की आशंका पर उन्होंने कहा, ‘ज्यादातर शंकाएँ अवैज्ञानिक तर्कों के आधार पर व्यक्त की जा रही हैं लेकिन यह गौर करना चाहिए कि सरकार कोई भी प्रोजेक्ट लाने से पहले उसके हर पहलुओं पर गम्भीरता से चर्चा करती है।’
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी के शरद कुमार जैन ने कहा, ‘हमारे देश में पूरे विश्व का महज 4 प्रतिशत पानी उपलब्ध है लेकिन हमारे देश की आबादी 17 प्रतिशत है, ऐसे में पानी का प्रबन्धन हमारे लिये बड़ी चुनौती है।’ उन्होंने कहा कि पानी के प्रबन्धन में इस बात का खयाल रखना होगा कि पानी को उस जगह पहुँचाने की जरूरत है जहाँ पानी की जरूरत है। जैन ने कहा, ‘नदी जोड़ परियोजना देश के लिये जरूरी है लेकिन हमें यह ध्यान रखना होगा कि यह रामबाण नहीं है। यह निश्चित तौर पर समस्या का समाधान करेगा लेकिन हमें वैकल्पिक उपायों मसलन रेन वाटर हार्वेस्टिंग, वाटर रिसाइक्लिंग, वाटरशेड पर भी विचार करना होगा।’
हाइड्रोलॉजिस्ट ए.बी. पांड्या ने भी नदी जोड़ परियोजना की वकालत की। उन्होंने कहा कि हमें साल भर पानी मिलता रहे, यह परियोजना इसी को ध्यान में रखकर लाई जा रही है। तालाबों के लिये अधिक जमीन की जरूरत होगी और यह जमीन किसानों से ही ली जाएगी।
वैसे केन्द्र सरकार चाहे जितनी भी प्रतिबद्धता जताये लेकिन नदी जोड़ परियोजना की राह इतनी आसान नहीं होगी। मसूद हुसैन की बातों से तो कम-से-कम ऐसा ही लगा।
पानी राज्य का मुद्दा है इसलिये इसमें राज्य सरकारों की बड़ी भूमिका होगी। कोई भी राज्य सरकार अपने क्षेत्र का अतिरिक्त पानी दूसरे राज्य को देने को तैयार नहीं है क्योंकि सरकार को लगता है कि इससे उसके राज्य को नुकसान होगा। केन्द्र सरकार नदी जोड़ परियोजना के लिये कई राज्य सरकारों के साथ बैठक कर चुकी है लेकिन राज्य सरकारों की तरफ से सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली है। नदी जोड़ परियोजना के तहत जिन लिंकिंग प्रोजेक्ट को प्राथमिकता दी गई है उनकी डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) ही बनकर तैयार हुई है, बाकी के काम ठप हैं।
गैर-भाजपा शासित राज्य सरकारों के लिये तो यह काफी हद तक राजनीतिक मुद्दा है जिससे मामले में पेचीदगी और बढ़ेगी।
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Post By: RuralWater