यदि पानी हुआ बर्बाद - तो हम कैसे होंगे आबाद

जल जीवन है, जीवन जल ।
जल पर निर्भर, अपना कल ।।


यदि पानी हुआ बर्बाद - तो हम कैसे होंगे आबादयदि पानी हुआ बर्बाद - तो हम कैसे होंगे आबादब्रहमांड के किसी भी ग्रह पर जीवन तलाश करने के लिए हमारे विज्ञानी सबसे पहले चट्टानों में जमी बर्फ या मिट्टी में नमी को खोजते हैं। ऐसा क्यों? उत्तर मिलता है जहां जल होगा वहीं जीवन होगा।

बिन पानी सब सून-जब पानी ही नहीं रहेगा तो बिना पानी के जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती

दरअसल हम पानी को अपने हिस्से में आयी जायजाद मानते हैं। शासकीय हैंडपंप को इतनी बेरूखी से चलाते हैं कि उसके प्राण चलाने वाले के हाथ में आ जाते हैं। पानी एवं पानी के स्रोत किसी एक की सम्पदा नहीं अपितु पूरे समाज की सम्पदा है। पानी पर, पेड़ पौधों से लेकर समूची मानवता का हक है। आज ज्यादातर लोगों की सोंच दूसरे की प्यास की कीमत पर अपना आनन्द भोगने की है। इस प्रकार हमने पानी को बेढंगे तरीके से बहाकर बर्बाद किया है। और धरती के अंदर छिपे हुए भूमिगत पानी के घड़े को भी अनियंत्रित तरीके से दोहन करके खाली कर दिया है और आज सभी के सामने सूखा गर्मी और अनावृष्टि के परिणाम दिखाई दे रहे हैं।

बुजुर्गों ने कहा भी है-
धरती माँ की कोख में जल के हैं भंडार।
बूँद-बूँद को तड़पते, फिर भी हम लाचार ।
जल के दोहन के लिए, लगा दिया सब ज्ञान।
पुनर्भरण से हट गया, सब कृषकों का ध्यान।।

हमने गलती कहां की- हमने अपने ज्ञान का उपयोग पानी को बर्बाद करने के साथ- साथ धरती के अंदर छिपे हुए भूमिगत जल को अनियंत्रित तरीके से उसकी छाती से मशीनों के द्वारा छिद्र करके दोहन किया।

हमने कभी भी इस जल को फिर से जमीन में पहुंचाने का प्रयास ही नहीं किया। बल्कि कुंए और नलकूपों की गहराई ही बढ़ाते चले गए।

गहरे से गहरे किए, सबने अपने कूप।
बची कसर पूरे करी, लगा-लगा नलकूप।।


एक कौवे की समझदारी-


कौवे की कहानी सभी जानते हैं कि उसने अपनी प्यास बुझाने के लिए पानी से भरे हुए आधे घड़े में कंकड़ डाल डाल कर पानी को उपर लाकर अपनी प्यास बुझा कर उड़ गया। हमने भी कौवे जैसी समझदारी का बार-बार प्रयोग करके धरती के भीतर छिपे हुए पानी के आपातकालीन घडे को खाली कर दिया।

कुएं, नलकूप, विद्युत मोटर के द्वारा हम सारा पानी उलीच चुके हैं। गैरिजों में पानी बहा रहें हैं। हम कौवे की तरह उड़कर दूसरी जगह भी नहीं जा सकते ।

इसलिए धरती के अंदर छिपे हुए पानी के खाली घड़े को हमें बरसात के पानी का संचय करके वृक्ष लगा करके फिर से भरना होगा। जिससे खेत का पानी खेत में और गांव का पानी गांव में संचित हो सके। हमें प्रकृति से प्राप्त वर्षा के तेज गति से बहने वाली पानी को चलना सिखाना होगा।

फिर चलने वाले पानी को रेंगना सिखाना हेागा और रेंगने वाले पानी को घिसटने पर मजबूर करना होगा और वह जब घिसटने लगे तो उसे हम बुद्धिमत्ता पूर्ण तरीके से वहीं रेाकने का प्रयास करें तभी हम पानी की बर्बादी को संचय में बदल कर वसुन्धरा के खाली भण्डारों को भर पाएंगें। और सार्थक होंगी यह पंक्तियां-

वर्षा जल को रोककर, भर लीजै भण्डार।
कूप और नलकूप, फिर कभी न हो बेकार।।

पानी की बर्बादी कैसे कम हो-


1. नल की टोंटी सावधानी से बंद करें।
2. नाबदानों के निकास वाले स्थान पर 1 मीटर चौड़ा एवं गहरा गड्ढा बोल्डरों से पाटकर बनाएं। इससे ग्राम में स्वच्छता भी रहेगी एवं नाबदान का पानी भी उसी में समा जाएगा।
3. बहती हुई पाइप लाइनों को ठीक रखॆं।
4. हैंडपंप के प्राण न लें यह पूरे मोहल्ले एवं कस्बे का सेवक है। इसे मित्रवत रूप से चलाएं।
5. किसान साथी 3 वर्ष में एक बार ग्रीष्मकालीन जुताई करें।
6. खेतों में खेत तालाब बनवाएं एवं मेड़बंदी पर विशॆष ध्यान दें
7. जुताई ढाल के विपरीत करें एवं फसलों की बोनी लाइनों में करें।
8. अपने खेतों पर एवं गांवों में शासकीय भवनों के आस-पास हरीतिमा सम्बर्द्धन के लिए वृक्षारोपण करें एवं हरियाली महोत्सव मनाएं तभी नवजीवन का संचार हो सकेगा।
अमृत की तासीर है पानी, सांसों की जंजीर है पानी।
कद्र न होगी यदि पानी की, खत्म कहानी जीवन की ।।

खेतों का गहना है पानी, और निशानी जीवन की
पानी की हर बूंद पे लिखी, एक कहानी जीवन की।

कृपया ध्यान दें-


एक वर्ष में कुल 100 घंटे वर्षा होती है यदि वर्षा जल की यह मात्रा विभिन्न तरीकों से संरक्षित कर ली जाए तो इसका उपयोग अच्छा 8680 घंटे किया जा सकता है।

ग्राम पंचायतों एवं नगर पंचायतों को चाहिए कि वे पक्के मकानों के निर्माण की मंजूरी तभी दें जब वे वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम छतों का निर्माण कराएं। इससे वर्षा जल के संचय पर जन जागृति एवं गति दोनो में अभिवृद्धि होगी।

संकलन/टायपिंग- नीलम श्रीवास्तव, महोबा'

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Post By: pankajbagwan
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