विश्व जल दशक: 2005-2015
संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2005 से 2015 तक की अवधि को ‘अन्तरराष्ट्रीय जल दशक’ घोषित किया है और अपने ‘सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्यों’ में सम्मिलित करते हुए स्वच्छ पेयजल और बुनियादी साफ-सफाई प्राप्त करने के अधिकार को ‘मानवाधिकार’ की मान्यता प्रदान की है। इसी परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत आलेख में विश्वव्यापी जल संकट की विशद विवेचना की गई है।’
हम अपने चारों ओर नजर उठाकर देखें तो पाएँगे - पोखरों, तालाबों, झीलों, नदियों और सागरों में पानी-ही-पानी है। हमें अपने चारों ओर अनन्त जलराशि दिखाई पड़ती है। फिर भी कितनी विचित्र बात है कि यह सारा पानी धरती के हरेक आदमी की जरूरत को पूरा करने के लिये नाकाफी है।
वास्तविकता यह है कि धरती पर मौजूद सारे पानी का अधिकांश (97.4 प्रतिशत) भाग समुद्रों में भरा पड़ा है। यह सारा जल खारा है, जो सीधे हमारे पीने लायक नहीं है। इसके बाद थोड़ा पानी (1.8 प्रतिशत) ध्रुवों की बर्फ के रूप में विद्यमान है। हमारे पीने लायक मीठा पानी सारे पानी का बमुश्किल 0.8 प्रतिशत है जो हम रोजमर्रा के कामों में लाते हैं और वह भी प्रदूषण की मार से अछूता नहीं।
पानी का गहराता संकट : भयावह तस्वीर
सच पूछिए तो दुनिया भर के हरेक आदमी के लिये यह मीठा पानी पर्याप्त नहीं है। दिन-ब-दिन यह संकट गहराता जा रहा है। बढ़ती आबादी और पानी की बढ़ती खपत के कारण जल संकट गहराता जा रहा है। भविष्य की तस्वीर बड़ी भयावह है।
ऊर्जा संकट और प्रदूषण दोनों समस्याएँ एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। ऊर्जा संकट की मार हम झेल ही रहे हैं, पूरी मानवता के समक्ष सबसे भीषण संकट है पीने वाले पानी की कमी। आँकड़ों पर नज़र डालें तो पता लगेगा कि प्यास से तड़पती दुनिया की अधिसंख्य आबादी दम तोड़ देगी।
1. संयुक्त राष्ट्र संघ के आँकड़ों के अनुसार 6 अरब की आबादी वाली दुनिया में हर छठा व्यक्ति नियमित सुरक्षित पेयजलापूर्ति से वंचित है।
2. दुनिया के 2.4 अरब लोग पर्याप्त साफ-सफाई की सुविधा से वंचित हैं।
3. जल संवाहित रोगों के कारण हर आठवें सेकेंड में एक बच्चा मौत की भेंट चढ़ जाता है।
4. सन् 2032 तक दुनिया की आधे से ज्यादा आबादी पानी की अत्यधिक कमी वाले क्षेत्रों में रहने को विवश होगी। (ग्लोबल एनवायरनमेंट आउटलुक-3)।
5. अनुमानतः विश्व जनसंख्या के 1.1 अरब लोग जलापूर्ति और 2.4 अरब लोग स्वच्छता की सुविधाओं से वंचित हैं। समाज का निर्धन तबका इसकी चपेट में है।
6. लगातार बढ़ती आबादी और पानी की खपत के कारण पानी संकट भविष्य में और गहराता जाएगा। पानी के लिये तीसरा विश्व युद्ध आरम्भ होने की कगार पर है।
7. पिछली सदी में विश्व जनसंख्या तीन गुनी बढ़ चुकी है और इसी अवधि में पानी की खपत 6 गुनी बढ़ चुकी है। अनुमानतः वर्ष 2050 तक संसार का हर चौथा आदमी पानी की समस्या से ग्रस्त होगा।
