कचरे की समस्या बिज़नेस का अवसर भी हो सकती है

कचरे को इकट्ठा करना और उसे निपटाना सिर्फ प्रशासन की समस्या और उन्हीं की चिंता का विषय नहीं है। यह हमारे लिए बिजनेस का अवसर भी हो सकता है। इस अवसर के बारे में विचार करते हुए इस साधारण से आंकड़े को ध्यान में रखें। धरती पर करीब सात अरब लोगों की आबादी है और हममें से हर व्यक्ति रोज 900 से 1400 ग्राम तक कचरे का उत्पादन करता है।

वह दिन दूर नहीं जब नगर पालिका या निगम आपके घर नोटिस भेज रहे होंगे। इसमें आपसे कारण पूछा जा रहा होगा कि आप गैरकानूनी तौर पर गली के नुक्कड़ पर रखे गए कचरा पात्र को क्यों भरे जा रहे हैं। बताया गया होगा कि आपकी इस लापरवाही से यह कचरा पात्र ओवरफ्लो हो चुका है। साथ में यह भी पूछा गया होगा कि आपकी इस लापरवाही के कारण क्यों न आपको दंडित किया जाए और हां। यह बिल्कुल मत सोचिए कि नगरीय निकाय की ओर से यह नोटिस आपको यूं ही भेज दिया जाएगा। इस नोटिस के साथ बाक़ायदा सबूत भी होगा। नोटिस भेजने से पहले तीन महीने तक आपके ट्रैक रिकॉर्ड को देखा जाएगा। पता किया जाएगा कि आप किस तरह कचरा का निपटारा करते हैं और कैसे नहीं। इस निगरानी की रिपोर्ट कारण बताओ नोटिस के साथ अटैच की जाएगी। निश्चित तौर पर आपको यकीन नहीं हो रहा होगा। तो हम आपको बताते चलते हैं कि इस तरह का पायलट प्रोजेक्ट कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू के उपनगरीय इलाके में डोमलूर में शुरू भी हो चुका है।

इसी महीने की 17 तारीख से। इस इलाके में रहने वाले सभी लोगों को एक स्वैप कार्ड दिया गया है। इसकी कोई कीमत नहीं ली गई है। योजना के तहत जब भी लोग कचरा कलेक्शन वैन को अपने घर का कचरा देंगे इस कार्ड को स्वैप करेंगे। इससे उनका रिकॉर्ड मेंटेन होगा। यही नहीं उन लोगों का रिकॉर्ड भी इसके जरिए रखने में आसानी होगी जो कचरा नहीं डालते। गलत जगह डालते हैं। या फिर इस काम में लापरवाही बरतते हैं। रहवासियों को दिए गए कार्ड इतने बढ़िया हैं कि उन्हें एक लाख बार तक स्वैप किया जा सकता है। प्रोजेक्ट के लिए शुरुआत में 2,000 घरों की पहचान की गई है। दो कचरा कलेक्शन वैन इनमें से हर घर के सामने दिन में दो बार आती हैं। एक सुबह सात बजे। दूसरी दिन में 2.30 बजे। दो बार वैन भेजने का आग्रह इलाके की रहवासी कल्याण समितियों ने किया है। यहां एक-एक हजार मकानों पर इस तरह की दो समितियां हैं।

कचरा कलेक्शन वैन (छोटे टिप्पर ट्रक) में जीपीआरएस भी लगाए गए है। इसके जरिए ट्रक दिन भर में कितना व कहां-कहां का इलाक़ा कवर करता है, इसका रिकॉर्ड रखा जाता है। टिप्परों पर वेब कैमरा और लाउडस्पीकर भी लगे हैं। लाउडस्पीकरों के जरिए वैन पहुंचने की सूचना रहवासियों को दी जाती है। जबकि वेब-कैमरों के जरिए पूरी प्रक्रिया का वीडियो बनाया जाता है। बाद में इस वीडियो को कचरा कलेक्शन ठेकेदार की वेबसाइट पर अपलोड किया जाता है। ताकि इसे आम जनता के साथ ही नगरीय निकाय के अफ़सर भी देख सकें और व्यवस्था को मॉनीटर कर सकें। इतना ही नहीं हर वैन में कचरा रखने के दो कंपार्टमेंट हैं। एक गीले और दूसरा सूखे कचरे के लिए। घरों से कचरा कलेक्शन के बाद टिप्परों से ही सीधे बड़े ट्रकों में कचरा उलट दिया जाता है। फिर आगे उस जगह जाता है जहां बड़े पैमाने पर कचरे का निपटान होता है। यह परियोजना एसएन बालासुब्रमण्यम के दिमाग की उपज है।

वे पिछले 20 साल से नगरीय निकाय के लिए कचरा कलेक्शन का काम कर रहे हैं। बतौर ठेकेदार। इस योजना का पायलट प्रोजेक्ट अगर सफल रहता है और सभी काम निर्धारित योजना के अनुसार होते हैं तो आने वाले दिनों में पूरा कचरा रोज ही निपटाया जा सकता है। नहीं तो दूसरा विकल्प यह रखा गया है कि सूखे कचरे को एक दिन छोड़कर और गीले कचरे का रोज निपटान किया जाए। पायलट प्रोजेक्ट का ट्रायल सफल रहा है और दो अक्टूबर से इसे अधिकृत रूप से शुरू कर दिया जाएगा। महात्मा गांधी के जन्म दिवस के दिन से।

दुनिया जानती है कि महात्मा गांधी साफ-सफाई को कितना पसंद करते थे। वे कभी अपनी टेबल पर कागज़ का एक टुकड़ा तक नहीं पड़ा रहने देते थे। अपने आश्रम की साफ-सफाई भी वे खुद ही करते थे। इसके जरिए वे अपने समर्थकों को संदेश देते थे, 'साफ-सफाई पर ध्यान दें।' शायद यही सोचकर बेंगलुरू नगर निगम के अधिकारियों ने नए प्रोजेक्ट की शुरुआत के लिए बापू के जन्म दिवस को चुना है। यह प्रोजेक्ट कितना सफल होता है, कितना नहीं आने वाले कुछ हफ्तों में पता चल जाएगा। लेकिन इससे अपेक्षाएँ बहुत हैं। कचरे के निपटारे की समस्या इतनी बड़ी हो चुकी है कि सिर्फ बेंगलुरू ही नहीं बल्कि देश के सभी नगरीय निकायों के लिए यह हाईटेक परियोजना मिसाल हो सकती है। बशर्ते, यह सफल हो जाए।

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