इक्कीसवीं सदी में जल की बढ़ती महत्ता

हमारे ग्रह पर मौजूद ज्यादातर शुद्ध जल ध्रुवीय हिम प्रदेशों में जमी हुई अवस्था में है या फिर जमीन की अथाह गहराई मे मौजूद भूमिगत झीलों में जमा है, जहां तक पहुंचना संभव नहीं है। मात्र एक फीसदी शुद्ध जल लोगों को पीने व इस्तेमाल करने के लिए उपलब्ध है। पृथ्वी के ज्यादातर हिस्सों में लोग शुद्ध जल के लिए झीलों, नदियों, जलाशयों और भूमिगत जल स्रोतों पर निर्भर रहते हैं, जिनमें बारिश या हिमपात के जरिए पानी पहुंचता रहता है।

जैसा बीसवीं सदी में तेल को लेकर रहा, उसी तरह अब जल भी ऐसी अनिवार्य सामग्री हो सकती है, जिसके आधार पर इक्कीसवीं सदी करवट लेगी। हालांकि मैं कोई भविष्य वक्ता नहीं हूं जो यह बता सके कि अगली जंग पानी को लेकर होगी या नहीं, लेकिन इतना जरूर कह सकता हूं कि जो लोग किसी भी रूप में जल के कारोबार से जुड़ते हैं, उनकी अगले दस साल में चांदी हो सकती है। धरती पर लोगों की आबादी सात अरब तक पहुंचने, लगातार होते शहरीकरण व तीव्र विकास के साथ पानी की मांग में बेतहाशा बढ़ोतरी होने वाली है। वॉशिंगटन स्थित एक पर्यावरण थिंक टैंक निकाय वर्ल्ड रिसोर्सेस इंस्टीट्यूट से जुड़ी क्रिस्टी जेनकिंसन कहती हैं कि पिछली सदी में जल का इस्तेमाल जनसंख्या वृद्धि की तुलना में दोगुनी दर से बढ़ा है।

अपनी बात को स्पष्ट करते हुए जेनकिंसन कहती हैं कि वर्ष 2007 से 2025 के बीच जल के इस्तेमाल की दर भारत जैसे विकासशील देशों में 50 फीसदी और यूरोप व अमेरिका जैसे विकसित देशों में 18 फीसदी तक बढ़ सकती है और गरीब देशों में भी इसकी खपत काफी बढ़ेगी, जिसका आकलन उनकी अर्थव्यवस्था के विकास पर निर्भर करता है। वर्जिन ग्रुप के चेयरमैन रिचर्ड ब्रानसन ने अपने एक हालिया उद्बोधन में कहा कि आज के दौर में आप कहीं भी किसी नल पर जाकर एक गिलास स्वच्छ, ठंडा पानी भर सकते हैं, ऐसे में यह विश्वास करना मुश्किल होता है कि यह इक्कीसवीं सदी के वृहद कारोबारी अवसरों में से एक है और कारोबारियों के लिए समाज को कुछ वापस देने का बेहतरीन अवसर है, जो स्वच्छ पानी की आपूर्ति में निहित है।

लेकिन बीती सदी में वैश्विक स्तर पर पानी की मांग छह गुना तक बढ़ी है। यदि यही ट्रेंड जारी रहा तो हमारे मौजूदा संसाधन और इंफ्रास्ट्रक्चर मांग के मुताबिक पर्याप्त पानी की आपूर्ति में नाकाफी साबित होंगे। जहां वैश्विक जल आपूर्ति इंडस्ट्री इतनी विविधतापूर्ण है और कमिटेड कैपिटल के लिहाज से यह तेल, गैस व विद्युत इंडस्ट्री के समतुल्य बैठती है, उसके बावजूद इसमें ज्यादा निजी निवेश नहीं आया है। उद्यमियों व कारोबारी लीडरों के लिए यही समय है कि वे इससे जुड़ें क्योंकि इन चुनौतियों के सृजनात्मक समाधान तलाशने के लिए न सिर्फ उत्कृष्ट राजनीतिक नेतृत्व और नवोन्मेषी रिसर्च की जरूरत होगी, बल्कि खुद कारोबार का भी कायाकल्प करना होगा। फिर इससे समाज को भी फायदा होगा।

फंडा यह है कि...प्रचुर मात्रा में स्वच्छ जल की उपलब्धता की धारणा मात्र एक भ्रम है। हमारे ग्रह पर मौजूद ज्यादातर शुद्ध जल ध्रुवीय हिम प्रदेशों में जमी हुई अवस्था में है या फिर जमीन की अथाह गहराई मे मौजूद भूमिगत झीलों में जमा है, जहां तक पहुंचना संभव नहीं है। मात्र एक फीसदी शुद्ध जल लोगों को पीने व इस्तेमाल करने के लिए उपलब्ध है। पृथ्वी के ज्यादातर हिस्सों में लोग शुद्ध जल के लिए झीलों, नदियों, जलाशयों और भूमिगत जल स्रोतों पर निर्भर रहते हैं, जिनमें बारिश या हिमपात के जरिए पानी पहुंचता रहता है। यदि आप एक उद्यमी हैं और कारोबार के जरिए अपने समुदाय या समाज में कुछ बदलाव लाना चाहते हैं, तो आपको इस जल सेक्टर पर विचार करना चाहिए।
 

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