गुमान सिंह
गुमान सिंह
हिमालय नीति अभियान की प्रदेश-व्यापी स्वराज अभियान यात्रा
Posted on 16 Nov, 2015 12:14 PMसहभागी लोकतंत्र के विस्तार, विकास नियोजन में जन भागीदारी, विकास नीचे तक पहुँचने तथा भ्रष्टाचार से मुक्ति के रूप में एक महत्त्वपूर्ण पहल के तौर पर देखा जा रहा था। आज दो दशक बाद ये स्थानीय स्वशासन की संवैधानिक इकाइयाँ ऊपर की सरकारों की योजनाओं के निहित कार्यों के निष्पादन की व्यवस्था बनकर रह गई हैं। इसीलिये स्थानीय स्वशासन की निकाय, पंचायती राज तथा विकेन्द्रीकरण पर फिर से आम जनता में चर्चा किये जाने की जरूरत हो गई है। हिमाचल प्रदेश में अभी पंचायत व शहरी निकायों के चुनाव 2015-16 होने जा रहे हैं। इन चुनावों में हम किन-किन मुद्दों को अपने प्रतिनिधि चुनने के लिये सामने रखें, इसे लेकर हिमालय नीति अभियान प्रदेश व्यापी अभियान चलाकर आप तक इस बहस को ले जा रहा है।नई पंचायती राज व्यवस्था लागू होने के बाद पिछले 20 वर्षों के अनुभव और परिणामों को देखते हुए आज हमें इस व्यवस्था पर पुनर्विचार तथा चर्चा करनी चाहिए। हमारे देश में पंचायत की व्यवस्था सदियों पुरानी है। अंग्रेजी राज में 1885 में पहली बार स्थानीय निकाय अधिनियम लागू हुआ। इसके पीछे अंग्रेजी राज का मकसद भारत में निचले स्तर पर शासन की पकड़ को सुदृढ़ करना था।
आजादी के आन्दोलन के दौर में महात्मा गाँधी ने ग्राम स्वराज का नारा दिया और एक स्वशासी तथा स्वावलम्बी गाँवों की कल्पना की। गाँधी की कल्पना का ग्राम स्वराज तो स्थापित नहीं हो सका परन्तु 1992 में 73वें संविधान संशोधन ने पंचायत को स्थानीय स्वशासन की संवैधानिक इकाई का दर्जा दिया।
पर्यावरणीय प्रवचनों से आक्रोशित उत्तरकाशी की जनता
Posted on 03 Nov, 2015 09:32 AMबागोरी ग्राम सभा की एक महिला ने कहा कि हमारा गाँव दो नालों के बीच में है। आपदा के समय दोन