प्रभांशु ओझा

प्रभांशु ओझा
जल संसाधन और पर्यावरण
Posted on 31 Jul, 2016 01:00 PM

भारत जैसे बड़े राष्ट्र के लिये एक समय जल संसाधनों का दोहन कर अपनी ऊर्जा आवश्यकताएँ पूरा करना आवश्यक था इसलिये ऐसी नीतियों को बढ़ावा दिया गया जो जल्द से जल्द भारत की आर्थिक-सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा कर सकें। लेकिन क्या इस कोशिश में नीति-निर्माताओं को कुछ हद तक सख्ती से नियंत्रण लगाने की आवश्यकता नहीं थी?
स्वच्छ ऊर्जा और भारत
Posted on 18 Apr, 2016 03:56 PM

केन्द्र सरकार ने राज्यों और विभिन्न सरकारी संस्थाओं के सहयोग
आपदाओं से क्या सीखते हैं हम
Posted on 02 May, 2015 04:12 PM
प्रसाद की रचना कामायनी का प्रमुख पत्र मनु उस विनाश का साक्षी है, जहाँ देवताओं की घोर भौतिकतावादी प्रवृत्ति भोग, विलास और उनके द्वारा प्रकृति के अनियन्त्रित दोहन के परिणामस्वरूप पूरी सभ्यता का विनाश हो जाता है। सिवाय मनु के कोई भी नहीं बचता है। देव सभ्यता के प्रलय के बाद नए जीवन की उधेड़बुन में लगे मनु के जीवन में श्रद्धा और इड़ा नामक दो स्त्रियाँ आती हैं। श्रद्धा मनु को अहिंसक तथा प्रकृति प्रेमी बना
पानी के बिना कैसी जिन्दगानी
Posted on 27 Mar, 2015 08:23 AM
वर्षा जल संग्रहण पानी की उपलब्धता को बढ़ाता है, भूमिगत जल-स्तर को
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