एकांत श्रीवास्तव

एकांत श्रीवास्तव
समुद्र पीछे खिसक रहा है
Posted on 18 Feb, 2015 04:25 PM
समुद्र पीछे खिसक रहा है
पीछे खिसक रहा है कच्छप
अपनी पीठ पर धरती को धारण किये

जैसे दिनों-दिन कम होता जाता है
पूर्णिमा के बाद चाँद
कम होती जा रही हैं उम्मीदें
आदमी पर आदमी का भरोसा
कम होता जा रहा है

यह घूमती हुई पृथ्वी
डायनासॉर-से खुले हुए
जबड़े ने आ गई है

पेड़ स्तब्ध हैं, हवा शांत
देह पसीने से तर
तीन नदियां
Posted on 09 Oct, 2014 09:48 AM
तीन नदियां
बड़ी दूर से बहती हुई
आकर मिलती हैं इस जगह
जैसे तीन बहनें हों
अपने-अपने दुखों की गठरी उठाए

एक का जल मिलता है दूसरी में
दूसरी की लहरें दौड़ती हैं तीसरी में
एक की धुन में गुनगुनाती हैं तीनों नदियां
एक की ठिठोली में खिलखिलाती हैं तीनों-नदियां
एक के दर्द से सिहरती हैं तीनों नदियां

थोड़ा आगे आम के बगीचे के करीब
मेधा पाटकर
Posted on 05 Dec, 2013 10:42 AM
समुद्र है तो बादल है
बादल है तो पानी है
पानी है तो नदी है
नदी है तो बची हुई है मेधा पाटकर

नदी है तो घर हैं
उसके किनारे बसे हुए
घर हैं तो गांव है
गांव है मगर डूबान पर
डूबान में एक द्वीप है
स्वप्न का
झिलमिल
मेधा पाटकर

वह जंगल की हरियाली है
चिड़ियों का गीत
फूलों के रंग और गंध के लिए लड़ती
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