धरती को प्रकृति ने बहुत कुछ दिया है, उनमें प्रमुख हैं पहाड़, खनिज, नदी और जंगल नदियां बहुत प्रकार की हैं, लेकिन सब में गंगा की अलग पहचान है। पूरे विश्व में किसी भी नदी की तुलना में गंगा सर्वाधिक आबादी को प्रभावित करती है। यह हिमालय के गंगोत्री से 19 किलोमीटर आगे गोमुख से निकलती है और कुल 2525 किलोमीटर की यात्रा पूरी कर बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इसका नाम जगह-जगह बदल जाता है। हिमालय में यह भागीरथी है तो देवप्रयाग में गंगा और कोलकाता में हुगली। इसकी जो धारा बांग्ला देश में प्रवेश करती है, उसे पद्मा कहते हैं।
'गंगा की दो और बड़ी विशेषताएं हैं। बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले यह बहुत बड़ा मुहाना ( डेल्टा ) बनाती है, जो नदी द्वारा बनाया गया विश्व का सबसे बड़ा मुहाना है । इसकी दूसरी विशेषता है कि अपनी करीब ढाई हजार किलो मीटर लंबी यात्रा के दौरान यह 1080000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को छूती है। गंगा के पहाड़ी हिस्से में जितनी आबादी रहती है, उससे बहुत अधिक आबादी इसके मैदानी हिस्से में रहती है। एक अनुमान के अनुसार गंगा बेसिन क्षेत्र में प्रति वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 390 लोग रहते हैं। जिस क्षेत्र से गंगा गुजरती है, वहां के लोगों के लिये यह प्राणवत है।'
गंगोत्री से देवप्रयाग पहुंचने पर यह अलकनन्दा से मिल कर भागीरथी से गंगा कहलाने लगती है। हरिद्वार पहुंचने से पहले गंगा सात धाराओं में बंट जाती है, लेकिन हरिद्वार पहुंच कर इसकी धारा फिर एक हो जाती है ये सातों धाराएं उन सातों ऋषियों की कुटिया से होकर गुजरती हैं, जो गंगा के धरती पर अवतरण के लिये तपस्यारत थे। सातों धाराओं का अवलोकन माँ मनसा देवी की पहाड़ी के ऊपर से किया जा सकता है। मनसा देवी जाने के लिये उड़नखटोला ( रोप-वे ) की व्यवस्था है। हां, जब उड़नखटोला नहीं चल रहा हो तब तो पैदल ही चढ़ना पड़ेगा। वर्ष 1990 में सातों धारा जितनी स्पष्ट दिखायी देती थी, वर्ष 2010 में कुछ निर्माणों के कारण उसमें कमी आ गयी थी।
गंगा की दो और बड़ी विशेषताएं हैं। बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले यह बहुत बड़ा मुहाना ( डेल्टा ) बनाती है, जो नदी द्वारा बनाया गया विश्व का सबसे बड़ा मुहाना है। इसकी दूसरी विशेषता है कि अपनी करीब ढाई हजार किलोमीटर लंबी यात्रा के दौरान यह 1080000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को छूती है। गंगा के पहाड़ी हिस्से में जितनी आबादी रहती है, उससे बहुत अधिक आबादी इसके मैदानी हिस्से में रहती है। एक अनुमान के अनुसार गंगा बेसिन क्षेत्र में प्रति वर्ग किलो मीटर क्षेत्र में 390 लोग रहते हैं। जिस क्षेत्र से गंगा गुजरती है, वहां के लोगों के लिये यह प्राणवत है।
'गंगा को जल मार्ग के रूप में प्रयोग किया जाता है। छोटी-बड़ी नावों से लेकर जहाजों से लोग यात्रा करके इस पार से उस पर जाते हैं। गंगा में चलने वाली छोटी नावें इसके किनारे बसे लोगों के जीवन को यातायात के माध्यम से नियंत्रित करती हैं। गंगा के ऊपर महात्मा गांधी सेतु (पटना), राजेन्द्र सेतु ( मोकामा ), लक्ष्मण झूला और राम झूला ( ऋषिकेश), हावड़ा पुल (कोलकाता) आदि दर्जनों सेतु बने हुए हैं, जिनसे प्रतिदिन लाखों लोग यात्रा करते हैं।'
गंगा का प्रवाह मार्ग