8. अगले 50 वर्षों के दौरान 60 देशों की 7 अरब आबादी को पर्याप्त जल मुहैया नहीं होगा।
9. अगले दो दशकों में पश्चिम एशियाई और अफ्रीकी मुल्कों में पानी का घोर संकट व्याप्त हो जाएगा।
10. विगत सदी के दौरान लगभग आधी दलदली ज़मीन समाप्त हो गई, बहुत सी नदियाँ अब सागरों तक नहीं पहुँच पातीं। मृदुजल में पाई जाने वाली मछलियों की 20 प्रतिशत प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं। गहराते जल संकट के इन पर्यावरणीय दुष्प्रभावों का भविष्य में प्रतिकूल प्रभाव होगा जो हमारे स्वयं के अस्तित्त्व के लिये घातक सिद्ध होगा।
11. मानव जाति की क्षुधा तृप्त करने के लिये अन्न ही आधार है जो कृषि पर निर्भर है। सुरसा के मुँह की तरह बढ़ती आबादी की क्षुधा तृप्त करने के लिये खेती में पानी का इस्तेमाल बढ़ता ही जा रहा है। स्वाभाविक है भविष्य में दूसरे उपयोगों के लिये पानी की कमी होगी ही।
12. बढ़ती आबादी के साथ ऊर्जा संसाधनों की माँग भी बढ़ती जा रही है। ऐसे में प्रदूषण रहित ऊर्जा स्रोत-पनबिजली पर अधिकाधिक निर्भरता होगी और विश्व में गहराता जल संकट इनकी माँग को पूरा करने में अक्षम होगा।
13. बढ़ते औद्योगीकरण का जल संसाधनों पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है। उद्योगों में पानी की सर्वाधिक खपत होती है, साथ ही ये कचरा युक्त पानी, औद्योगिक उच्छिष्ट (industrial Effluents) जलाशयों में डालकर जल प्रदूषण बढ़ाते हैं जिसका जलीय सम्पदा और मनुष्यों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जल संकट और जल प्रदूषण दोनों समस्याएँ भविष्य में और भी गहराती जाएँगी।
14. अधिसंख्य उद्योग शहरों के आस-पास ही स्थापित हैं। शहरीकरण भी तेजी से अपने पाँव पसार रहा है। बढ़ते शहरीकरण का बोझ भी जल संसाधनों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। अनुमानतः 2020 तक कुल जनसंख्या का 60 प्रतिशत अंश शहरों में आवास करेगा। ऐसी स्थिति में जलीय संसाधनों की कमी और उनके प्रदूषण की समस्या भयावह होगी।
15. पानी के वर्तमान संकट के लिये बढ़ता हुआ ग्रीनहाउस इफेक्ट (Greenhouse Effact) भी जिम्मेदार है। पानी के वर्तमान जल स्तर के 20 प्रतिशत के लिये जलवायु परिवर्तन प्रमुख कारण है।
16. विश्व मौसम संगठन, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) और आई.पी.सी.सी. (Intergovernamental Panel On Climate change) के अनुसार ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जनों के कारण इस सदी में धरती के ताप में 1.4 डिग्री सेंटीग्रेड से 5.8 सेंटीग्रेड ताप की वृद्धि अवश्यम्भावी है। ऐसे में एक तरफ तो सागरीय जलस्तर में 9 से 88 सेंटीमीटर की वृद्धि होगी और दूसरी तरफ जल संकट भी और गहन होगा। जिन क्षेत्रों में वर्तमान में पानी की कमी है, भविष्य में उन्हीं क्षेत्रों में पानी का संकट और गम्भीर होता जाएगा।
दूषित जल और स्वास्थ्य संकट
