नेमिचंद्र जैन

नेमिचंद्र जैन
डूबती संध्या
Posted on 16 Sep, 2013 12:32 PM
डूबती निस्तब्ध संध्या;
ग्रीष्म की तपती दुपहरी,
प्रबल झंझावात के पश्चात,
सुनसान शांत उदास संध्या।
विरल सरि का चिर-अनावृत्त गात
जो किसी की आँख के अभिराम जादू के परस से
हो उठा है लाल,
ऐसा गात
किस अनागत की प्रतीक्षा में खुला है?
दो किनारे,
व्यथित व्याकुल-
बाहु-बंधन में किसी को बाँधने को
नित्य आकुल;
व्यर्थ ही तो है,
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