गंगातट

गंगातट, शुरू-रात की बेला
उस पार
पेड़ों की छायाभासी पट्टी के पीछे
चंद्रोदय के पूर्वाभास-सा फैला
उजाला
एक बस्ती की बत्तियों का समवेत प्रकाश-स्वर
जिसे आँखें सुनती हैं, अनायास
जब बँधकर देखती हैं
पार तट के क्षितिज पर
ईशान कोण में
वह तुम्हारा तारा है
यानी मेरा तारा
एक खासा प्रभावान तारा
अभी तक जिसका कोई नाम नहीं रखा गया
मानवीय नाम
तारों की पारस्परिक प्रकाश-तरंग-भाषा में
रह-रह उचरता होगा उसका कोई नाम जरूर
जिसका हमें पता नहीं चलता
बहरहाल, वह तुम्हारा तारा है
उसे उन्होंने छोड़ दिया है तुम्हारे लिए
वे-जिन्होंने तुम्हारे लिए जगमगाता बाजार सजा रखा है
मायावी बाजार, जिसमें
नए जुते की नोक पर जो एक तारा दिपता है
वह ध्रुव तारे से बड़ा है और ज्यादा चमकीला
वे तुम्हारी इच्छाओं और रुचियों के नियंता
तुम्हारे भीतर जरूरतें ही जरूरतें जगाते
उस तारे की उन्होंने
फालतू जान छोड़ दिया है
फालतू और गैरजरूरी
वह ब्लैकहोल में बदल जाए, उनकी बला से

पर सच यह कि उस तारक के वहां न होने से
बिगड़ सकता है मंदाकिनी का अस्तित्व-संतुलन
वह तुम्हारा तारा है
बाजार की बाँहों की पहुँच से ऊपर, बहुत ऊपर
तुम्हारी दृष्टि के भुजपाश में भर आता हुआ

उसे देखता हूँ मैं
जब तक कि तुम बाजार से घर लौटते हो
उसकी भास्वर कँपकँपाहट में
आकाश खँगालती वेधशालाओं की दूरबीनों की दृष्टि-छुवन की सिहरन

वह उगा है
अपनी विदिशा में
एकटक तुम्हें ताकता हुआ
कि तुम अपनी आँखें उठाओ
उसकी ओर
मोड़ो अपना माथा
बाजारू संदेशों से शिथिल अपना माथा
उसके निर्वाक् मौन के लिए

उस अनाम तारे से भरी आँखें
जब लौटती हैं
गंगातट जहाँ बैठा हूँ वहाँ से दिखता है
इकली पुरानी नाव की अंजलि में
घाटों की बाँक पर दिपती रोशनियों के लिए भरा है स्नेह
कि जिसमें बिजली-बत्तियों की भी अदृश्य बातियाँ
डूबी हैं

यह दृष्टि भ्रम है बेशक
लेकिन कौन कह सकता है दावे के साथ
कि इसमें
दो आँखों के पीछे के मस्तिष्क की इच्छा ही नहीं
उस नाव के मन की चाहत भी शामिल नहीं है

हम जिन वस्तुओं के निर्माता हैं
उनके भी अंतरंग को
हम भला कितना जानते हैं!

सब कुछ जाने हुए लोग
तुम्हें खींचते हैं दूसरी दिशा में

आनंद के बराबर अफसोस से भरा हुआ
उठता हूँ
कि दिखता है
बहुमंजिली बिल्डिगों के लिए काट डाले जिन्होंने
पृथ्वी पर के बरगद
उन्होंने
हमारे शीश के ऊपर
छोड़ दी है सप्तर्षि की छाँह।

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