यमुना के लिए दिल्ली के श्मशान घाट से लेकर राजघाट तक, दिल्ली सचिवालय से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक के किवाड़ बंद क्यों

यमुना,फोटो क्रेडिट:-Iwp Flicker
यमुना,फोटो क्रेडिट:-Iwp Flicker

(हथिनीकुंड बराज से दिल्ली 250 किमी है। रास्ते में यमुनानगर, कैराना, बागपत जैसे दर्जनों शहर-गाँव हैं। पर कट्टर सरकार कहती है जानबूझकर बराज खोल दिया और कारोबारी मीडिया इसी पर भिड़ा है। मानो रास्ते के शहरों में रहने वाले इंसान ही न हों! प्रलय की रोकथाम पर सोचने का होश किसी को नहीं! लाल किले के पीछे की दीवार पर सौ-200 साल पहले के बाढ़ के निशान हैं। दिल्ली में 960 हेक्टेअर फ्लड प्लेन पर कब्जा/अतिक्रमण के बाद यमुना क्यों दोषी? - संपादकीय टिप्पणी)

हिंदुस्तान भर में पहले दिल्ली की सियासी शतरंज की चालों पर चर्चा होती थी। परंतु आज उसकी बाढ़, बदहाली, दिल्ली हुकूमत के मरकज, दिल्ली सचिवालय से लेकर महात्मा गांधी के राजघाट, जवाहरलाल नेहरू के शांतिवन, इंदिरा गांधी के शक्ति स्थल, सुप्रीम कोर्ट से लेकर दिल्ली के श्मशान घाट तक के दीवार के किवाड़ बंद होने पर जारी है।

तवारीख के पन्नों को पलटने से पता चलता है कि राजा देहलू ने एक नगर बसाया जिसका नाम देहलू पड़ गया। उसे लोग देहली कहने लगे। फिर इंद्रप्रस्थ का निर्माण हुआ। यमुना तट के इंद्रप्रस्थ का अस्तित्व कुछ समय तक ही बना रहा। फिर राजपूत, तुर्क, अफगान, और मुगलो के हाथों में दिल्ली की बादशाहत बनी रही और आठ से कम शताब्दियों में 15 मील के घेरे में दिल्ली बसी। इतिहास बहुत लंबा है। दिल्ली उजड़ी और बसती रही। आखिर मे बरतानिया हकूमत से आजाद होकर दिल्ली खुद मुख्तार बन गई। पहले दिल्ली फसील (चारदीवारी) तक ही महदूद थी। उसके बाद दिल्ली और नई दिल्ली। फिर पूर्वी और उत्तरी दिल्ली, दक्षिणी और पश्चिमी दिल्ली की शक्ल में बन गई। और आखिर में एनसीआर के रूप में भी इसका नामकरण हो गया।

पर आज तो चर्चा दिल्ली की जीवन रेखा, यमुना नदी की बाढ़ से पैदा हुई बदहाली पर है। दिल्ली के पुराने मोहल्ले, कटरो, कूचो, गलियों, बाडो के बाशिंदे इसे कभी 'यमुना नदी’ कहकर नहीं पुकारते, आज भी उनकी जबान पर 'जमुना जी' चढ़ा है। यमुना कभी भी इनके लिए एक नदी तक ही सीमित नहीं रही। एक ऐसा वक्त था जब शहर के लोग जमुना जी में स्नान करके खुद को धन्य, मोक्ष की प्राप्ति समझते थे। जब दिल्ली चारदीवारी के दिल्ली गेट, कश्मीरी गेट, लाहौरी गेट अजमेरी गेट, दिल्ली गेट तक महदूद थी, तो यहां के रहने वालों के लिए यह रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने का जरिया थी। पीने का पानी, किनारे पर पैदा होने वाली साग सब्जी, गाय भैंस को पानी पिलाने, नहलाने, तैराकी के मेले, मरघट वाले हनुमान बाबा का मंदिर, शव यात्रा के आखिरी पड़ाव से पहले जमुना जी के सामने हनुमान मंदिर के पास बना चबूतरा, जहां पर अर्थी को रख कर पैर, सिर की पोजीशन को बदलने, तथा दूसरे कर्मकांड करने की जगह के साथ-साथ पुराना अस्थिग्रह जहां क्रिया के बाद अस्थियों को रखा जाता था। बाद में वहां से ले जाकर गंगा जी में प्रवाहित कर दिया करते। वहीं दिल्ली की बुजुर्ग महिलाओं का भोर में ही जमुनाजी जाकर स्नान ध्यान करना एक आम बात थी। बड़े पैमाने पर शहरी, लोटे, गमछे, सरसों के तेल की मालिश करने के लिए शीशी, ले जाकर वर्जिश करने से लेकर नहाने, कपड़े धोने की नित्य क्रिया करते थे। धार्मिक त्योहारों पर बड़े मेलों का आयोजन तो यहां होता ही था, कुश्ती, पतंगबाजी, तांगा दौड़, कबड्डी जैसे खेलों की टक्कर देखने को मिलती थी।

