बात सुनने में अटपटी लगती है न? पानी तो पानी, भारी और हल्का पानी कैसा? पर बात सच है। पानी कई तरह का होता है।
हम जानते हैं कि पानी (H2O) के एक अणु की रचना हाइड्रोजन (H) के दो परमाणुओं और आॅक्सीजन (O) के एक परमाणु के मिलने से होती है। पर हाइड्रोजन के भी कई रूप हैं। हाइड्रोजन के तीन रूपों की हमें जानकारी है। ये क्रमशः साधारण हाइड्रोजन (H), ड्यूटेरियम (D), और ट्राइटियम (T) कहलाते हैं। हाइड्रोजन के ये विभिन्न रूप इसके समस्थानिक (Isotopes) हैं। इसी तरह ऑक्सीजन के भी तीन समस्थानिक रूप पाए जाते हैं।
हाइड्रोजन के तीनों रूपों का परमाणु क्रमांक 1 है अर्थात उनके नाभिकों में 1 प्रोटॉन पाया जाता है और उसके चारों ओर कक्ष में 1-1 इलेक्ट्रॉन चक्कर लगाते हैं।
साधारण हाइड्रोजन (H) में कोई न्यूट्राॅन नहीं होता, केवल 1 प्रोटॉन होता है, ड्यूटेरियम में 1 प्रोटॉन के साथ 1 न्यूट्रॅान होता है और ट्राइटियम में 1 प्रोटॉन के साथ 2 न्यूट्रॅान होते हैं। इसी नाते हाइड्रोजन के इन तीनों रूपों के परमाणु भार भिन्न होते हैं। ऐसी ही स्थिति सभी तत्त्वों के समस्थानिकों के साथ होती है।
प्रोटियम | ड्यूटेरियम | ट्राइटियम | |
परमाणु संख्या | 1 | 1 | 1 |
परमाणु भार | 1 | 2 | 3 |
हाइड्रोजन के समस्थानिक |
हाइड्रोजन के इन रूपों को क्रमशः इस प्रकार लिखा जाता हैः
1H1, 1H2 और 1H3
इसी प्रकार ऑक्सीजन के भी तीन रूप ज्ञात हैं, जिन्हें क्रमशः इस प्रकार लिखा जाता हैः
8O16
8O17
8O18
परमाणु क्रमांक=8
परमाणु क्रमांक = 8
परमाणु क्रमांक = 8
परमाणु भार = 16
परमाणु भार = 17
परमाणु भार = 18
इसका अर्थ यह हुआ कि ऑक्सीजन के तीनों रूपों का परमाणु क्रमांक 8 हैं पर उनके परमाणु भार भिन्न हैं जो क्रमशः 16, 17 और 18 हैं।
प्रोटाॅन और न्यूट्रॉन के भार लगभग समान और लगभग 1 हैं (क्रमशः 1.0078, 1.0084) पर इलेक्ट्राॅन का भार नगण्य है (0.00054) अतः साधारण हाइड्रोजन से ड्यूटेरियम का भार लगभग दोगुना होता है क्योंकि ड्यूटेरियम में 1 प्रोटाॅन और 1 न्यूट्राॅन होता है, जबकि साधारण हाइड्रोजन में कोई न्यूट्राॅन नहीं होता है। अतः इसे भारी हाइड्रोजन (Heavy Hydrogen) भी कहा जाता है। भारी हाइड्रोजन की खोज अमेरिकी वैज्ञानिक हेरोल्स सी. यूरे ने 1931 में की थी और उन्होंने ही इसे ड्यूटेरियम नाम दिया था। यह यूनानी शब्द ड्यूटेनियम पर आधारित है जिसका मतलब ‘द्वितीय’ होता है।
सामान्य हाइड्रोजन (1H1) और सामान्य ऑक्सीजन (8O16) के संयोग से जो पानी बनता है, वह तो साधारण पानी (H-O-H) है, जिससे हम भली-भाँति परिचित हैं। लेकिन जब भारी हाइड्रोजन (D) और सामान्य ऑक्सीजन का संयोग होता है तो भारी पानी बनता है जिसे हम D2O (D-O-D) से प्रदर्शित करते हैं। यह बड़ा कीमती पानी है। वस्तुतः प्रकृति में साधारण जल के 6,000 भागों में 1 भाग भारी जल होता है। वैसे तो सारा पानी हमें एक ही तरह का दिखाई पड़ता है पर प्रकृति में पानी कई विभिन्न रूपों में उपलब्ध है, जिन्हें हम इस प्रकार लिखते हैं-
