यमुना जिये अभियान


भारत की अनेक पवित्र नदियों में से एक नदी यमुना है जो उत्तराखंड के यमनोत्री के बंदरपूछ ग्लेशियर से निकलकर देहरादून कुरुक्षेत्र पानीपत होते हुए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र नई दिल्ली पहुंचती है. फिर मथुरा, आगरा होते हुए अंततः उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में गंगा नदी से मिलकर संगम बनाती हुई प्रसिद्धि पाती है. यह उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, दिल्ली आदि राज्यों को पवित्र करती है. यमुना जो कालिंदी के नाम से जानी जाती है के बारे में कहा गया है इसके बारे में कहा गया है कि - तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहुछाए.

वही यमुना आज अपने अस्तित्व की लडाई लड रही है. यमुना में इतना प्रदूषण बढ गया है कि इसे नदी कहा भी जाय या नहीं यह सोचना होगा. दिल्ली में तो यमुना पूर्ण रूप से अपने अस्तित्व को खो चुकी है. इसके बढते प्रदूषण पर सरकार ने कुछ खानापूर्ति की है पर विशेष रूप से स्वयंसेवी संस्थाओं ने ही प्रयास किया है उसी में एक प्रयास यमुना जिये अभियान का है, जिसे पीस फाउंडेशन के तहत संचालित किया जा रहा है. इसके कन्वेनर मनोज मिश्र हैं जो पहले आईएफएस रह चुके हैं. इस अभियान ने 550 से अधिक दिन का अनशन भी जारी कर रखा है जो निजामुद्दीन ब्रिज और अक्षरधाम मंदिर के पास लगातार चल रहा है. इस अभियान से ऐसे लोग जुडे हैं जिनकी आस्था यमुना में है और इसके तट पर रहने वाले किसान इसकी चिंता कर रहे हैं. अक्षरधाम मंदिर यमुना नदी के तट पर रह रहे किसानों की जमीन पर कब्जा करके बना है, वे लोग भी इस अभियान में शामिल हैं. साथ ही राष्ट्रमंडल खेलों के नाम पर बन रहे खेल गांव भी यमुना के तटों को पाटकर बनाए जा रहे हैं. इस अभियान से जुडे सभी लोगों का मकसद है कि यमुना को बचाना है यानि यमुना जिये अभियान. इस अभियान की सफलता यही है कि अभी तक यह अभियान बिना किसी भय के चल रहा है. अनेकों धमकी मिलने के बाद भी यहां पर कार्यकर्ता खुले दिल से शामिल होते हैं. इस आंदोलन को गति प्रदान करने का श्रेय मैग्सेसे पुरस्कार विजेता राजेंद्र सिंह का भी रहा है.

इस अभियान के बारे में जानने से पहले कुछ तथ्य यमुना के प्रदूषण के बारे में भी जान लेना आवश्यक है. यमुना नदी में तीन प्रमुख समस्याएं हैं-
1. अन्याय 2. अतार्किकता 3. खतरनाक स्थिति

जब तक इन तत्वों का समाधान नहीं किया जाएगा तब तक यमुना को पुनर्जीवित और पवित्र नहीं बनाया जा सकता. अन्याय के क्षेत्र में सबसे बडा कारण है अतिक्रमण, जो यमुना के तटीय इलाकों में किया गया है. 22 किमी तक यमुना O जोन में आ गई है. यह समस्या राज्य सरकार और न्यायपालिका के समक्ष रखी गई. कई कालोनियां बनाई गई हैं साथ ही निजामुद्दीन ब्रिज के पास अक्षरधाम मंदिर का निर्माण अतिक्रमण करके ही किया गया है, जिस पर लंबी लडाई लडी जा रही है, शासन और न्यायिक दोनों स्तर पर. मेट्रो का डिपो बन रहा है, नजफगढ वाला नाला वजीराबाद ब्रिज में मिलकर यमुना के जल को प्रदूषित कर रहा है. सीवेज का जल भी इसमें मिलाया जा रहा है. एक समस्या भूमिगत जल में आ रही कमी भी है. राष्ट्रमंडल खेल 2010 का आयोजन भी एक बडी समस्या है, क्योंकि इसके लिए खेल गांव तटों पर ही बन रहा है. इंडियन ओलंपिक संघ जो एक गैर सरकारी संगठन है वो सरकार की मदद से सारे मानकों को ध्वस्त करते हुए इस क्रीडा का आयोजन कर रहा है. तीसरा प्रमुख कारण जो खतरे को दर्शाता है वह यमुना में आने वाली अनियंत्रित बाढ है. नजफगढ के ड्रेनेज सिस्टम के पूरी तरह ध्वस्त होने के कारण 1977, 78, 95 में भारी बाढ आ चुकी है. 2008 में भी यमुना में बाढ आई जो एक समय खतरे के निशान को भी पार कर गई थी. यमुना को बचाने के लिए कई प्रयास किए गए हैं उसी में से राज्य सरकार द्वारा केंद्र के सहयोग से यमुना एक्शन प्लान बनाया गया, पर यह योजना असफल रही. दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अनेकों मुकदमें लंबित हैं, अदालतों द्वारा कई फैसले भी दिए गए.



सरकार पहले O जोन को देखते हुए अतिक्रमण व प्रदूषण कम करने के लिए तत्पर हो और बैन लगाया जाय. यमुना में न्यूनतम प्रवाह तय हो.

- खेल गांव के प्रस्ताव को रद्द कर इसे कहीं और बनाया जाय.
- यमुना के प्रदूषण की नियमित जांच करवाई जाय.
- दिल्ली सरकार रेन वाटर हॉरवेस्टिंग को प्रोत्साहित करे.
- सरकार व संसद मिलकर नदियों के लिए एडवाइजरी कमेटी बनाए.
- यमुना सतलुज लिंक को प्रभावी बनाया जाय.
- अक्षरधाम से अतिक्रमण की जमीन लोगों को वापस दिलाई जाय.


यमुना जिये अभियान ने पीस फाउंडेशन के साथ मिलकर इस अभियान में जनहित याचिका दायर की है. वह राज्य सरकार, गवर्नर, सभी लोकल बॉडी व मीडिया को सूचित कर इस शांतिपूर्ण अभियान को चला रहा है जो सराहनीय है.

सुशील कुमार सिंह
साभार- ग्लोबल ग्रीन
 
Path Alias

/articles/yamaunaa-jaiyae-abhaiyaana

Post By: admin
Topic
×