अजय झा

अजय झा
टिकाऊ विकास के सपने का ‘रियो’
Posted on 19 Jun, 2012 11:49 AM
रियो में ही 1992 में पृथ्वी शिखर सम्मेलन में भविष्य की सुंदर तस्वीर खींची गयी थी। पृथ्वी सम्मेलन से वह सब तो हासिल नहीं हुआ, जिसकी दरकार थी फिर भी उसने सकारात्मक वातावरण बनाया जो आज रियो+20 के रूप में हमारे सामने है। और अब, रियो+20 सम्मेलन में विश्वनेता कई महत्वपूर्ण निर्णय लेंगे जो सकारात्मक या नकारात्मक रूप से धरती की भावी तस्वीर बनायेंगे। इस वैश्विक सम्मेलन में जिन मुद्दों पर बहस और फैसले हो
डरबन से क्या हासिल हुआ
Posted on 20 Dec, 2011 06:03 PM

डरबन शिखर वार्ता ने सभी महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा कई वर्षों के लिए टाल दी है। सारे परिणाम भविष्य, संभावनाओं और अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक संबंधों पर निर्भर हैं। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के अनुसार अक्षय ऊर्जा में निवेश न किए जाने से जलवायु संकट से निपटने की कीमत साढ़े चार गुनी बढ़ जाती है। विश्व के नेता जब तक इस संकट से निपटने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति और अनुकूल राजनीतिक वातावरण नहीं बना पाते हैं तब तक यह निष्क्रियता संसार को महंगी पड़ेगी।

डरबन में जलवायु संकट पर अपने निश्चित समय से छत्तीस घंटे देर तक चली अंतर्राष्ट्रीय शिखर वार्ता की सबसे खास बात यह थी कि किसी भी महत्त्वपूर्ण पहलू पर समझौता हुए बिना इसके परिणाम को एक बड़ी कामयाबी की तरह पेश किया गया। बकौल आयोजक और विकसित देश, समझौता अत्यधिक सफल रहा। मंत्री मशाबेन, जो कि वार्ता की अध्यक्ष थीं, ने पिछली अध्यक्ष मैक्सिको की पैट्रीशिया एस्पिनोजा को भी पछाड़ दिया। वार्ता में क्योतो करार की दूसरी और बाध्यकारी अवधि पर समझौता हुआ, हरित जलवायु कोष (ग्रीन क्लाइमेट फंड) की शुरुआत की घोषणा की गई और सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण एक नई कानूनी व्यवस्था की घोषणा थी, जिसके तहत विकसित और विकासशील देश मिलकर जलवायु परिवर्तन के संकट से जूझने में बराबर की साझेदारी करेंगे। इससे अच्छा और क्या हो सकता था लेकिन क्या यह समझौता सही मायने में विश्व को पर्यावरणीय संताप से बचा पाएगा?
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