Posted on 10 Feb, 2015 01:39 PMप्रायः पुण्य के लोभ के कारण, सिंचाई एवं जल की अन्य आवश्यकताओं तथा कीर्ति की आकांक्षाओं के कारण पोखर खुदवाने की परम्परा बहुत प्रचलित थी। पर पोखर के रूप में पोखर की मान्यता तभी होती थी जब उसका यज्ञ हो जाए। इसलिये यज्ञ और उत्सर्ग का विधान पोखर खुदवाने का अत्यंत आवश्यक अंग बन गया। यज्ञ के पश्चात् पूरे समाज को उस पोखर के जल और मछली, मखाना, घोंघा, सितुआ जैसी जल की वस्तुओं के स्वच्छन्द उपयोग का अधिकार