महेश पाण्डे एवं प्रवीन कुमार भट्ट

महेश पाण्डे एवं प्रवीन कुमार भट्ट
गंगा रक्षा के लिए अकेला पड़ा ‘गंगापुत्र’
Posted on 20 Feb, 2012 04:18 PM

गंगा को प्रदूषण मुक्त करने और कुंभ क्षेत्र को प्रदूषण से मुक्त करने की मांग को लेकर अनशन कर रहे मातृसदन के स्वामी निगमानंद की 2011 में मौत तक हो चुकी है। इतना ही नहीं, मातृसदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद भी नवंबर 2011 में गंगा को खनन मुक्त करने की मांग को लेकर लंबा अनशन कर चुके हैं। इन अनशनों को भी राज्य सरकार ने दबाने की पूरी कोशिश की। यहां तक शिवानंद के अनशन के दौरान तो सरकार में मंत्री दिवाकर भट्ट ने उनके खिलाफ मोर्चा तक खोल दिया था। अब गंगा की अविरलता को लेकर अनशन कर रहे स्वामी सानंद भी स्थानीय क्षेत्रिय दलों के निशाने पर आ गए हैं।

गंगा की अविरलता के लिए और गंगा पर बन रहे बांधों के विरोध में 9 फरवरी से हरिद्वार के कनखल स्थित मातृसदन में चल रहा स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद का अनशन इस बार जोर पकड़ने के बजाय असफल साबित हो रहा है। वर्ष 2008 के बाद गंगा की अविरलता और बांधों के विरोध में लगातार हो रहे अनेक आंदोलनों के दौरान ऐसा पहली बार हो रहा है जब संत समाज और उत्तराखंड के क्षेत्रीय दल ऐसे किसी आंदोलन के विरोध में एक साथ खड़े हो गए हैं। जगतगुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती से दीक्षा ग्रहण करने के बाद प्रोफेसर से स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद बने जी.डी. अग्रवाल 9 फरवरी से मातृसदन में अनशन कर रहे हैं। अग्रवाल आईआईटी, कानपुर में प्रोफेसर रह चुके हैं लेकिन अब इन्होंने संन्यास ग्रहण कर खुद को गंगा को समर्पित कर दिया है। इससे पहले भी स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद गंगा पर बन रही परियोजनाओं के खिलाफ हरिद्वार के मातृसदन और उत्तरकाशी में गंगा तट पर अनशन कर चुके हैं।
सौतेला व्यवहार सहती यमुना
Posted on 18 Dec, 2011 11:12 AM

बीते 20 सालों में पहले गंगा एक्शन प्लान और अब गंगा क्लीन प्लान के नाम से 4 हजार करोड़ से अधिक खर्च किया जा चुका है। इतना ही नहीं, गंगा को केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय नदी घोषित करने के साथ ही गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण का गठन भी गंगा की बेहतरी के लिए किया है। जबकि यमुना के लिए ऐसी कोई योजना अब तक न तो केंद्र सरकार ने बनाई है और न ही राज्य सरकार इस ओर ध्यान दे रही है लेकिन उपयोग की बात हो तो सरकारें यमुना का भरपूर उपयोग कर रही हैं।

भारत में नदियों का जिक्र आए तो गंगा के साथ यमुना की बात जरूर होती है। यमुना भारत में गंगा के बाद सबसे अधिक पवित्र समझी जाने वाली नदी होने के साथ ही देश की छह प्रतिशत आबादी को पीने और सींचने का पानी उपलब्ध कराती है लेकिन जब यमुना के संरक्षण की बात हो तो उसके साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है। गंगा की इस छोटी बहन के साथ हो रहे इस व्यवहार के कारण इसकी स्थिति गंगा के मुकाबले कहीं अधिक खराब हो रही है। दरअसल, नदियों के संरक्षण का सवाल हमेशा गंगा के चारों ओर ही घूमता है, भले ही उससे गंगा को कुछ फायदा होता नजर न आ रहा हो। उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली से होकर गुजरने वाली यमुना 1,376 किलोमीटर लंबी है। इलाहाबाद में पवित्र यमुना का गंगा के साथ संगम हो जाता है। गंगा के साथ एकमेक हो जाने का ही नतीजा है कि जब भारत की विभिन्न संस्कृतियों की एकता की बात होती है तो उसे गंगा-यमुनी तहजीब की संज्ञा देते हैं।
वृक्षारोपण से जीवित हुए जलस्रोत
Posted on 02 Oct, 2011 12:32 PM

पेशे से अध्यापक सच्चिदानंद भारती ने पौड़ी जिले की थलीसेंण और बीरोंखाल विकासखंडों के एक-दो नहीं बल्कि 133 गांवों में पानी के संरक्षण और संवर्द्धन की मुहिम को अंजाम तक पहुंचाया है।

करोड़ों रुपए की सरकारी योजनाएं जो काम नहीं कर पातीं वह काम चिपको आंदोलन के सिपाही सच्चिदानंद भारती ने जनसहभागिता के आधार पर कर दिखाया। जंगल बचाने की मुहिम में तो वे चिपको आंदोलन से शुरुआती दिनों से ही जुटे हुए थे लेकिन जब उन्होंने जंगल बचाने की मुहिम के साथ जल को भी जोड़ दिया तो पौड़ी जिले के कई सीमांत गांवों के सूखे जलस्रोतों में फिर से जलधाराएं फूट पड़ीं। पेशे से अध्यापक सच्चिदानंद भारती ने पौड़ी जिले की थलीसेंण और बीरोंखाल विकासखंडों के एक-दो नहीं बल्कि 133 गांवों में पानी के संरक्षण और संवर्द्धन की मुहिम को अंजाम तक पहुंचाया है।
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