हम जान चुके हैं कि दुनिया में पीने लायक मीठा पानी सारे पानी का बमुश्किल 0.8 प्रतिशत है और वह भी मानवीय कृत्यों से दूषित होता जा रहा है। जल में आवश्यकता से अधिक खनिज पदार्थ, अनावश्यक लवण, कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थ, कल-कारखानों, औद्योगिक इकाइयों तथा अन्य जल संयंत्रों से निकले अपशिष्ट, मलमूत्र, मृत जीवी जन्तु, कूड़ा-करकट आदि नदियों, झीलों तथा सागरों में विसर्जित किये जाते रहने से ये पदार्थ जल के वास्तविक स्वरूप को प्रदूषित कर देते हैं जिसका मनुष्य और अन्य जीवों पर घातक प्रभाव पड़ता है। दूषित जल के इस्तेमाल से पक्षाघात, पोलियो, पीलिया, मियादी बुखार, हैजा, डायरिया, क्षय रोग, पेचिश, एन्सिफेलाइटिस, कंजक्टीवाइटिस जैसी व्याधियाँ फैलती हैं।
1. विश्व जनसंख्या के दो अरब लोग दूषित जल-जनित रोगों की चपेट में हैं।
2. सकल विश्व में हर साल मौत की भेंट चढ़ने वाले बच्चों में से 60 प्रतिशत बच्चे जल संवाहित रोगों से अकाल ग्रस्त होते हैं।
3. प्रतिवर्ष 50 लाख व्यक्ति गन्दे पानी के इस्तेमाल के कारण मौत के मुँह में जा समाते हैं।
4. हर दिन डायरिया से प्रायः 6000 लोग मरते हैं और इनमें अधिकांशतः 5 वर्ष से कम आयु के बच्चे होते हैं।
5. विश्व भर में स्कूल जाने वाले 40 करोड़ बच्चों में से 40 प्रतिशत बच्चे आँतों में पनपने वाले कृमि रोगों से प्रभावित हैं। अतिसार के कारण हर साल 20 लाख बच्चे मौत की भेंट चढ़ते हैं।
6. मलेरिया से हर साल 10 लाख से अधिक लोग मरते हैं। मलेरिया के कारण विश्व में होने वाली मौतों में 90 प्रतिशत लोग अफ्रीकी देशों के हैं।
पानी की बढ़ती खपत
1. विश्व की 6 अरब से अधिक जनसंख्या वर्तमान में उपयोग किये जाने वाले कुल पानी के 54 प्रतिशत का इस्तेमाल कर रही है। वर्ष 2025 तक यह मात्रा बढ़कर 70 प्रतिशत हो जाने की उम्मीद है। एक दूसरा आकलन कहता है कि आगामी 25 वर्षों के दौरान जल उपयोगिता की सीमा बढ़कर 90 प्रतिशत हो जाएगी। ऐसे में जलीय जीवों के लिये जल की उपलब्धता मात्र 10 प्रतिशत रह जाएगी। ऐसी संक्रमण बेला में जलीय जीवों के अस्तित्व का संकट उठ खड़ा होगा।
2. वैश्विक स्तर पर पानी के कुल उपयोग में से 68 प्रतिशत कृषि में, 24 प्रतिशत उद्योगों में और मात्र 8 प्रतिशत घरेलू कार्यों में प्रयुक्त होता है यद्यपि भौगोलिक क्षेत्रों के अनुसार सकल विश्व में जल की उपयोगिता का स्तर समान नहीं है।
3. विश्व भर में 23 प्रतिशत पानी का उपयोग उद्योगों में किया जाता है जिसका विकसित और विकासशील देशों में अनुपात 59 और 8 प्रतिशत का है।
4. पानी की सर्वाधिक खपत के साथ ही उद्योग 50 करोड़ टन धातु, घोलक, विषाक्त कचरा और इसी प्रकार के दूसरे अपशिष्ट (Wastes) जल-संसाधनों में प्रवाहित करते हैं। विकासशील देशों में कुल औद्योगिक उच्छिष्ट का 70 प्रतिशत हिस्सा तो बिना उपचारित किये ही जल-संसाधनों में प्रवाहित कर दिया जाता है। अतः उद्योग जल-प्रदूषण के प्रमुख कारक हैं।
