(निमंत्रण)
प्रकृति ने मानव के अस्तित्व को सतत् बनाये रखने के लिये नाना प्रकार के प्राकृतिक संसाधनों को जन्म दिया। इनमें प्रमुख हैं नदियाँ। नदियाँ सदियों से मानव सभ्यता और संस्कृति की साक्षी हैं तथा इनके किनारों पर भारत के ऋषि मुनियों ने कई धर्मग्रन्थों की रचना की जिनमें नदियों के संरक्षण ओर प्रबंधन के संबंध में वर्तमान स्थिति का सामना करने के लिये अपना दूरदर्शिता के आधार पर संकेत दिये। भारतीय सभ्यता और संस्कृति के सदियों प्राचीन इतिहास की साक्षी नदियों ने कई सभ्यता और संस्कृति के सृजन और विध्वंस की अत्यंत करीब से देखा, जिसे मानव ने माँ, माई, मैया के रूप में पूजा, जो संसार में एक विशिष्ट भाव है। इस भाव में नदियों के संरक्षण और प्रबन्धन की भावनाएँ अन्तर्निहित हैं, परन्तु अब मानव ने जीवन की भागम-भाग और अपने अस्तित्व को प्रदर्शित करने के लिये, प्राकृतिक संसाधनों को संजोने एवं उनके संरक्षण की नजरिये में परिवर्तन आया है और जिसके कारण उनके उपभोग का मानस ही रह गया है। नदियों के जल का आय-व्यय का लेखा-जोखा तो दूर अपने निहित स्वार्थ के कारण नदी का स्वास्थ्य को धीरे-धीरे क्षीण करता जा रहा है, लेकिन वह यह नहीं जानता कि वह अपने अस्तित्व को भी चुनौति दे रहा है। भारत की पवित्र नदियों में सरस्वती जहाँ एक ओर अपना अस्तित्व खो चुकी हैं, वहीं गंगा, जमुना और ब्रह्मपुत्र अपने अस्तित्व के लिये संघर्षरत् हैं। मानव नदियों के उपभोग के लिये तो सदैव तत्पर है, लेकिन उसके जल के लेखा जोखा, उसके स्वास्थ्य, संरक्षण, प्रबन्धन और गुणवत्ता व मात्रा के बारे में तनिक भी विचार न के बराबर करता है।
अन्तर्राष्ट्रीय नदी महोत्सव-२००८ में दुनिया के कोने-कोने से आए वैज्ञानिक व विषय विशेषज्ञों ने जल के भीतर मौजूद जीवन के सभी तथ्यों पर विचार मंथन किया और नर्मदा तवा संगम तट पर सैकडों विद्वानों के निष्कर्षों के बान्द्रभान घोषणा-पत्र अनुसरण में नर्मदा समग्र ने अपनी कार्ययोजना में ''हरियाली चुनरी योजना‘‘, जल शुद्धीकरण के लिए तांबे-चांदी के सिक्कों की घाटों पर उपलब्धता व नदी के घाटों की सफाई योजना का कि्रयान्वयन का संचालन हो रहा है।
नदी के बिना मानव जीवन व्यर्थ है। नदी का अपना अर्थशास्त्र है, उनका अपना सुर ताल, संगीत है, अपना रंग है, अपना इतिहास और समाज है। कई संस्कृति सभ्यता की जननी व लोक नृत्य, कला, परम्पराओं एवं उत्सवों की जन्मदात्री है, नदी के अलग अलग पक्षों पर कार्य करने वाले उनके बारे में चिन्तन-मनन करने वाले के लिये विश्व के दूसरा ''अन्तर्राष्ट्रीय नदी महोत्सव २०१० ‘‘ में नर्मदा-तवा के पवित्र संगम बान्द्राभान नर्मदापुरम् (होशंगाबाद) भोपाल म०प्र० में आयोजित किया जा रहा है।
तकनीकी सत्रों में चर्चा के केन्द्र बिन्दु
१. पानी ः- नदी में पानी की मात्रा नदी में पानी की गुणवत्ता नदी में प्रवाह को निरंतरता नदी जल के उपयोग के तौर तरीके- सिंचाई, पनबिजली, पेयजल, उद्योग आदि । नदी का जल गणित नदी बेसिन में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता ।
२. किनारे ः- नदी तटों की संरचना व भौमिकी नदी तटों पर कटाव व भू-क्षरण नदी कगारों का स्थिरीकरण घाटों की अवस्था और व्यवस्था । नदी तटों पर हरियाली का संरक्षण तथा विकास नदी तटों पर निवास करने वाले समाज की समस्याएँ
३. जंगल ः- नदी पर जंगलों का और जंगलों पर नदी का प्रभाव नदियों के जलग्रहण क्षेत्रों में वनों का संरक्षण प्रबंधन बांधों की भण्डारण क्षमता की क्षति रोकने में वनों की भूमिका प्रदूषित जल का शुद्धिकरण करने में वनों की भूमिका पानी के लिए वन प्रबंधन बाँध निर्माण में वनों का डुबान और क्षतिपूर्ति वनीकरण निजी क्षेत्र में वृक्षारोपण का विकास- अवरोध व समाधान वन उपज की सामाजिक आवश्यकताएँ व उत्पादन रन संरक्षण कानूनों की प्रभावशीलता