H-O16-H | D-O16-D | H-O16-D |
H-O17-H | D-O17-D | H-O17-D |
H-O18-H | D-O18-D | H-O18-D |
यहाँ हम केवल भारी पानी की चर्चा करेंगे। हम यह जान चुके हैं कि भारी पानी प्रकृति में बहुत अल्प मात्रा में विद्यमान है। अतः इससे भारी पानी को अलग कर पाना अपने आप में बड़ी जटिल और महंगी प्रक्रिया है। सर्वप्रथम वैज्ञानिक यूरे ने ही भारी जल की खोज (1932) में की थी। उन्होंने ही जल के वैद्युत अपघटन से इसे प्राप्त करने की विधि खोज निकाली थी। इस उपकरण का निर्माण यूरे और उनके सहयोगियों - ब्राउन, डगेट ने मिलकर किया था। पाँच पदों में होने वाली लम्बी प्रक्रिया के अंत में प्राप्त शुद्ध भारी हाइड्रोजन को ऑक्सीजन के साथ जलाकर 100 प्रतिशत भारी जल प्राप्त किया जाता है।
इधर हाल ही में न्यूजीलैंड में साधारण जल के प्रभावी आसवन (fractional distillation) से भी भारी पानी प्राप्त करने की विधि खोजी गई है, जो कदाचित सस्ती होगी।
विलक्षण है भारी पानी
साधारण पानी से यह कई मामले में भिन्न होता है। यथाः
1. साधारण पानी 1000C पर उबलता है और 00C पर बर्फ बन जाता है जबकि भारी पानी 101.420C पर उबलता है और 3.8020C पर जमता है।
2. साधारण पानी का आपेक्षिक घनत्व (Relative Density) प्रायः (200C पर) 0.9982 होता है तथा भारी पानी का आपेक्षिक घनत्व 1.1050 होता है।
3. साधारण पानी की विशिष्ट ऊष्मा (Specific Heat) 1.00 होती है (200C पर) जबकि भारी पानी की 1.018 होती है।
4. भारी पानी का जीवों के शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जलीय पौधों और जीवों के शरीर के विकास में भारी पानी बाधक है।
5. शुद्ध भारी पानी में मछलियाँ आदि छोड़ दी जाए तो वे तत्काल मर जाती हैं।
6. भारी पानी में बीजों का अंकुरण असम्भव है।
7. साधारण पानी जहाँ हमारे लिये अमृत तुल्य है, वहीं भारी पानी अधिक मात्रा में विषकारी है। अलबत्ता इसका तनु विलयन उतना हानिकारक नहीं होता है।
भारी जल के भौतिक गुणधर्म तालिका 1 में दिए गए हैं।
तालिका : 1 भारी जल के गुणधर्म | ||
D2O | H2O | |
त्रिक बिंदु | 3.8 | 4 |
अधिकतम घनत्व ताप | 11.60C | 40C |
पृष्ठ-तनाव | 67.8 | 72.75 |
श्यानता | 12.60 | 10.09 |
अपवर्तनांक | 1.32828 | 1.3300 |
हिमांक | 3.820C | 0.000C |
क्वथनांक | 101.420C | 1000C |
क्रान्तिक ताप | 371.5 | 374.0 |
क्रान्तिक दाब | 218.6 | 217.7 |
विद्युत चालकताः पोटैशियम आयन | 64.2 | 54.5 |
फ्लोरिन आयन | 65.2 | 55.3 |
हाइड्रोजन आयन | 315.2 | 213.7 |
विलेयताः सोडियम क्लोराइड | 0.359 | 0.306 |
बेरियम क्लोराइड | 0.357 | 0.289 |