विश्व जल विकास रपट 2003
1. संयुक्त राष्ट्र ने मार्च, 2003 में क्योटो (जापान) में आयोजित तृतीय विश्व जल सम्मेलन के अवसर पर विश्व जल विकास रपट जारी की है, जिसे ‘लोगों के लिये जल, जीवन के लिये जल’ नाम से अभिहित किया गया है। जल संसाधनों के सन्दर्भ में यह अब तक की सबसे विस्तृत समीक्षा है जिसमें 5 मुद्दों- स्वास्थ्य, कृषि, पारिस्थितिकी, नगर और प्राकृतिक आपदाओं पर गहन विमर्श किया गया है।
स्वास्थ्य
1. 21वीं सदी ऐसी सदी है जिसमें प्रमुख समस्या पानी की किस्मों और उसके प्रबन्धन की है।
2. दूषित पेयजल तथा गन्दगी से सम्बन्धित रोगों से प्रतिवर्ष 22 लाख लोग मृत्यु का ग्रास बनते हैं। मलेरिया से ही प्रायः 10 लाख लोग मौत की भेंट चढ़ते हैं।
3. सन् 2015 तक 1.5 अरब अतिरिक्त व्यक्तियों को सुधरी हुई जलापूर्ति उपलब्ध करानी होगी जिसका सीधा सा तात्पर्य है कि प्रतिवर्ष 10 करोड़ और लोगों को जल सुविधाएँ और स्वास्थ्य सेवाएँ मुहैया की जानी चाहिए।
4. सफाई अपने आप में चुनौती बनकर उभर रही है। 1.9 अरब अतिरिक्त लोगों को आपूर्ति सेवाएँ चाहिए जिसके लिये 12.6 अरब अमेरिकी डाॅलर की दरकार है। स्वाभाविक है कि आगामी वर्षों में इतना विशाल आर्थिक संसाधन उपलब्ध करा पाना टेढ़ी खीर है।
कृषि
1. प्रतिदिन हजारों लोग भूख से दम तोड़ देते हैं।
2. विकासशील देशों में 77 करोड़ 70 लाख लोग कुपोषण ग्रस्त हैं।
3. अन्तरराष्ट्रीय समुदाय ने 2015 तक भूख से दम तोड़ती मानवता की संख्या आधी करने का लक्ष्य बनाया है लेकिन ऐसा कर पाना सन् 2030 तक भी सम्भव नहीं है क्योंकि नए आकलन के अनुसार 93 विकासशील देशों में 2030 तक 4.5 करोड़ हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि में ही सिंचाई सम्भव हो सकेगी।
4. सिंचाई कार्यों में व्याप्त अकुशलता के कारण भूमि/जल उपयोग में सुधार एक ज्वलन्त समस्या है।
5. उपयोग किये जाने वाले जल का 60 प्रतिशत भाग बेकार हो जाता है अतः सुधरी हुई प्रौद्योगिकी अपनानी होगी ताकि जल की पारेषण क्षति को रोका जा सके।
विश्व जल दिवस
ब्राजील की पुरानी राजधानी रियो डि जेनेरो में संयुक्त राष्ट्र के तत्त्वावधान में 1992 में आयोजित ‘संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण और विकास सम्मेलन’ (United Nations Conference on Environment and Development - UNCED) में औपचारिक रूप से ऐसा प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया। अगलेे वर्ष (1993) संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 22 मार्च को प्रतिवर्ष ‘विश्व जल दिवस’ (World Water Day) मनाए जाने की घोषणा की।
वर्ष 2010 का विश्व जल दिवस ‘जल गुणवत्ता चुनौतियाँ और अवसर संवाद’ (Communicating Water Quality Challenges And Opportunities) पर आधारित था।
विश्व जल सप्ताह
