काका कालेलकर

काका कालेलकर
सूर्या का स्रोत
Posted on 24 Feb, 2011 04:59 PM
बारिश के होते हुए हम ‘कासा का सर्वोदय केंद्र देखने गये। वहां जाने के लिए ये दिन अच्छे नहीं थे, इसीलिए तो हम गये। बारिश के दिनों में छोटी-छोटी ‘नदियां’ रास्ते पर से बहने लगती हैं, उनमें पानी बढ़ने पर मोटर बसे भी घंटों तक रुकी रहती हैं। हमने सोचा कि हमारे सर्वोदय-सेवक हमारे आदिम-निवासी भाइयों के बीच कैसे काम करते हैं यह देखने का सही समय है।’
अबरी ईब
Posted on 24 Feb, 2011 04:55 PM
मैं कलकत्ता से वर्धा जा रहा था। गाड़ी में रात को बिना कुछ ओढ़े सोया था। ओढ़ने की जरूरत नहीं थी; फिर भी यदि ओढ़ लेता तो चल सकता था। सुबह पांच बजे जब जागा तब हवा में कुछ ठंड मालूम हुई; और चद्दर की गर्मी न लेने का पछतावा हुआ। आखिर ‘अब क्या हो सकता है?’ कहकर उठा। कवियों को जितना भविष्यकाल दिखाई देता है, उतना ही बाहर का दृश्य दिखाई देता था। सारा दृश्य प्रसन्न था, मगर पूरा स्पष्ट नहीं था।
तेंदुला और सूखा
Posted on 24 Feb, 2011 04:53 PM
आज मैं एक अनसोचा और असाधारण आनंद अनुभव कर सका।

हम वर्धा से द्रुग आये हैं। आसपास के दो गांवों में राष्ट्रीय ग्रामशिक्षा (बेसिक एज्युकेशन) शुरू करने के लिए शिक्षक तैयार करने वाली एक संस्था का उद्घाटन करने को हम सुबह चार बजे यहां आ पहुंचे। नहा-धोकर नाश्ता किया और बालोड़ के लिए रवाना हुए।
ऋषिकुल्या का क्षमापन
Posted on 24 Feb, 2011 04:51 PM
आज महाशिवरात्रि का दिन है। रोज के सब काम एक तरफ रखकर सरिता, सरित्पिता और सरित्पति का ध्यान करने के निश्चय से मैं बैठा हूं। सरिताएं लोक माताएं हैं। उनकी ‘जीवनलीला’ को अनेक प्रकार से याद करके मैं पावन हुआ हूं। पूर्वजों ने कहा है कि नदी का पूजन स्नान, दान और पान के त्रिविध रूप से करना चाहिए। मुझे लगा केवल स्नान-दान-पान ही क्यों? भक्ति ही करनी है तो फिर वह चतुर्विधा क्यों न हो?
सहस्रधारा
Posted on 24 Feb, 2011 03:09 PM


पुराना ऋण शायद मिट भी सकता है; किन्तु पुराने संकल्प नहीं मिट सकते। पचीस वर्ष पहले मैं देहरादून में था, तब सहस्त्रधारा देखने का संकल्प किया था। उत्कंठा बहुत थी, फिर भी उस समय जा नहीं सका था। कुछ दिनों तक इसका दुःख मन में रहा, किन्तु बाद में वह मिट गया। सहस्त्रधारा नामक कोई स्थान संसार में कहीं है, इसकी स्मृति भी लुप्त हो गयी। मगर संकल्प कहीं मिट सकता है?

सहस्रधारा
गुच्छुपानी
Posted on 24 Feb, 2011 10:15 AM

गुच्छुपानी कुदरत का एक सुन्दर खेल है। मैं सन् 1937 में देहरादून गया था, तब एक दिन की फुरसत थी। कई साथियों ने कहा, ‘चलो हम ‘गुच्छुपानी’ देखने के लिए चलें।’ अन्य साथियों ने ‘सहस्त्रधारा’ देखने का आग्रह किया। गुच्छुपानी नाम तो अच्छा लगा, लेकिन विस्मृति के आवारण के नीचे दबे हुए पुराने संकल्प ने अपना मत सहस्त्रधारा के पक्ष में दिया इसलिए उस समय गुच्छुपानी देखना रह गया।
नागिनी नदी तीस्ता
Posted on 23 Feb, 2011 05:05 PM
तीस्ता का असली नाम त्रिस्रोता है। ‘लाचुंग चू’ (चू यानी नदी)। यह नद
परशुराम कुंड
Posted on 23 Feb, 2011 05:00 PM
भारत की करीब-करीब उत्तर-पूर्व के पास लोहित-ब्रह्मपुत्र के किनारे ब्रह्मकुंड या परशुराम कुंड नाम का एक तीर्थ स्थान है। तिब्बत, चीन और ब्रह्म देश की सरहद के पास, वन्य जातियों के बीच, भारतीय संस्कृति का यह प्राचीन शिविर था। पश्चिमी समुद्र के किनारे सह्याद्रि की तराई में जिसने ब्राह्मणों को बसाया ऐसे भार्गव परशुराम ने सारे भारत की यात्रा करते-करते उत्तर-पूर्व सीमा तक पहुंचकर ब्रह्मकुंड के पास शांति पा
दो मद्रासी बहनें
Posted on 23 Feb, 2011 04:57 PM
इन दो बहनों के प्रति मेरी असीम सहानुभूति है। मद्रास शहर के जैसा इनका महत्त्व बढ़ाया है, वैसी ही इनकी उपेक्षा भी की है।
प्रथम समुद्र-दर्शन
Posted on 23 Feb, 2011 02:18 PM
पिता जी का तबादला सातारा से कारवार हो गया और हम लोगों ने सातारा से हमेशा के लिए बिदा ली। घर पर नरशा नाम का एक बैल था। उसे हमने मामा के घर बेलगुंदी भेज दिया। महादूर को छुट्टी देनी ही पड़ी। बेचारे ने रो-रो कर आंखें सुर्ख कर लीं। नौकरानी मथुरा को छोड़ते समय मां ने अपनी एक पुरानी किन्तु अच्छी साड़ी दे दी और उसने हम सबको बहुत दुआयें दीं। घर के बहुत सारे सामान-असबाब को ठिकाने लगाकर हम पहले शाहपुर गये औ
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