क्रान्तिक विलयन तापः फीनोल | 70.10C | 68.30C |
भारी पानी के उपयोग
अब प्रश्न उठता है कि भारी पानी आखिर किस काम आता है, जो इसको प्राप्त करने के लिये इतनी जटिल क्रियाएँ सम्पन्न की जाती हैं। इसका सबसे बड़ा उपयोग परमाणु भट्टियों में है और इसी नाते हर विकासशील राष्ट्र अपने परमाणु कार्यक्रमों के संचालन के लिये भारी पानी प्राप्त करने की चेष्टा करता रहता है। स्वयं की क्षमता न होने पर विदेशों से भी आयात करना पड़ता है। हम जानते हैं कि परमाणु बिजली-घरों में यूरेनियम अथवा प्लूटोनियम सरीखे ईंधनों को न्यूट्रॉनों द्वारा तोड़कर अपार शक्ति जनित की जाती है जिससे बिजली बनाई जाती है। परमाणु भट्टियों में विखण्डन क्रिया के दौरान एक न्यूट्राॅन जब यूरेनियम के किसी नाभिक को तोड़ता है तो उससे 2-3 न्यूट्राॅन और निकलते हैं, जो अन्य नाभिकों को तोड़ते हैं, साथ ही ऊर्जा भी उत्पन्न होती है। वे न्यूट्राॅन काफी तीव्र गति वाले होते हैं। इन्हें मंद करने पर ही ये अन्य यूरेनियम नाभिकों को तोड़ सकते हैं।
सन 1942 में एनरिको फर्मी ने शिकागो विश्वविद्यालय में विश्व की जो पहली परमाणु भट्टी बनाई थी, उसमें न्यूट्रॉनों की गति को धीमा करने के लिये मंदक (Moderator) के रूप में उन्होंने ग्रेफाइट की छड़ों का इस्तेमाल किया था। आगे ज्ञात हुआ कि साधारण पानी, भारी पानी अथवा बेरीलियम भी मंदक का काम कर सकते हैं और भारी पानी एक उत्कृष्ट मंदक के रूप में काफी उपयोगी सिद्ध हुआ, तभी से भारी पानी की मांग और कीमत बढ़ गई। इसलिये भारी पानी को पाने की होड़ लगी रहती है।
परमाणु भट्टियों में यूरेनियम का विशेष महत्त्व है। प्रकृति में यूरेनियम के विभिन्न रूपों की प्रतिशत मात्रा इस प्रकार हैः
यूरेनियम - 238...............99.3 प्रतिशत
यूरेनियम - 235...............0.7 प्रतिशत
यूरेनियम - 233...............0.008 प्रतिशत
प्रयोग यह दर्शाते हैं कि यूरेनियम-238 के परमाणुओं के नाभिक को विखण्डित करने के लिये अधिक ऊर्जावान न्यूट्रॉनों की आवश्यकता होती है पर यूरेनियम-235 के नाभिकों का विखण्डन कम ऊर्जा वाले न्यूट्राॅन भी कर सकते हैं और साथ ही इस विखण्डन से अधिक ऊर्जा भी उत्सर्जित होती है।
आजकल परमाणु भट्टियों में प्रायः प्राकृतिक या उन्नयित (enriched) यूरेनियम, जिसमें यूरेनियम-235 की मात्रा अधिक होती है, को ही ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। मंदक के रूप में भारी पानी के इस्तेमाल का फायदा यह है कि इसका उपयोग करने पर उन्नयित यूरेनियम की आवश्यकता नहीं होती है अपितु यूरेनियम ऑक्साइड के जरिए ही ऊर्जा उत्पादन किया जा सकता है। यूरेनियम का संवर्धन वैसे भी जटिल और घातक प्रक्रिया है, अतः भारी पानी के इस्तेमाल से ऊर्जा उत्पादन की प्रक्रिया आसान और कम खर्चीली हो जाती है तथा विकिरणशीलता क्षति भी कुछ कम हो जाती है।