1857 के गदर में, मेरठ के विद्रोहियों ने (कलकत्ता दरवाजे) कश्मीरी गेट से दाखिल न होकर दिल्ली दरवाजे से इसलिए दाखिल हुए,क्योंकि बचाव के लिए सामने यमुना नदी थी। बहादुर शाह जफर को भी यमुना नदी ने हीं बचाया, ब्रितानिया हुकूमत की फौज ने दिल्ली की घेराबंदी कर ली। तो बादशाह जफर नदी के रास्ते एक नाव पर सफर करके सुरक्षित हुमायूं के मकबरे में पहुंच गए। यमुना जी बादशाहों से लेकर गुरबत में रहने वाले सबके लिए एक वक्त मनोरंजन का साधन थी। तवारीख बताती है कि शाहजहां जमुना में नाव चला कर लुफ्त उठाता था। वही दिल्ली का गरीब आवाम जमुना जी के घाटों की बुलंदियों से छलांग लगाकर छपाक से पानी में कूदकर अपने जोहर, तैर कर आगे निकलने की ताकत का इजहार करते थे। नावो मैं बैठकर नौजवानों की टोली दूसरी नाव मैं सवार टोली से टक्कर लेने के लिए जोर-जोर से चप्पू तथा लंबे बांस के सहारे आगे निकालने का जी तोड़ प्रयास करती थी। यही नहीं लाल किले की बेगमें चांद की रोशनी में रात को नाव में बैठकर सैर करती थी। 

मुल्क की राजधानी का खिताब पाए यमुना नदी के किनारे बसे, इस बाग बगीचे, मौसमी फलों से लदे, खुशबू से महकते, कुआं, बावड़ी के ठंडे जल से लबालब, तिजारत और गंगा जमुनी तहजीब की पहचान, जहां मशहूर मारूफ, शायर, कवियों, सूफियों का बसेरा हो। यमुना नदी के किनारे बने लाल किले के परकोटे के सामने से शुरू हुई मजहबी इबादत के प्रतीक, जैन लाल मंदिर, उससे सटे गौरी शंकर मंदिर, चार कदम के बाद चर्च, फिर गुरुद्वारा शीशगंज, सुनहरी मस्जिद, आखिरी छोर पर बनी फतेहपुरी मस्जिद जहां मौजूद है उसकी यह दुर्गति क्यों हुई?

राजधानी होने का कारण बढ़ती हुई आबादी तो इसकी जिम्मेदार है ही। दिल्ली के यमुना किनारे खादर में लगभग 3600 कालोनियां बसने, यमुना के अधिकार क्षेत्र वाली जमीन पर स्वामीनारायण मंदिर, कॉमनवेल्थ अपार्टमेंट, दिल्ली सरकार का नया सचिवालय, इंद्रप्रस्थ इंदौर स्टेडियम, इंटरस्टेट बस अड्डा का डिपो, बिजली घर जैसी इमारतें बना दी गई। अनुमान है कि यमुना तकरीबन डेढ मील पूरब की तरफ सरक गई। दक्षिण दिल्ली के वन क्षेत्र से पानी का बहाव पहले बारापुल, तहखंड, बुधिया नालों से होकर रिज की पहाड़ियों का पानी यमुना में पहुंचा करता था, अब यह पानी की जगह गंदगी जमुना में पहुंचा रहे हैं। यमुना की बदहाली को लेकर 1978 से 1983 तक दिल्ली विकास प्राधिकरण, बाढ़ सिंचाई विभाग, दिल्ली जल बोर्ड ने यमुना से प्रदूषण खत्म करने के लिए बड़ी स्कीमें बनाई, सर्वे किये, रिपोर्ट बनाई परंतु वह कागजी कार्रवाई तक ही महदूद रही। वाटर टैक्सी चलाने का प्लान भी तैयार हुआ। डीडीए ने अब तक करीब दो दर्जन मास्टर प्लान बना चुका है। हर प्लान में यमुना को लेकर कई प्रावधान किए गए, परंतु वही ढाक के तीन पात। 

आज हालत यह बन गई कि अब उसमें तमाम शहर की गंदगी, गंदे कपड़े, कबाड़, पॉलिथीन मरे हुए जानवरों, फैक्ट्रियों कारखानों से निकलने वाले जहरीले रासायनिक तत्व, धार्मिक त्योहारो मैं इस्तेमाल होने वाली सामग्री पुतले पुराने देवी देवताओं के कैलेंडर, बासी हो गए फूल, चिता की राख इत्यादि मिलाए जा रहे हैं। जो जमुना दिल्ली की जीवन रेखा मानी जाती थी, आज वह खुद जीवन मांग रही है।

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Post By: Shivendra
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