राजेन्‍द्र बंधु

राजेन्‍द्र बंधु
कर्ज से हारती किसान की जिंदगी
Posted on 15 Mar, 2011 03:51 PM
किसान से कब बंधुआ मजदूर बन गया, यह नंदकिशोर को पता ही नहीं चला। महंगे कीटनाशक, महंगे बीज और रासायनिक खाद ने उसे कर्जदार बना दिया। अपने एक भाई, दो बेटियों और बुजुर्ग मां सहित छह सदस्‍यों का भरण-पोषण चार एकड़ खेती से संभव नहीं रहा और इधर साहूकार का 50 हजार का कर्ज सिर पर था। खेती की जिम्‍मेदारी भाई को सौंपकर खुद बंधुआ मजदूर बनकर साहूकार के ट्रेक्‍टर की ड्राईवरी करने लगा। कुछ सालों तक बंधुआ मजदूर बने रहकर उसे लगा कि इससे तो कभी कर्ज उतरेगा नहीं। लिहाजा उसने बटाई पर खेती करने का उपाय सोचा। नंदकिशोर ने उसी साहूकार की 20 बीघा जमीन 25 हजार रुपए में बटाई पर ली, जिसके यहां वह बंधुआ था। ये 25 हजार रुपए भी उसके सिर पर कर्ज के तौर पर बढ़ गए, जिसकी जमानत के रूप में उसने पत्‍नी के चांदी के जेवर गिरवी रखे। इस तरह बंधुआ मजदूरी और खेती साथ-साथ चलने लगी।
आत्महत्या करने वाले नंदकिशोर का परिवार
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