भारी पानी पर आधारित परमाणु भट्टी पहले कनाडा में बनाई गई थी, फिर अन्य देशों में। भारत में 20 परमाणु रिएक्टर कार्यरत हैं। इनमें से आरम्भिक 2 रिएक्टर बायलिंग रिएक्टर हैं जबकि शेष 18 रिएक्टर दाबित भारी पानी रिएक्टर हैं और ये कुल मिलाकर 4780 मेगावाट विद्युत उत्पन्न करते हैं।
दाबित भारी पानी किस्म के रिएक्टरों में मंदक (Moderator) तथा शीतल (Coolant) के रूप में भारी पानी प्रयुक्त होता है। भारी पानी के निर्माण की दिशा में भारत ने पर्याप्त सफलता अर्जित की है।
विद्युत अपघटन और हाइड्रोजन के आसवन की प्रक्रिया पर आधारित भारत का प्रथम भारी पानी संयन्त्र 1961 में नांगल (पंजाब) में स्थापित किया गया था, जिसकी आधारशिला भारत में परमाणु कार्यक्रम के जनक डाॅ. होमी भाभा ने 1955 में रखी थी। 1962 से कार्यरत यह संयन्त्र अब बंद किया जा चुका है।
इस संयन्त्र के बाद बड़ोदरा (गुजरात), हजीरा (गुजरात), तलचर (उड़ीसा) और तूतीकोरिन (तमिलनाडु) में अमोनिया-हाइड्रोजन विनिमय प्रक्रिया पर आधारित भारी पानी संयन्त्रों (Heavy Water Plants) की स्थापना की गई। भारतीय विशेषज्ञों की देख-रेख में डिजाइन्ड और निर्मित एक भारी संयन्त्र कोटा (राजस्थान) में स्थापित किया गया है। यह हाइड्रोजन सल्फाइड और जल विनिमय की स्वदेशी टेक्नोलाॅजी पर आधारित संयन्त्र है।
शीघ्र ही अमोनिया-हाइड्रोजन विनिमय प्रक्रिया पर आधारित एक संयन्त्र थाल वैशट (महाराष्ट्र) में स्थापित किया गया। इसी प्रकार हाइड्रोजन-सल्फाइड विनिमय प्रक्रिया पर आधारित एक भारी पानी संयन्त्र की स्थापना मनुगुरू (आंध्रप्रदेश) में की गई।
देश में भारी संयन्त्रों के निर्माण और उनके संचालन का दायित्व परमाणु ऊर्जा विभाग के हैवी वाटर बोर्ड को है। बोर्ड द्वारा देश में स्थापित 7 भारी पानी संयन्त्र परमाणु विद्युत जनन और अनुसंधान रिएक्टरों की भारी पानी सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये सक्षम ही नहीं है अपितु इनकी बदौलत अब देश भारी पानी के उत्पादन में आत्मनिर्भर भी हो चुका है।
उल्लेखनीय है कि भारी पानी का ग्रेड उच्च करने की पद्धति का विकास भारतीय विशेषज्ञों ने कर लिया है और ऐसे दो संयन्त्र कोटा और कलपक्कम में स्थापित किए जा चुके हैं जो सफलतापूर्वक कार्य कर रहे हैं।
भारत अब विश्व का सबसे बड़ा भारी पानी उत्पादक राष्ट्र है। भारी पानी बोर्ड ने दक्षिण कोरिया, चीन और अमेरिका जैसे देशों को भारी पानी का सफलतापूर्वक निर्यात किया है।
सम्पर्क : शुकदेव प्रसाद
(सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार विजेता), 135/27 - सी, छोटा बघाड़ा (एनी बेसेंट स्कूल के पीछे), इलाहाबाद-211002, मोबाइल: 9415347027; ई-मेल: Sdprasad24oct@yahoo.com
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