गोपालकृष्ण गांधी
आज का जमाना: हमारा समय
Posted on 01 Sep, 2014 10:47 AMपर्यावरण की समझ में हम कहां भटक रहे हैं, हम कहां भूल कर रहे हैं, यहकुछ नहीं बस कूड़ा-कचरा
Posted on 12 Apr, 2014 12:59 PMमेरी उमर रही होगी कोई दस बरस। हमारा घर औसत मध्यम वर्ग में भी मध्यम दर्जे का रहा होगा। इतना ऊंचा दर्जा नहीं था कि आज की तरह चमचमाते आधुनिक रसोई घर जैसा चौका होता हमारा और न इतना नीचा दर्जा था कि हम शुद्ध घी में पराठे भी न बना पाते। कुल मिलाकर उस चौके में दिन भर में जो कुछ भी बनता, रात तक कचरा लायक कुछ जमा होता नहीं था। मुझमें कुछ द्वेष-सा भरा होगा। तभी तो ऐसा हुआ कि गणतंत्र दिवस के अवसर पर मुझसे पिछले छह दशक में हुई उन्नति के बारे में कुछ विचार मांगे गए थे और मैं लिख बैठा कचरा। मुझे लिखना तो चाहिए था कि हमने इस अवधि में क्या और कैसी उन्नति की है, हमारा लोकतंत्र कितना खुला है, हमारे खेतों में जो हरित क्रांति हुई है, मछलियों से भरे हमारे समुद्र में, नदियों में जो नीली क्रांति हुई है, दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में जो श्वेत-क्रांति हुई और इन सबके ऊपर फिर सूचना और संचार की तकनीक के क्षेत्र में जो अदभुत क्रांति हुई है।लेकिन नहीं। जब मैं इस बारे में कुछ सोचने बैठा तो मेरे मन में ये विषय आए ही नहीं। सामने आया कचरा। बस शुद्ध कचरा। इस बारे में आगे बढ़ने से पहले थोड़ा विषयांतर हो जाने दें।
जब हम मोहम्मद अली जिन्ना के बारे में सोचते हैं तो हमें यही तो याद आता है और ठीक ही याद आता है कि वे दो देश सिद्धांत के प्रवर्त्तक थे, पाकिस्तान के जनक थे और पाकिस्तान के पहले गवर्नर जनरल थे। लेकिन इससे पहले अविभाजित भारत के आकाश में वे एक तारे की तरह चमकते थे और बंबई में वे एक अजेय, दुर्जेय सफल वकील की तरह प्रसिद्ध हुआ करते थे।
खामोशी का खतरनाक षड्यंत्र
Posted on 11 Apr, 2011 12:38 PMसभी के लिए संकट
जो लोग बोतलों वाला पानी खरीद सकते हैं, वे सोचते हैं कि जल संकट उनकी समस्या नहीं है। वे गलती कर रहे हैं। महज दो अनियमित मानसून हमें पानी के लिए तरसा सकते हैं।
सुनामी हमारे जीवन में उथलपुथल मचा सकती है। भूकंप हमें झकझोर सकता है। हम बूंद-बूंद पानी को तरस सकते हैं लेकिन हमारा जो रवैया है, उसे हरिवंशराय बच्चन की ये अमर पंक्तियां बहुत अच्छी तरह व्यक्त करती हैं : दिन को होली, रात दिवाली, रोज मनाती मधुशाला।
इसमें संदेह नहीं कि हम समृद्धि की राह पर आगे बढ़ रहे हैं और यदि मानसून नियमित रहा और कोई प्राकृतिक आपदा नहीं आई तो हम जल्द ही 9 फीसदी की विकास दर भी हासिल कर लेंगे। शायद इसके बाद हम 10 फीसदी विकास दर के बारे में भी पूरे आत्मविश्वास के साथ विचार करने लगें। लेकिन एक तरफ जहां हम एक खुशहाल ‘कल’ की ओर देख रहे हैं और उसके लिए योजनाएं बना रहे हैं, वहीं सच्चाई यही है कि हमारा जीवन कल में नहीं, ‘आज’ में है। हम आज जीते हैं, आज सांस लेते हैं। सवाल यह है कि हमारा आज कैसा है?