अमर उजाला कॉम्पैक्ट
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प्रदूषण के कारण घट रही है पोलर बीयर की प्रजनन क्षमता
Posted on 10 Nov, 2010 08:59 AMप्रदूषण ने प्रकृति के मनमोहक स्वरूप को पूरी तरह बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इस कड़ी में अब यह बात सामने आयी है कि ऑर्गेनोहेलोजेन कंपाउंड्स (ओएचसी) नामक प्रदूषक तत्व धुव्रीय भालूओं (नर-मादा) के ऑर्गन साइज को कम कर रही है। यह रिसर्च इनवायरनमेंट साइंस एंड टेक्नोलॉजी जर्नल में प्रकाशित हुई है। ओएचसी में डाइऑक्सिन, पोलीक्लोरिनेटेड बाइफेनल्स और अन्य कीटनाशक दवाईयां शामिल है।
समुद्र में तेजी से घट रही सील मछलियों की आबादी
Posted on 09 Nov, 2010 12:59 PMप्रकृति की खूबसूरती और शालीनता को बिगाड़ने में इंसानी लालच आज भी सुरसा की भांति बढ़ रही है। हालिया सर्वे के मुताबिक दुनियाभर में हर पांचवें पौधे पर विलुप्त होने का खतरा है। पर, अब समुद्री जीवों पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं। नेशनल ओशीएनिक एंड एटमस्फेरिक एडमिनेस्ट्रेशन ने चेतावनी दी है कि समुद्र में सील मछलियों की संख्या निरंतर कम हो रही है। पर्यावरणविदों को डर है कि यदि इसे तत्काल नहीं
इंसान का 20 फीसदी दम घोंट रहा है मलत्याग
Posted on 06 Nov, 2010 08:40 AMक्या आपको पता है कि प्रत्येक इंसान मल त्यागने के दौरान साल भर में करीब दो टन कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस उत्सर्जित करता है? जी हां, स्पेन के शोधकर्ताओं ने एक शोध में बताया है कि खाने के बाद मनुष्यों द्वारा मल त्यागने के कारण 20 फीसदी से भी अधिक कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस उत्सर्जित होती है। मनुष्यों के मल त्यागने के कारण कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस के उत्सर्जन का तथ्य पहली बार सामने आया है।
प्रमुख शोधकर्ता इवान मुनोज ने बताया कि मनुष्यों के मल से प्रत्येक साल 20 फीसदी से भी अधिक कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस का उत्सर्जन होता है,
पैसफिक में मछली पालन उद्योग की उम्र 25 साल
Posted on 03 Nov, 2010 08:53 AMप्राकृतिक संसाधनों के अत्याधिक दोहन का कुपरिणाम सामने आने लगा है। पैसेफिक (प्रशांत) कम्युनिटी की रिपोर्ट के मुताबिक 2035 तक इन इलाकों में मछली पालन उद्योग पूरी तरह खत्म हो जाएगा। मत्स्य उद्योग के लिए अधिक मछली पकड़ना, इंसानों की बढ़ती आबादी और जलवायु परिवर्तन खतरनाक साबित हो रहा है। पैसफिक द्वीप समूह में 22 देश आते हैं।
भरी गर्मी में बारिश-ओले, कहीं लेने के देने न पड़ जाएं
Posted on 03 Nov, 2010 08:47 AMअमेरिका के दक्षिण पूर्वी इलाके में पिछले कुछ दशकों से गर्मी के मौसम में अधिक वर्षा हो रही है। मौसम विज्ञानियों का मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण हो रहे इन बदलावों के चक्कर में लेने के देने पड़ सकते हैं। ड्यूक यूनिवर्सिटी के पर्यावरणविदों ने इसके पीछे भी ग्लोबल वार्मिंग को जिम्मेदार माना है। उन्होंने इसका संबंध उत्तरी अटलांटिक उपोष्णकटिबंधीय (नैश) से जोड़ा है। शोधकर्ताओं ने बताया कि नैश
मंगल पर भी है पानी, नासा को रोवर के जरिए मिले सबूत
Posted on 03 Nov, 2010 08:43 AMनासा के खगोलविदों को मंगल की उपसतह पर पानी के साक्ष्य मिले हैं। नासा को ये सबूत मंगल पर करीब साल भर से फंसे रोवर यान से मिले है। उल्लेखनीय है कि नासा ने मंगल पर पानी व अन्य सबूतों की तलाश में रोवर यान भेजा था। पिछले साल रोवर के पहिए मंगल की सतह पर धंस गए और 22 मार्च के बाद से नासा के खगोलविदों और रोवर के बीच संपर्क कट गया था, लेकिन खगोलविदों ने फंसे रोवर को खोज लिया है और उससे उन्हें मंगल की
तूफानों के सामने को रहें तैयार, ग्लोबल वार्मिंग से बढ़ी ताकत
Posted on 03 Nov, 2010 08:32 AMदुनिया को धीरे-धीरे अपनी चपेट में ले रही ग्लोबल वार्मिंग ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि अटलांटा, चीन और इंडोनेशिया में तूफानों के कहर में ग्लोबल वार्मिंग की अहम भूमिका है। पिछले कुछ सालों में दुनिया भर के कई देशों में तूफानों की संख्या में इजाफा हुआ है। नवीनतम शोध के मुताबिक इस सदी के अंत तक अटलांटा और न्यूयॉर्क में तूफानों की संख्या दोगुनी हो जाएगी। रिसर्
हमारी सोच से भी ज्यादा पर्यावरण का ख्याल रखते हैं वृक्ष
Posted on 22 Oct, 2010 04:08 PMपर्यावरण को प्रदूषण मुक्त रखने में वृक्ष अहम योगदान देते हैं। शोधकर्ताओं ने बताया कि वृक्ष पहले किए गए शोध से निकले परिणाम से तीन गुना अधिक पर्यावरण को पदूषण मुक्त रखते हैं। वृक्ष वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों को अवशोषित कर उन्हें वायुमंडल में जाने से रोकते हैं। शोधकर्ताओं ने बताया कि शहरों में सामान्य और खतरनाक वायु प्रदूषक अवयवों को वृक्ष आसानी से अवशोषित करते हैं। इसलिए पर्यावरण को प्रदूषण मु