ज्ञानेंद्र पति

ज्ञानेंद्र पति
उस पार से आ रही है नाव
Posted on 28 Oct, 2013 04:00 PM
उस पार से
आ रही है नाव
इस ओर

गलही पर बैठा
उस ओर मुँह किए
डाँड़ खेता
आ रहा है नाविक
इस तरफ उसकी पीठ है
एक साँवली खुली मल्लाह पीठ
उस पीठ में भी मछलियाँ फड़कती हैं
गोया एक टुकड़ा नदी हो वह

वह है बीरू मल्लाह
बड़कों में लड़का, लड़कों में बड़का
कौन कहेगा, सातवीं बार सातवीं फेल
हो रहा सहज ही
गगास्नान
Posted on 28 Oct, 2013 03:59 PM
गंगा में स्नान कर रही
वह बूढ़ी मैया
दो ओर से बाँहे पकड़े बेटे-बहू को
लिए, सीढ़ियाँ उतरती
आई थी जल-तल तक जो कूँथती-कहरती
निहुरी-दुहरी
वह बूढ़ी मैया, दूर से आई
तुम क्या जानों
अपने को प्राणों तक प्रक्षालित कर रही है, पवित्र कर रही है
महाप्रस्थान-प्रस्तुत, डगमग पाँवों वाली वह बूढ़ी मैया
गंगातट
Posted on 28 Oct, 2013 03:58 PM
गंगातट, शुरू-रात की बेला
उस पार
पेड़ों की छायाभासी पट्टी के पीछे
चंद्रोदय के पूर्वाभास-सा फैला
उजाला
एक बस्ती की बत्तियों का समवेत प्रकाश-स्वर
जिसे आँखें सुनती हैं, अनायास
जब बँधकर देखती हैं
पार तट के क्षितिज पर
ईशान कोण में
वह तुम्हारा तारा है
यानी मेरा तारा
एक खासा प्रभावान तारा
अभी तक जिसका कोई नाम नहीं रखा गया
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