इस आयोजना की शुरुआत 1991 से ‘स्टाॅकहोम जल संगोष्ठी’ के रूप में हुई थी। आगे चलकर 2001 में इसका नाम ‘विश्व जल सप्ताह’ (World Water Week) कर दिया गया। इसका आयोेजन प्रतिवर्ष ‘स्टाॅकहोम अन्तरराष्ट्रीय जल संस्थान’ (SIWI) के तत्त्वावधान में सम्पन्न होता है।
वर्ष 2010 में इसका आयोजन 5.11 सितम्बर तक ‘स्टॅाकहोम इंटरनेशनल फेयर सेंटर में किया गया। विमर्श ‘जल गुणवत्ता चुनौती’ (Water Quality Challenge) पर केन्द्रित था।
विश्व जल वर्ष
संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2003 को ‘अन्तरराष्ट्रीय मृदुजल वर्ष’ (International Soft Water Year) घोषित किया था और उस वर्ष 5 जून को मनाए जाने वाले ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ का केन्द्रीय विषय था - ‘मृदुजल: तरस रहे दो अरब लोग।’ वर्ष भर तक पीने के लिये मीठे पानी की कमी पर विमर्श जारी रहा लेकिन कोई ठोस परिणाम नहीं निकला। अलबत्ता इस समस्या को लेकर वैश्विक चेतना का भान अवश्य हुआ।
विश्व जल दशक
वैश्विक जल संकट से निजात पाने के लिये पहली बार संयुक्त राष्ट्र ने 1981-90 की अवधि को ‘अन्तरराष्ट्रीय पेयजलापूर्ति एवं स्वच्छता दशक’ (International Water Supply and Sanitation Decade) मनाने की घोषणा की थी। समूचे विश्व के नागरिकों का आह्वान करते हुए संगठन ने निश्चय किया था कि नवें दशक के अन्त तक सारी दुनिया को पीने के लिये शुद्ध पानी मुहैया किया जा सके, सफाई की व्यवस्था की जाय और इसके लिये अगले 10 वर्षों में प्रत्येक दिन 5 लाख लोगों के लिये पेयजल आपूर्ति के नए साधनों और सफाई की सुविधाओं की व्यवस्था करनी होगी। लेकिन इस महायोजना के क्या सुफल रहे?
यदि इसके सुपरिणाम निकले होते तो राष्ट्र संघ को पुनः यह मुहिम न आरम्भ करनी होती। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अपने 58वें अधिवेशन में (दिसम्बर, 2003) एक प्रस्ताव पारित करके वर्ष 2005 से 2015 तक की अवधि को ‘अन्तरराष्ट्रीय कार्य दशक : जीवन के लिये जल’ (International Decade For Action : Water For life) घोषित किया है। आधिकारिक रूप से विश्व जल दिवसय 22 मार्च, 2005 से ‘जल दशक’ की शुरुआत हो गई। स्वच्छ जल की उपलब्धता और बुनियादी साफ-सफाई के महत्त्व को रेखांकित करते हुए संयुक्त राष्ट्र ने 2015 तक इसे अधिकाधिक लोगों को लाभान्वित कराने के लिये अपने ‘सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्यों’ में सम्मिलित किया है और स्वच्छ पेयजल तथा बुनियादी साफ-सफाई प्राप्त करने के अधिकार को ‘मानवाधिकार’ की मान्यता प्रदान की है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस वैश्विक मुहिम में सभी राष्ट्र-राज्य ‘कर्मणा’ प्रतिभाग करेंगे और इस आसन्न संकट से विश्व समुदाय निजात पाकर अमन चैन से जिन्दगी बसर कर सकेगा। यह हमारे अस्तित्त्व और भविष्य का प्रश्न है।
पारिस्थितिकी
वैश्विक पर्यावरणीय प्रणालियों पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के कारण संक्रमण की स्थिति उत्पन्न हो गई है, जिसके आगे चलकर और भी भयावह हो जाने के खतरे आसन्न हैं।
