भास्कर उप्रेती

भास्कर उप्रेती
टूट कर ही बनते हैं पहाड़
Posted on 12 Jul, 2014 12:52 PM
पहाड़ पर आई है आपदा
और मैं नही हूं इससे विचलित
पहाड़ पर आपदा दरअसल एक गति है।
ठहराव के खिलाफ रहे हैं पहाड़
वे बनते-टूटते-बिखरते-जुड़ते ही पहाड़ हो पाते हैं।
पहाड़ नहीं खींचे जा सकते सपाट लकीरों में
पहाड़ों की नहीं हो सकतीं मनचाही गोलाइयां।

पहाड़ तोड़ते ही आये हैं
अपनी ऊचाइयों को
बहते-फिसलते ही रहे पानी की तेज धाराओं में घुलकर।
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