राॅबिन शाॅ पुष्प

राॅबिन शाॅ पुष्प
गंगा में आग
Posted on 29 Dec, 2014 01:10 PM
जब कोई अपने शहर से दूर रहता है, तो अपने शहर को पुकारता है। परंतु इस शीला को क्या हो गया... ‘ओ बारौनी, आमार डाक शोनो रे...’ पटना में एमए करते समय, उसके उसने छात्रावास से एक खत लिखा था - ‘मुंगेर शहर नहीं है। वहां के दिन, शवयात्रा से लौटे लोगों की तरह इतने अधिक उदास और टूटे हुए होते हैं, कि वे और ज्यादा उदास हो ही नहीं सकते... मुंगेर शहर नहीं, एक दार्शनिक है... अकेला, उदास, चुप-चुप और इसे कभी भूला नहीं जा सकता है, कम से कम अपने अस्वीकृत क्षणों में तो नहीं....’

मगर उस दिन, शीला अपने शहर को भूल गयी थी। मैं भूल गया था। मुंगेर के तमाम लोग भूल गये थे। ओ बारौनी, आमार डाक शोनो रे... ओ तोइयलो शोधागार। और हर पुकार, प्रतिध्वनि की तरह वापस लौट आयी था। बरौनी, पत्थर का बुत। एक सख्त ऐब्स्ट्रैक्ट चेहरा।
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