1. नदियों, झीलों तथा अन्य जलस्रोतों को कम करके तथा उन्हें प्रदूषित करके हम उन प्रणालियों को नष्ट कर रहे हैं जिनसे हमें मृदु जल प्राप्त होता है।
नगर
1. जल सुविधाओं के अभाव का सबसे अधिक दुष्प्रभाव शहरी क्षेत्रों में पड़ा है।
2. एक सर्वेक्षण (116 नगर) में पाया गया है कि अफ्रीका में शहरी क्षेत्र दुष्प्रभावित हैं। मात्र 18 प्रतिशत परिवार सीवरों से जुड़े हुए हैं।
3. सबसे प्रमुख जल संवाहित रोग मलेरिया है जिससे काफी मौतें होती हैं।
4. प्रतिवर्ष उद्योगों से 30-35 करोड़ टन भारी धातुएँ, विषाक्त कचरा और व्यर्थ सामग्रियाँ जल संसाधनों में डाली जाती हैं।
5. संसार का 80 प्रतिशत से अधिक औद्योगिक कचरा (Industrial Waste) अमेरिका और अन्य औद्योगिक राष्ट्र उत्पन्न करते हैं।
प्राकृतिक आपदाएँ
1. सूखा और बाढ़ जैसी जल सम्बन्धी आपदाएँ 1996 के बाद से दोगुनी होती गई हैं।
2. गत दशक में प्राकृतिक आपदाओं में 6 लाख 65 हजार लोगों की जानें गईं।
3. जोखिमों में कमी को जल संसाधन प्रबन्धन का अनिवार्य और अविभाज्य अंग बनाया जाना चाहिए।
जल संकट से निपटने के लिये भावी रणनीति
जल ही जीवन है और पानी की हर बूँद कीमती है, यह सर्वज्ञात है। हमारे शरीर का दो-तिहाई अंश पानी ही है। आप भोजन के बगैर तो एक महीने तक रह सकते हैं लेकिन पानी के बिना मात्र 5-7 दिनों तक ही।
जनसंख्या तथा जल उपलब्धता के सन्दर्भ में भारत की स्थिति | ||
वर्ष | जनसंख्या (करोड़) | जल उपलब्धता (घ.मी./वर्ष/व्यक्ति |
1947 | 40 | 5000 |
2000 | 100 | 2000 |
2025 | 139 | 1500 |
2050 | 160 | 1000 |
सन 2025 में भारत की जनसंख्या को 1 अरब 60 करोड़ मानते हुए विभिन्न क्षेत्रों में जल की संभावित खपत (घन किलोमीटर या अरब घन मीटर) | |||
क्षेत्र | खपत | ||
जतही जल | भूजल | योग | |
कृषि | 463 | 344 | 807 |
घरेलू | 65 | 46 | 111 |
उद्योग | 57 | 24 | 81 |
ऊर्जा | 56 | 14 | 70 |
अन्य | 91 | - | 91 |
योग | 732 | 428 | 1160 |
जल की अनिवार्यता और अपरिहार्यता मनुष्य समेत सृष्टि के हर जीव के लिये है। पानी पर ही हमारा अस्तित्व है। अतः यह समस्या सम्पूर्ण विश्व की है और इसमें जो भी सकारात्मक प्रयास किये जाने हैं, उसमें हरेक आदमी की भागीदारी अनिवार्य है। पिछले 30 वर्षों में स्टाकहोम (1972) से रियो (1992) और जोहांसबर्ग (2002) तक के पृथ्वी सम्मेलनों में हर बार जल संकट मुद्दा रहा है लेकिन हमेशा उसे एक कोरम पूर्ति के रूप में लिया गया, गम्भीरता से उस पर बहस नहीं हुई। इस बार पुनः ‘जल दशक’ घोषित करके संयुक्त राष्ट्र ने जो पहल की है, उस पर वैश्विक सरकारें ठोस कदम उठाएँगी, ऐसी आशा है क्योंकि यह हमारे भविष्य और अस्तित्त्व का प्रश्न है।
श्री शुकदेव प्रसाद
135/27- सी, छोटा बघाड़ा
(एनी बेसेंट स्कूल के पीछे)
इलाहाबाद - 211002 (उ.प्र.)
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