प्रियंका दूबे

प्रियंका दूबे
सबकी धरती सबका हक
Posted on 24 Aug, 2013 12:27 PM
लापोड़िया और रामगढ़ की कहानी देश में चौतरफा फैले जल संकट का समाधान तो सुझाती ही है, लेकिन उससे भी बढ़कर सामाजिक समानता की नींव पर बने एक प्रगतिशील समाज का सपना भी साकार करती है...

जयपुर से लगभग 70 किलोमीटर दूर, राजधानी के ही दुधू ब्लॉक में बसे लापोड़िया गांव तक जाने वाली सड़क के किनारे बने हरे-भरे चरागाह और हरियाली देखकर आप एक पल को जैसे भूल ही जाते हैं कि यह गांव भारत के सूखे राज्य राजस्थान में है। गांव में प्रवेश करते ही साफ पानी से लबालब भरे तालाब, दूर तक फैले हरे खेत, हरे मैदानों में चरते पशु और घने पेड़ों चहचहाते पक्षियों का सुरीला कलरव आपका स्वागत करता है। लापोड़िया को अकाल-प्रभावित, सूखे और बंजर गांव से खुशहाली के इस स्वागत गीत में बदलने का एक बड़ा श्रेय लक्ष्मण सिंह को जाता है। ऐसे समय में जब पानी की किल्लत दिल्ली-मुंबई से लेकर जयपुर तक सैकड़ों भारतीय शहरों को सूखे नलों के मकड़जाल और अनंत प्रतीक्षा के रेगिस्तान में तब्दील कर रही है, राजस्थान की मरुभूमि में लहलहाते खेतों और हरे-भरे चरागाहों की दो अनोखी कहानियां ठंडी हवा के झोंके की तरह आती हैं। हर साल गर्मियों की पहली दस्तक से ही शहरों में ‘जल-युद्ध’ शुरू हो जाता है। कहीं लोग ‘एक हफ्ते बाद’ आने वाले सरकारी पानी की राह देखते-देखते बेहाल हो जाते हैं तो कहीं से पानी के टैंकरों के सामने मारपीट की खबरें आती हैं। तेजी से बढ़ती शहरी जनसंख्या और साल दर साल उसी अनुपात में बढ़ रहा जल संकट हर गुजरते दिन के साथ और विकराल होता जा रहा है। लेकिन इस रिपोर्ट में आगे दर्ज राजस्थान के लापोड़िया गांव और रामगढ़ क्षेत्र की ये दो कहानियां जल-संरक्षण का सरल और देसी समाधान सुझाती है। साथ ही ये न्यूनतम जल स्तर और प्रतिकूल भौगोलिक परिस्थितियों में भी रेतीली ज़मीन पर लहलहाते खेतों का असंभव सा लगने वाला दृश्य भी रचती हैं।
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