गुलजार

गुलजार
बादल
Posted on 24 Oct, 2014 03:11 PM
एक
रात को फिर बादल ने आकर
गीले-गीले पंजों से जब दरवाजे पर दस्तक दी
झट से उठ के बैठ गया मैं बिस्तर में

अक्सर नीचे आकर ये कच्ची बस्ती में
लोगों पर गुर्राता है
लोग बेचारे डाम्बर लीप के दीवारों पर-
बंद कर लेते हैं झिरयां
ताकि झांक ना पाए घर के अंदर-

लेकिन, फिर भी-
गुर्राता, चिघाड़ता बादल-
अक्सर ऐसे लूट के ले जाता है बस्ती
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