धार्मिक आस्था का प्रतीक पापहारिणी गंगा खुले आकाश के नीचे बहती सलिला गंगा का पानी नीला दिखता है, जो बड़ा मनोहारी लगता है। यमुना भी हमारे देश की प्रमुख नदी है, लेकिन उसका रंग हरा है। गंगा अपनी पवित्रता के लिये जानी जाती है। शुद्ध पात्र में रखे गंगाजल में वर्षों तक कीड़ा नहीं लगता है। इसीलिये इसे सलिला भी कहते हैं। पवित्र गंगा में स्नान करने से कई रोग दूर हो जाते हैं। आबादी और उद्योग के कारण गंगा में जगह-जगह गंदगी फैली रहती है, जिससे इसका जल प्रदूषित हो जाता है। थोड़ी गंदगी पचा कर यह प्रदूषण अवशोषक बनी रहती है 'जय गंगे', 'हर-हर गंगे' केउच्चारण के साथ गंगा में डुबकी लगाने पर सारा पाप धुल जाता है और मन हरा हो जाता है मन के ताजा रहने पर ही तन भी स्वस्थ रहता है। स्वस्थ तन और प्रसन्न मन का व्यक्ति ही अपने धन का उपयोग कर सकता है। धार्मिक आस्था वाले लाखों लोग प्रति दिन गंगा स्नान कर इसकी पूजा करते हैं। स्नान के समय भीगी देह से नदी में खड़े होकर लोग सूर्य को जल अर्पित करते हैं। नदी में खड़ा होकर सूर्य को जल देना स्वास्थ्य के लिये अति लाभकारी माना गया है। लेकिन प्रतिदिन गंगा स्नान कर पाना सबके लिये संभव नहीं है। इसीलिये गंगा स्नान के लिये कुछ तिथियां निर्धारित हैं। प्रतिदिन जो स्नान नहीं कर पाते हैं, वे भी उक्त तिथियों को गंगा स्नान करना चाहते हैं। वर्ष की दो संक्रान्ति, प्रति माह अमावस्या और पूर्णमासी, चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण आदि के दिन बहुत सारे लोग गंगा स्नान करते हैं। कार्तिक मास में गंगा स्नान का विशेष महत्व है। सुबह-सुबह अंधेरे में ही लोग गंगा के घाटों पर जाकर उसमें कम से कम पांच डुबकी लगा कर स्नान करते हैं। कार्तिक में गंगा स्नान यों तो महिला-पुरुष सभी करते हैं, लेकिन इनमें महिलाओं की संख्या अधिक रहती है।
गंगा दशहरा और गंगा अवतरण ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को गंगा दशहरा कहते हैं। यह मई-जून महीने में पड़ता है। इसी दिन गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था इसलिये गंगा दशहरा को गंगा का जन्मदिन भी कहा जाता है, लेकिन यह गंगा जयंती से अलग है। गंगा दशहरा दूसरे दिन निर्जला एकादशी व्रत पड़ता है। इन दोनों तिथियों को काफी संख्या में लोग गंगा स्नान करते हैं। कभी-कभी गंगा दशहरा और निर्जला एकादशी व्रत एक ही दिन पड़ जाता है। गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान करने से सभी प्रकार के पाप कट जाते हैं।
यों तो गंगा दशहरा को गंगा के सभी घाटों पर लोग स्नान करते हैं लेकिन इलाहाबाद (प्रयाग), गढ़- मुक्तेश्वर, हरिद्वार, ऋषिकेश और वाराणसी (काशी) में इस अवसर पर डुबकी लगाने का विशेष महत्व है।
गंगा दशहरा के दिन स्नान के साथ ही दान का भी महत्व है। लोग दस डुबकी लगाते हैं, दस की संख्या में वस्तुओं का दान करते हैं और दस फूल चढ़ाते हैं। मान्यता है कि इससे दस प्रकार के पाप (तीन कायिक, चार वाचिक और तीन मानसिक) का नाश हो जाता है। गंगा दशहरा के बाद बरसात का मौसम आ जाने से गंगा स्नान का विशेष प्रावधान नहीं है। बरसाती मौसम के कारण स्थानीय गंदगी बह कर गंगा को गंदा कर देती है। इसलिये स्नान के लिये बाहर लोग आना बंद कर देते हैं।
गंगा महात्म्य
