पंकज चतुर्वेदी

पंकज चतुर्वेदी
पंकज चतुर्वेदी
पंकज चतुर्वेदी
सहायक संपादक
नेशनल बुक ट्रस्ट,
5 नेहरू भवन, वसंतकुंज इंस्टीट्यूशनल एरिया,
नई दिल्ली, 110070 भारत

ईमेल - pc7001010@gmail.com
पंकज जी निम्न पत्र- पत्रिकाओं के लिए नियमित लेखन करते रहे हैं।

नवभारत टाइम्स, जनसत्ता, दैनिक हिन्दुस्तान, राष्ट्रीय सहारा, जेवीजी टाइम्स, वुफबेर टाइम्स,गगनांचल, आउटलुक, राष्ट्रीय सहारा, चाणक्य ब्यूरो मासिक, राजस्थान पत्रिका, साप्ताहिकहिन्दुस्तान, दिनमान टाइम्स, वीर अर्जुन, संडेमेल, अदिती पफीचर्स, नई जमीन, विज्ञान प्रगति,सरिता, मुक्ता, नंदन, पराग (सभी दिल्ली से प्रकाशित)

नई दुनिया, दैनिक जागरण,नवभारत, लोकमत समाचार (नागपुर), दैनिक भास्कर, कर्मयुग (इंदौर), पहल (पटना),देशबंधु (सतना), नवीन दुनिया (जबलपुर), हिन्दुस्तान पफीचर सर्विस, संवाद भारती (लखनऊ), सप्रेस (इंदौर) आदि।

नौलों-धारों की भी होगी गिनती
पहाड़ के समाज में हमेशा से नौलों-धारों के उपयोग और संरक्षण में धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संवेदनशीलता इत्यादि का पूरा ध्यान रखा जाता रहा है। और हाँ, अधिकतर मामलों में ये धारे, पंदेरे, मगरे और नौले प्राकृतिक ही रहे हैं। हमें इनके संरक्षण की कोशिश करनी होगी। सरकार इनके गणना का एक बड़ा कार्यक्रम करने जा रही है। इस मसले पर पानी-पर्यावरण के प्रख्यात लेखक पंकज चतुर्वेदी की टिप्पणी
Posted on 17 Aug, 2024 08:17 PM

भारत सरकार के केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने प्राकृतिक और मानव निर्मित सभी तरह के जल स्रोतों की दूसरी गणना की प्रक्रिया शुरू कर दी है। पिछले साल हुई पहली गणना की रिपोर्ट सार्वजनिक की गई है, जिसके आधार पर यह पता चला था कि देश में नदियों, नहरों के साथ ही कितने तालाब, पोखर, झील आदि हैं और उनकी स्थिति क्या है?

नौले-धारे हिमालयी क्षेत्र में मुख्य जलस्रोत
भारत के वनों और शहरी हरियाली के संरक्षण द्वारा ही पर्यावरण बचाना संभव
भारतीय शहरों में पर्यावरण के प्रति लापरवाही से बचने और देश के जंगलों और शहरी हरियाली की रक्षा करने की दिशा में सशक्त नीति और अनुसंधान की अनिवार्यता पर बल दिया है। यह एक बेहद खतरनाक संकेत है कि हमारे देश में सन 1901-2018 की अवधि में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के कारण औसत तापमान पहले ही लगभग 0.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है और अनुमान है कि यदि हमने माकूल कदम नहीं उठाये तो 2100 के अंत तक यह बढ़ोतरी लगभग 4.4 डिग्री सेल्सियस हो जायेगी।
Posted on 15 Sep, 2023 02:36 PM

आज जरूरत इस बात की है कि हम जलवायु परिवर्तन संकट निदान की  दिशा में "थिंक ग्लोबली, एक्ट लोकली की नीति पर चलें" । वैश्विक अनुबंध आमतौर पर विकसित देशों के हितों के अनुरूप होती हैं लेकिन हमारी रिपोर्ट हमारे स्थानीय खतरों और निदान पर विमर्श करती है।

भारत के वनों और शहरी हरियाली के संरक्षण द्वारा ही पर्यावरण बचाना संभव
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