चुनौती को हमेशा अवसर में बदला जा सकता है

Beas river
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विभाग ने इस प्रोजेक्ट के तहत फिरोजपुर के सुधियां और चुरियां गाँवों में स्वयंसहायता समूह बनाए। इन्हें प्रशिक्षण दिया। दुनिया के ज्यादातर जलस्रोत जलकुंभी की समस्या से ग्रस्त हैं। यह बेहद आम समस्या है। लेकिन केरल राज्य ने न सिर्फ इस समस्या पर नियंत्रण का तरीका खोज लिया बल्कि उससे पैसे कमाने का रास्ता भी निकाल लिया है। कैसे? इसका जवाब है कि जलकुंभी को पानी से निकाल कर दो सप्ताह तक सुखाया जाता है। फिर सूखी जलकुंभी के बंडल बनाकर उन्हें उन महिलाओं को दिया जाता है जिन्होंने इस प्रोजेक्ट के तहत प्रशिक्षण हासिल किया है। शरणजीत कौर, राजवंत कौर, गुरमीत कौर। ये सभी पंजाब के चुरियां गांव की रहने वाली हैं। ब्यास और सतलज नदी के संगम पर यह गांव स्थित है। ये तीनों उन 100 महिलाओं में शामिल हैं जो बिना निवेश किए ही उज्जवल भविष्य की तरफ बढ़ रही हैं। इन्होंने अब तक सिर्फ अपने समय का ही निवेश किया है। कुछ महीने घर से दूर रहकर ट्रेनिंग हासिल करने में। कुछ महीने परियोजना को सफल बनाने में। हालांकि इस काम से पैसे अभी नहीं आ रहे हैं लेकिन वे जानती हैं अगले कुछ महीने में काफी आमदनी होने वाली है। यही नहीं वे इसे लेकर भी खुश हैं कि उन्होंने सदियों पुरानी समस्या का हल खोज लिया है। चुरियां गांव के गुरुद्वारे में अक्सर काम करने वालों का समूह इस नई परियोजना और उसके परिणामों पर चर्चा करता दिख जाता है। साथ ही यह भी कि और किस तरह एक-दूसरे की मदद की जा सकती है।इन लोगों ने केरल के अलेप्पी में इस परियोजना की ट्रेनिंग ली है। लौट कर उन्होंने गांव की दूसरी महिलाओं को इसके भी बारे में सिखाया है। उन्होंने सिर्फ समस्या का समाधान ही नहीं सीखा बल्कि उसके व्यावसायिक उपयोग का तरीका भी जाना।

अब समस्या भी बता देते हैं। पंजाब के हरिके वाइल्डलाइफ सेंचुरी में जलकुंभी। इसे अगर नियंत्रित नहीं किया गया तो यह वहां मौजूद सभी तालाबों और झीलों में फैल जाएगी। पानी के स्रोतों को खासा नुकसान पहुंचाएगी। सन् 1999 में तो जलकुंभी ने झीलों-तालाबों के 90 फीसदी हिस्से को ढंक लिया था। पानी में रहने वाले जीव-जंतु मरने लगे थे। तब सेना को बुलाना पड़ा। उसने ऑपरेशन सहयोग चलाकर झीलों-तालाबों को जलकुंभी से मुक्त कराया। लेकिन अब यह समस्या फिर गंभीर हो रही है। जलकुंभी बहुत तेजी से बढ़ती है। पानी की सतह पर फैलकर यह जलस्रोत के भीतर सूरज की रोशनी नहीं जाने देती। अब तक इसे हटाने के जो भी तरीके रहे वे ज्यादा प्रभावी नहीं थे। क्योंकि जितनी तेजी से इसे हटाया जाता उससे दोगुनी रफ्तार से यह बढ़ जाती है। लिहाजा, वन विभाग ने पर्यटन विभाग और वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) के सहयोग से स्थानीय लोगों के लिए एक परियोजना शुरू की। इसके तहत उन्हें जलकुंभी से हस्तशिल्प की चीजें बनाना सिखाया गया है।

विभाग ने इस प्रोजेक्ट के तहत फिरोजपुर के सुधियां और चुरियां गाँवों में स्वयंसहायता समूह बनाए। इन्हें प्रशिक्षण दिया। दुनिया के ज्यादातर जलस्रोत जलकुंभी की समस्या से ग्रस्त हैं। यह बेहद आम समस्या है। लेकिन केरल राज्य ने न सिर्फ इस समस्या पर नियंत्रण का तरीका खोज लिया बल्कि उससे पैसे कमाने का रास्ता भी निकाल लिया है। कैसे? इसका जवाब है कि जलकुंभी को पानी से निकाल कर दो सप्ताह तक सुखाया जाता है। फिर सूखी जलकुंभी के बंडल बनाकर उन्हें उन महिलाओं को दिया जाता है जिन्होंने इस प्रोजेक्ट के तहत प्रशिक्षण हासिल किया है। वे इससे अलग-अलग किस्म के उत्पाद और कलाकृतियां तैयार करती हैं। जलकुंभी का फाइबर पर्यावरण के लिए नुकसानदायक नहीं होता। इससे बैग, चटाई, कंटेनर, स्लीपर, पैन स्टैंड, डोरमेंट, फाइल कवर, पर्स, बास्केट आदि कई तरह के आइटम्स बनाए जा सकते हैं। बनाए भी जा रहे हैं। इनकी कीमत भी अच्छी मिलती है क्योंकि दुनियाभर में इस तरह के उत्पादों की काफी मांग है।

केरल में तो जलकुंभी से उत्पाद बनाने के काम ने उद्योग का रूप ले लिया है। इन उत्पादों को बेचकर यह उद्योग अच्छी खासी मात्रा में विदेशी मुद्रा जुटा रहा है। यही नहीं पानी के स्रोतों को जलकुंभी से मुक्त करने में भी यह काम मददगार साबित हुआ है। पंजाब में भी अब ऐसी ही परियोजना चलाई जा रही है। इसने हरिके सेंचुरी के आसपास 86 किलोमीटर के दायरे में बसे गाँवों के लोगों, खासकर महिलाओं के लिए उम्मीद की एक नई किरण दिखाई है।

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