गंगा का महत्व इस बात से भी आंका जा सकता है कि श्रीमद्भागवद्गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है, 'नदियों में मैं श्री भागीरथी गंगा हूं। प्रयाग (इलाहाबाद) में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर हर 12 वर्षों पर कुम्भ का मेला लगता है, जिसमें कई लाख लोग स्नान के लिये पहुंचते हैं। 6 वर्षों पर अर्द्ध कुम्भ लगता है। उस अवसर पर भी काफी संख्या में लोग वहां पहुंचते हैं। यों तो प्रति दिन दूर-दराज से लोग प्रयाग में संगम स्नान के लिये आते हैं, लेकिन कुम्भ मेला के दौरान इतनी भीड़ जुटती है। कि उसे नियंत्रित करने के लिये दूर-दूर से अतिरिक्त बल बुलाना पड़ता हैं। प्रयाग में स्नान करने से हजार तीर्थों का पुण्य मिलता है। माघ महीने में वहां स्नान करने से एक लाख गायों के दान का पुण्य लाभ मिलता है गंगा स्नान का समय प्रातःकाल ही है, लेकिन वाराणसी की सुबह प्रसिद्ध है। उसी तरह हरिद्वार में संध्या समय गंगा की आरती देखते बनती है गंगा आरती का दृश्य देख कर मन आस्था से भर उठता है। हरिद्वार हो या वाराणसी, गंगा किनारे से हटने का मन नहीं करता है।
भारत में गंगा उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल राज्यों से होकर गुजरती है इसके किनारे छोटे-बड़े अनेक नगर महानगर बसे हुए हैं, जिनमें हरिद्वार, ऋषिकेश, वाराणसी, गाजीपुर, इलाहाबाद, कानपुर, बलिया, पटना, बाढ़, मुंगेर, भागलपुर, साहिबगंज, कोलकाता आदि प्रमुख हैं। गंगा करोड़ों लोगों की जीवन-रक्षक नदी है। इसका जल पीने और स्नान के काम आता ही है, इससे हजारों वर्ग किलोमीटर में सिंचाई भी होती है और कई बड़े-बड़े उद्योग इसके किनारे और आस-पास स्थापित हैं गंगा में तरह-तरह की मछलियां पायी जाती हैं। मछुआरे नाव से जाल फेंक- फेंक कर मछलियां पकड़ते हैं। मछुआरों और मछली-व्यवसाय से जुड़े हजारों लोगों के लिये गंगा जीविकोपार्जन का साधन है।
गंगा की रेत पर ककड़ी, तरबूज, कद्दू, परवल आदि फल-सब्जी का बहुतायत से उत्पादन होता है। रेत पर शकरकंद, मिश्रीकंद, आलू की भी खेती होती है। यहां गेंहू, सरसों, तीसी आदि का भी अच्छा उत्पादन होता है। इसके उत्पादक किसान प्रति दिन नाव से सुबह-सुबह नदी पार कर अपने खेतों में जाते हैं और फसल लगाते तथा उसकी देख-रेख करते हैं। कुछ किसान अस्थायी तौर पर फूस की झोपड़ी बना कर रेत पर ही खेत में रहते भी हैं।
गंगा और यातायात
गंगा को जल मार्ग के रूप में प्रयोग किया जाता है। छोटी-बड़ी नावों से लेकर जहाजों से लोग यात्रा करके इस पार से उस पर जाते हैं। गंगा में चलने वाली छोटी नावें इसके किनारे बसे लोगों के जीवन को यातायात के माध्यम से नियंत्रित करती हैं। गंगा के ऊपर महात्मा गांधी सेतु (पटना), राजेन्द्र सेतु (मोकामा ), लक्ष्मण झूला और राम झूला (ऋषिकेश), हावड़ा पुल (कोलकाता) आदि दर्जनों सेतु बने हुए हैं, जिनसे प्रतिदिन लाखों लोग यात्रा करते हैं।
प्रदूषण
गंगा के जल में मछली पकड़ने बाले मछुआरे हो या इसकी रेत पर फसल उगाने वाले किसान, सबकी यह जिम्मेवारी है कि इसे प्रदूषित होने से बचाया जाये। नावों पर रहने वाले और नावों से पार कर खेतों तक जाने-आने वालों द्वारा भी गंगा में प्लास्टिक, टीन, शीशा आदि बहा दिये जाते हैं रेत के खेत पर उगाई जाने वाली फसलों पर भी रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग किया जाने लगा है। यह सब हमारी पवित्र सलिला गंगा नदी के लिये अति घातक स्थिति है। इससे गंगा को बचाना आवश्यक है।
सहायक नदियां, जो गंगा में आकर गिरती हैं, उन्हें बचाना गंगा बचाओ अभियान का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य है। सहायक नदियों को बचाने से तात्पर्य है, उनमें प्रदूषण फैलने से रोकना, क्योंकि सहायक नदियों का सारा कचरा वह कर मुख्य नदी में आ जाता है।
प्रदूषण से गंगा को बचाने का एक बहुत बड़ा उपाय है, इसके बेसिन के आसपास के इलाके को साफ-सुथरा रखना। कचरे को नदी में प्रवाहित नहीं कर उसके आसपास रहना भी घातक है। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि किनारों पर पड़ा कचरा उड़-बह कर नदी में आ जाता है।
