गजानन माधव मुक्तिबोध

गजानन माधव मुक्तिबोध
मेरे युवजन, मेरे परिजन
Posted on 15 Sep, 2013 04:28 PM
अरुणोदय के पूर्व ही
तम-मग्न खँडहरों के मृद्-गंध-प्रसारों में
उद्ग्रीव कुंद-चंपा-गुलाब की गंध लिए मेरे युवजन-व्यक्तित्व यहां पर महक रहे
क्षिप्रा के तट
वीरान हवाओं में...
अरुणोदय के पूर्व ही।

गंभीर श्याम पीड़ा की डोह-भरी क्षिप्रा
आत्मा के कोमल धनच्छाय एकांतों में
स्वीया, अपरा
उन एकांतों में क्षिप्रा का
संवेदन-जल पी रहे
अंधेरे में
क्षिप्रा धारा
Posted on 15 Sep, 2013 02:57 PM
बहती है क्षिप्रा की धारा
इसमें धुलते पैर तुम्हारे
जो कोमल हैं अरुण कमल-से
इसमें मिलता सौरभ मादक
जल में लहराते अंचल से,
पर न ठहरती क्षिप्रा-धारा
ले जाती है जो कुछ पाया
सब कुछ पाया, कुछ न गँवाया
धुलकर तेरा रूप मनोहर
अपना सौरभ लेकर आया।
बहती जाती क्षिप्रा-धारा
लेकर तेरा सौरभ सारा
पर न ठहरती, ले जाती है
एक घाट से किसी दूसरे
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