गोपाल कृष्ण

गोपाल कृष्ण
सिर्फ चिन्ता जताने से कुछ नहीं होगा
Posted on 08 Jun, 2017 12:22 PM

झारखंड में पानी की मात्रा व गुणवत्ता की स्थिति को जानने के लि
बाजार में पानी
Posted on 08 Dec, 2012 11:52 AM
ऐसे देश में जहां प्यासे को पानी देना पुण्य का काम समझा जाता है, पानी का बाज़ारीकरण, निजीकरण, कंपनीकरण और स्थानांतरण वास्तव में हमारी सभ्यता को चुनौती है। आज हाल यह है कि कंपनियों की दखल के चलते बोतलबंद पानी गांव-गांव तक पहुंच गया है।
पानी के निजीकरण की नीति
Posted on 26 Sep, 2012 11:28 AM
सरकारों का उल्टा पेंडूलम चालू हो गया है पहले सरकारीकरण और अब निजीकरण का। भारत में जीने के साधनों का समाजीकरण करने की परंपरा रही है। भारत का समाज अंतिम आदमी को ध्यान में रखकर संसाधनों का प्रबंधन करता रहा है। पानी के निजीकरण को बढ़ावा देने के लिए जून 2012 में भारतीय जल नीति लाई गई है। भारत के कई शहरों में पीपीपी मॉडल के नाम पर जल वितरण का निजीकरण किया गया है जो बूरी तरह फेल रहा। फिर भी सरकार कोई
शिप डंपिंग पॉलिसी पर यूरोप का दोहरा रवैया
Posted on 01 Jun, 2012 10:07 AM
कबाड़ा और बेकार जहाजों को एशिया के भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश के बंदरगाहों पर तोड़ा जाता है। जिससे न केवल पर्यावरणीय नुकसान होता है बल्कि वहां पर काम करने वाले मजदूरों के स्वास्थ्य पर भी बहुत बुरा असर पड़ता है। जहाजों को तोड़ने पर काफी जहरीला कचरा भी निकलता है। यूरोपीय देश अपने देश में तो कबाड़ा जहाजों को तोड़ने से रोकने के लिए तरह-तरह के नियम-कायदे बना रखे हैं। पर भारत जैसे देशों में अपने कबा
परमाणु सुरक्षा के गैरजिम्मेदार पहरेदार
Posted on 25 Jul, 2011 04:26 PM

संसद का बजट सत्र चल रहा है। बजट पर चर्चा और मंजूरी के दौरान उर्जा के ही एक विकल्प पेट्रोल और डीजल के दामों में बढ़ोत्तरी पर हो सकता है सांसद गतिरोध पैदा करें लेकिन सत्र के दौरान संसद की मंजूरी के लिए 36 अन्य विधेयक प्रस्तुत किये जाने हैं। इनमें एक विधेयक परमाणु उर्जा पर अमेरिका से हुए करार से संबंधित है। इस विधेयक के द्वारा यह तय किया जाना है कि अगर कोई विदेशी कंपनी भारत में परमाणु बिजलीघर लगात

जहाजों की कब्र से फैलता जहर
Posted on 06 Oct, 2010 11:33 AM
कुशीनगर जिले कप्तानगंज ब्लाक के बसहिया गांव निवासी 24 वर्षीय गौतम साहनी की पांच मई को गुजरात के सोसिय बंदरगाह पर एक पुराने जहाज की कटाई के दौरान फायर गैस की चपेट में आकर मौत हो गई। गौतम शिप विजय बंसल ब्रेकिंग कंपनी-158 में काम करते थे। उनका शव आठ मई को गांव आया। आज गौतम साहनी के परिजन आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं, लेकिन उन्हें कोई सहारा देने वाला नहीं है। जिस कंपनी के लिए वह काम करते थे, उसने भी गौतम के परिजनों की कोई मदद नहीं की। गुजरात के भावनगर के अलंग समुद्र तट को आप चाहें तो मृतप्राय जलपोतों की सबसे बड़ी कब्रगाह कह सकते हैं। पुराने जलपोतो को तोड़ने का यह दुनिया का सबसे बड़ा यार्ड है। आर्थिक प्रदर्शन के लिहाज से नई सदी का पहला दशक, इस कारोबार के लिए बेहतरीन साबित हुआ। विश्व व्यापार में आई मंदी ने जहाज मालिकों के लिए यह अनिवार्य बना दिया कि वे अपने पुराने पड़ चुके निष्प्रयोज्य जलपोतों को नष्ट कर दें। भारत में इस कारोबार के तेजी से बढ़ने का स्याह पहलू यह है कि विकसित देशों के सख्त पर्यावरणीय कानून एवं श्रम कानूनों से बचने के लिए भारतीय समुद्र तट एवं यहां के सस्ते मानव श्रम का इस्तेमाल किया जा रहा है। भारत के मजदूरों एवं पर्यावरण को जोखिम में डालने की इस कार्रवाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक मुकदमा चल रहा है। जहरीला प्रदूषण फैलाने के आरोप में अमेरिकी जलपोत प्लेटिनम-2 पर यह मुकदमा दर्ज किया गया था। इस साल फरवरी में यह जलपोत, भारतीय जलसीमा में गैरकानूनी तरीके से घुस आया था। लेकिन भारत सरकार के दांव-पेंच के चलते इस मुकदमें की सुनवाई में तेजी नहीं आ पा रही है। भारत सरकार के रवैए को देखते हुए इस बात की कम ही गुंजाइश है कि जलपोतों के जहरीले प्रदूषण से मजदूरों के बचाव एवं पर्यावरण की रक्षा की दिशा में कोई मुकम्मल कार्रवाई हो पाएगी।

भारत के सिर, एक बार फिर जहरभरा जहाज
Posted on 31 Oct, 2009 10:37 AM

जेसिका! ना ना नहीं, दिल्ली की मशहूर मॉडल जेसिका नहीं, यह एमएस जेसिका गुजरात के अलंग समुद्र तट पर खड़े एक जहाज का नाम है जिसने 4 अगस्त 2009 की सुबह छह मजदूरों की जान ले ली लेकिन दिल्ली के किसी अखबार में इस जेसिका के कारनामे की खबर नहीं छपी.

पानी- पर्यावरण का नाश करता शिपब्रेकिंग उद्योग
ब्रह्मपुत्र की हत्या का फरमान
Posted on 14 Jan, 2011 06:19 PM

ब्रह्मपुत्र को बचाने का नजरिया नदी घाटी की अवधारणा पर आधारित होना चाहिए न कि संकीर्ण राष्ट्रीय हितों पर, जिनके चलते भारत और चीन की सरकारें अपनी जनता की राय के प्रति अंधी हो चुकी हैं। चीन के प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ की भारत यात्रा के बाद की स्थिति में भारत, चीन और विशेषकर बांग्लादेश में पर्यावरण पर काम करने वाले समूहों के लिए सबसे ज्यादा चिंताजनक और ध्यान देने वाले सवाल त्सांगपो-ब्रह्मपुत्र प
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