राजकमल चौधरी
राजकमल चौधरी
सुनील गांगुली की यमुना
Posted on 26 Sep, 2013 01:56 PMक्यों मुझे अलकनंदा के प्रतिभय से चंचल कर देती है?
इससे अधिक कोई सार्थकता नहीं होती है नींद की। वह
मुझे कल्पना से अनुभव की घाटियों में ले जाती है।
एक अंधा विषदंत साँप,
पत्थर की नीली चट्टानों पर अपना फन पटकता रह जाए
सारी रात।
इससे अधिक सार्थकता क्यों चाहिए?
समय अगर चट्टान है, उसके किनारे सटकर उन्माद में
बहती हुई नदी है अलकनंदा।