४. भूमि ः-
नदी तटों की संरचना व भौमिकी भूमि की उत्पादकता भूमि का क्षरण भू-उपयोग की समन्वित रणनीति
५. जन-जीवन ः- जन-जीवन के विविध पहलुओं और नदी का संबंध नदी तटीय क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियाँ और आजीविका
६. प्रदूषण ः- नदी और प्रदूषण के विविध आयाम - औद्योगिक, नगरीय जलमल, खेती आदि स्त्रोतों से प्रदूषण प्रदूषण के कारण नदियों के जल की घटती गुणवता नदी प्रदूषण का जलीय जन्तुओं पर प्रभाव नदी प्रदूषण का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव व इसकी आर्थिक हानियाँ नदी प्रदूषण के नियंत्रण में सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक नेतृत्व तथा प्रशासन की भूमिका । नदी प्रदूषण से संबंधित कानूनों का उचित क्रियान्वयन
७. संस्कृति ः- नदी और संस्कृति का अंर्तसंबंध लोक कला, लोक संगीत, साहित्य और नदी नदियों का पौराणिक, आध्यात्मिक पक्ष नदी परिक्रमा, तीर्थाटन नदी और साधु-सन्त, नदी तटीय समाज का विशिष्ट वर्ग संस्कृति और आजीविका, हस्तशिल्प आदि नदी और शिक्षा
८. कृषि ः- नदी और कृषि के अंर्तसंबंध, नदी प्रवाह, सिंचाई आदि । नदियों के किनारे व नदी बेड में खेती, डूब क्षेत्र में खेती खेती के कारण नदी का प्रदूषण और उसका नियंत्रण
९. नदी का अर्थशास्त्र ः- नदी अर्थशास्त्र का सिद्धान्त नदी बेड, नदी तट, और नदी तटीय ग्रामों का अर्थशास्त्र नदी और खनिज नदी और वन नदी और पर्यटन नदी और खेती नदी परिवहन नदी और कृषि
१०. नदी और जैव विविधता ः- नदी का जलीय संसार - वनस्पतिक विविधता जलीय जन्तु विविधता वन्य जैव विविधता कृषि क्षेत्र की जैव विविधता नदी की जैव विविधता पर आसन्न संकट जैव विविधता के आर्थिक दोहन व संरक्षण में तालमेल जैव विविधता संरक्षण की रणनीति
११. नदी और सरकार ः- नदी नीति नदी और सामाजिक आवश्यकताअें की पूर्ति- जल संसाधन प्रबंधन नदी से जुडी शासकीय संस्थाएँ/विभागों की भूमिका नदी और राजनीति/नदियों का अंतर्राष्ट्रीय बंटावारा नदी से जुडं कानून और उनका क्रियान्वयन
१२. नदी और स्वयंसेवी संस्थाएँ ः- नदी और स्वयंसेवी संस्थाएँ स्वयंसेवी संस्थाओं का योगदान- नीतिगत स्तर पर, क्रियान्वयन स्तर पर, परिणामों की समीक्षा स्तर पर नदी और समाज के हितों में सामंजस्य |
पंजीयन
द्वितीय अन्तर्राष्ट्रीय नदी महोत्सव में भाग लेने वाले इच्छुक प्रतिभागी साथी में दिये गये पंजीयन प्रपत्र को भरकर आयोजन रणनीति को अंतिम दिनांक के पूर्व भेजें। प्रतिभागी पंजीयन शुल्क निम्नानुसार रहेगा -
पंजीयन शुल्क
श्रेणी | शुल्क | शुल्क | |
१० जनवरी के पूर्व | १० जनवरी के बाद | ||
विदेशी | विकसित देश के प्रतिभागी | २५० $ | ३०० $ |
विकासशील देश के प्रतिभागी | २०० $ | २५० $ | |
विधार्थी | १०० $ | १५० $ | |
सहचर | ७५ $ | १०० $ | |
भारतीय | व्यक्तिगत | २००० रू. | २५०० रू. |
विद्यार्थी | १५०० रू. | २००० रू. | |
सहचर | १००० रू. | १५०० रू. | |
संस्था और संगठन | ३५०० रू. | ४००० रू. |
भुगतान नकद, बैंकर्स चैक/ड्राफ्ट, बैंक खाते में हस्तातंरित कर किया जा सकता है।
पजीयन शुक्ल में रहना, खाना व स्थानीय परिवहन शामिल रहेगा।
प्रतिभागियों की संख्या सीमित है। पंजीयन के समस्त अधिकार आयोजन समिति के पास रहेंगे। उनका अतिमं निर्णय सर्वमान्य होगा।
सारांश भेजने की अंतिम तिथि ३० नवम्बर २००९
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संपर्क
अनिल माधव दवे
Senior MIG -2, Ankur Colony, Near Parul Hospital, Shivaji NagarBhopal
Madhya PradeshINDIA462016
narmadasamagra@gmail.com narmadasamagra@gmail.com
91 755 2553283 91 755 2421210
Mobile – 091 9425004468 and 091 9425004533
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