यमुना में जल की गुणवत्ता बेहतर हो, उस पर निगरानी रखने और उसकी सेहत में सुधार के लिए सिफारिश करने के लिए कई बोर्ड, कमीशन, कमेटी, अथॉरिटी व एजेंसी हैं लेकिन इनमें से किसी के पास यमुना के बारे में निर्णायक फैसला लेने का कोई अधिकार नहीं है। यमुना कई प्रदेशों से गुजरती है। हर प्रदेश अपने-अपने तरीके से यमुना की दशा सुधारने के लिए प्रयास करने का दावा करते हैं और कई मौक़ों पर एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करने का खेल भी चलता रहता है। केंद्र पानी को राज्य का मुद्दा बताकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। नदी के जानकारों का कहना है कि जब तक यमुना के लिए कोई प्रभावी एकल एजेंसी नहीं होगी जो यमुना से जुड़े हर पहलू पर अंतिम फैसला लेने में समर्थ हो तब तक यमुना की दशा में सुधार हो पाना मुश्किल है।
यमुना से जुड़ी सरकारी संस्थाओं में से अपर यमुना रिवर बोर्ड नामक संस्था का ज़िम्मा केवल यह है कि विभिन्न राज्यों के बीच तय करार के मुताबिक ही जल का बँटवारा हो। इस बोर्ड की भूमिका महज मध्यस्थ की तरह है लेकिन यह किसी राज्य को आदेश देने की स्थिति में नहीं है। यमुना स्टैंडिंग कमेटी का काम केवल यह देखना है कि बाढ़ क्षेत्र में कोई भी निर्माण न हो और यदि हो तो वह सुरक्षित हो लेकिन यदि कोई कमेटी की बात नहीं सुनता तो ये कुछ नहीं कर सकती। दिल्ली अर्बन आर्ट कमीशन (डीयूएसी) केवल परामर्श देने तक सीमित है हालांकि उसने स्वत: संज्ञान लेकर यमुना किनारे बने मिलेनियम डिपो हटाने के लिए डीडीए व डीटीसी को निर्देश दिए लेकिन दोनों ही एजेंसियों ने डीयूएसी का ही मखौल बनाया। डिपो आज भी अपनी जगह है। सेंट्रल ग्राउंड वाटर अथॉरिटी ने यमुना बाढ़ क्षेत्र को सुरक्षित घोषित कर रखा है। अथॉरिटी का ज़िम्मा यह देखना है कि यमुना बाढ़ क्षेत्र में कोई पानी निकालकर उसका व्यावसायिक इस्तेमाल न करे। एक एजेंसी का नाम है वाटर क्वालिटी असेसमेंट अथॉरिटी जिसके बारे में पब्लिक डोमेन में कुछ पता ही नहीं है कि उसके पास काम क्या है? सीपीसीबी के मानक तो नजर भी आते हैं लेकिन इस अथॉरिटी के किसी मानक के बारे में कोई जानकारी नहीं है।
मालूम हो कि संविधान के सूची- 1 में एंट्री नंबर 56 के मुताबिक बहुराज्यीय नदियों के प्रबंधन का ज़िम्मा केंद्र का है। लेकिन इस एंट्री के तहत कोई कानून नहीं बना है, इसलिए केंद्र किसी भी नदी के प्रबंधन की ज़िम्मेदारी नहीं लेता। जल एवं पर्यावरण विशेषज्ञों के मुताबिक आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड व अमेरिका में कई नदियों के लिए केंद्रीय एजेंसियाँ हैं। यूरोप में डेन्यूब नामक नदी सात देशों से गुजरती है उसके प्रदूषण में सुधार के लिए वहां इंटरनेशनल डेन्यूब कमीशन बना जिसके फैसले सातों देशों को मान्य हैं और नदी की हालत में सुधार है। उसी तर्ज पर यमुना के लिए भी एक कमीशन बनाए जाने की जरूरत है।
यमुना से जुड़ी सरकारी संस्थाओं में से अपर यमुना रिवर बोर्ड नामक संस्था का ज़िम्मा केवल यह है कि विभिन्न राज्यों के बीच तय करार के मुताबिक ही जल का बँटवारा हो। इस बोर्ड की भूमिका महज मध्यस्थ की तरह है लेकिन यह किसी राज्य को आदेश देने की स्थिति में नहीं है। यमुना स्टैंडिंग कमेटी का काम केवल यह देखना है कि बाढ़ क्षेत्र में कोई भी निर्माण न हो और यदि हो तो वह सुरक्षित हो लेकिन यदि कोई कमेटी की बात नहीं सुनता तो ये कुछ नहीं कर सकती। दिल्ली अर्बन आर्ट कमीशन (डीयूएसी) केवल परामर्श देने तक सीमित है हालांकि उसने स्वत: संज्ञान लेकर यमुना किनारे बने मिलेनियम डिपो हटाने के लिए डीडीए व डीटीसी को निर्देश दिए लेकिन दोनों ही एजेंसियों ने डीयूएसी का ही मखौल बनाया। डिपो आज भी अपनी जगह है। सेंट्रल ग्राउंड वाटर अथॉरिटी ने यमुना बाढ़ क्षेत्र को सुरक्षित घोषित कर रखा है। अथॉरिटी का ज़िम्मा यह देखना है कि यमुना बाढ़ क्षेत्र में कोई पानी निकालकर उसका व्यावसायिक इस्तेमाल न करे। एक एजेंसी का नाम है वाटर क्वालिटी असेसमेंट अथॉरिटी जिसके बारे में पब्लिक डोमेन में कुछ पता ही नहीं है कि उसके पास काम क्या है? सीपीसीबी के मानक तो नजर भी आते हैं लेकिन इस अथॉरिटी के किसी मानक के बारे में कोई जानकारी नहीं है।
मालूम हो कि संविधान के सूची- 1 में एंट्री नंबर 56 के मुताबिक बहुराज्यीय नदियों के प्रबंधन का ज़िम्मा केंद्र का है। लेकिन इस एंट्री के तहत कोई कानून नहीं बना है, इसलिए केंद्र किसी भी नदी के प्रबंधन की ज़िम्मेदारी नहीं लेता। जल एवं पर्यावरण विशेषज्ञों के मुताबिक आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड व अमेरिका में कई नदियों के लिए केंद्रीय एजेंसियाँ हैं। यूरोप में डेन्यूब नामक नदी सात देशों से गुजरती है उसके प्रदूषण में सुधार के लिए वहां इंटरनेशनल डेन्यूब कमीशन बना जिसके फैसले सातों देशों को मान्य हैं और नदी की हालत में सुधार है। उसी तर्ज पर यमुना के लिए भी एक कमीशन बनाए जाने की जरूरत है।
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