गंगा में दूसरे प्रकार के भी अनेक जीव पाये जाते हैं। इसमें डॉल्फिन भी पायी जाती है ये जीव गंगा की बहुत सारी गंदगी चट कर जाते हैं। इससे प्रदूषण का खतरा कम हो जाता है और प्रदूषण का वास्तविक रूप उभर कर सामने आने से बच जाता है।
प्रकृति के बीच अप्राकृतिक हस्तक्षेप का प्रभाव बहुत खतरनाक होता है। गंगोत्री में भी प्लास्टिक और पॉलिथीन की थैलियों, तरह-तरह के डिब्बों और अन्य विषैले कचरों का पाया जाना प्रकृति में अप्राकृतिक हस्तक्षेप का ही नमूना है। लोग अपनी सुख-सुविधाओं के लिये प्रकृति से छेड़छाड़ करने में नहीं हिचकते हैं। विकास के नाम पर बांध आदि कृत्रिम निर्माणों और रूकावटों से गंगा की प्राकृतिक धारा प्रभावित हुई है। गंगा जब नाराज होती है तो उसे यह बाढ़ के रूप में प्रदर्शित करती है गंगा में गंदगी फेंकना एक परम्परा-सी हो गयी है, जिससे यह बुरी तरह प्रदूषित हो गयी। इसी का कुपरिणाम है कि जगह-जगह गंगा बुरी तरह गंदी दिखने लगती है। कुछ जगह गंगा जल क्रोमियम सल्फेट, आर्सेनिक, कैडमीयम, पारद, सल्फ्यूरिक एसिड, आदि विषैले रसायन पाये जाते हैं। ये रसायन जानलेवा हो सकते हैं। लेकिन यह सुखद बात है कि अब लोग सावधान हो गये हैं। और गंदगी उन्मूलन के लिये जी-जान से लग गये हैं।
गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिये सरकार ने सन् 1980 में गंगा एक्शन प्लान की शुरूआत की थी। इसके तहत एक काम यह किया गया था कि गंगा किनारे के अनेक उद्योगों में जल शोधक संयंत्र का प्रावधान किया गया। इससे गंगा में कई उद्योगों का उच्छीष्ट गिरना बंद हो गया। लेकिन जाने-अनजाने अब भी अशोधित उच्छीष्ट गंगा में बहा दिये जाते हैं। परिणामतः गंगा अब भी कहीं-कहीं प्रदूषित बनी हुई है। भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण द्वारा गंगोत्री क्षेत्र का पहला अधिकारिक अध्ययन सन् 1995 में किया गया। उसके बाद भी कई अध्ययन हुए हैं और हो रहे हैं। सर्वेक्षणों से यह बात सामने आयी है। कि गंगोत्री के ग्लेशियर पिघल कर सिकुड़ते रहते हैं, लेकिन हिमपातों के कारण उनका सिकुड़ना कम हो जाता है। यह एक प्राकृतिक व्यवस्था है।
लेकिन इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि कुछ लोगों की बात छोड़ दी जाये तो अब हर स्तर पर गंगा की गंदगी को रोकने का प्रयास जारी है। आम जन भी इसकी स्वच्छता और पवित्रता के प्रति सावधान और जागरूक हो गया है, जो बहुत खुशी की बात है बिना जन-जागरण और जन सहयोग के कोई कार्यक्रम सफल नहीं हो सकता।
गंगा के प्रदूषण की चाहे कितनी बातें हो जायें, लेकिन इसकी पवित्रता पर कभी कोई आंच नहीं आयी है। लोगों के मन में गंगा के प्रति जो श्रद्धा है, वह माँ से भी अधिक और विशिष्ट है। गंगा इतनी प्रतापशाली और पूज्यनीया नदी है कि इसके महात्म्य पर लाखों पृष्ठ लिखे जा चुके हैं। इसका माहात्म्य-लेखन आज भी जारी है और आगे भी जारी रहेगा।
प्रदूषण की मार झेलती गंगा की निरापद मौजूदगी को पहचानने में लोगों ने काफी देर कर दी लेकिन यह सुखद बात है कि गंगा की सलिलता पुनर्स्थापित हो रही है और लोगों की श्रद्धा पूर्वक बरकरार है। सबका यह कर्त्तव्य हैं कि गंगा को गंदा होने से बचायें ताकि इसकी सलिलता बनी रहे। और इसके प्रति लोगों की श्रद्धा में कोई कमी नहीं आये।
हर-हर गंगे, जय गंगे ।
स्रोत -संपर्क करें:
अंकुश्री
प्रेस कॉलोनी, सिदरील पोस्ट बॉक्स 28 नामकुम, राँची-834010
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जल चेतना | खण्ड 7 अंक 1 जनवरी 2018
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