जल की शिक्षा: कर्नाटक के सरकारी विद्यालयों में जल संरक्षण के प्रयासों का अनुभव

जल की शिक्षा
जल की शिक्षा

"हमें  टैंकर से पानी खरीदने के लिए हर 10-15 दिनों में 100 से 150 रुपए खर्च करना पड़ता है। पंचायत से मिलने वाले पानी की आपूर्ति रुक-रुक कर हो रही है। विद्यालय में हाथ धोने की कोई व्यवस्था नहीं है। शौचालय हैं, लेकिन उनमें एक भी नल नहीं है, कोई ओवरहेड टैंक नहीं है जो सीधे शौचालयों या अन्य ज़रूरतों के लिए पानी उपलब्ध करा सके, सेप्टिक टैंक का वाल्व चैम्बर लीक हो रहा है। शौचालय के पास फर्श और नाली का काम ठीक से नहीं हुआ है जिसके कारण वहाँ पानी ठहर जाता है और अस्वास्थ्यकर स्थिति पैदा होती है। ऐसी स्थिति में बच्चे पढ़ाई पर कैसे ध्यान केंद्रित कर सकते हैं?" ग्रामीण कर्नाटक के एक सरकारी स्कूल के शिक्षक अपने स्कूल में पानी की व्यवस्था और उससे उपजी चुनौतियों के बारे में बता रहे थे।

भारत के 24 सर्वाधिक सूखा प्रभावित क्षेत्रों में से कर्नाटक राज्य का स्थान सोलहवाँ है। कर्नाटक के पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र के जिलों, जिनमें गुलबर्गा, रायचूर, बेल्लारी, चित्रदुर्ग, तुमकुर, कोलार और साथ ही कुछ अन्य स्थानों जिनमें बेंगलुरु भी शामिल है, के भूमिगत जल में फ्लोराइड काफ़ी ज़्यादा है। 2019 में तटीय कर्नाटक के कुछ हिस्से जहाँ आमतौर पर अच्छी वर्षा होती है, वहाँ पीने के पानी की अनुपलब्धता के कारण स्कूलों को बंद करने या आंशिक रूप से चलाने को मजबूर होना पड़ा था। 2009-10 की जिला शिक्षा सूचना तंत्र (डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सर्विस फॉर एडुकेशन-DISE) की रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक उन राज्यों में से एक है जहाँ कुल नामांकित छात्रों के 3.5 प्रतिशत से अधिक के पास पेयजल की उपलब्धता नहीं है।

बायोम एनवायरनमेंटल ट्रस्ट (BIOME ) एक स्वयंसेवी संस्था है जो भारत में पारिस्थितिक और सामाजिक सततता (सस्टेनीबिलिटी) के क्षेत्र में काम करती है। निम्नलिखित सूची कर्नाटक के गाँवों में पानी और स्वच्छता की स्थिति के बारे में संक्षिप्त विवरण देती है, जिनमें बायोम वर्तमान में काम कर रहा है:

  • अधिकांश गाँवों में बोरवेल से पानी की आपूर्ति होती है जो या तो अक्सर सूख जाते हैं या उन्हें गहरा करना पड़ता है परिणामस्वरूप रासायनिक दोष जैसे फ्लोराईड की मात्रा पानी में काफी बढ़ जाती है ।
  •  पानी की गुणवत्ता के बारे में, विशेष रूप से जीवाणु प्रदूषण के संबंध में जागरूकता की कमी है।
  • इन गाँवों के विद्यालयों में साफ-सफाई के संसाधन सीमित हैं। शौचालय, हाथ धोने की जगह और जल निकासी की घटिया व्यवस्था के साथ-साथ उनमें से भी अधिकतर टूटे हुए होते हैं। 
  •  यहाँ तक कि जिन विद्यालयों में आँगनवाड़ी हैं, उनमें भी पानी की उपलब्धता सीमित है या नहीं है।
  • पंचायत जिनकी यह जिम्मेदारी होती हैं कि वे स्कूलों में पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करें, उनके लिए स्कूलों में पानी उपलब्ध कराना मुश्किल काम होता है।

पिछले दो दशकों में सरकारी ग्रामीण स्कूलों में बायोम के काम का विस्तार हुआ है- इसमें जल संचयन, जल संरक्षण और जल साक्षरता को लेकर जागरूकता और वर्षा के जल को संचित करने वाली प्रणाली (Rain Water Harvesting - RWH) का निर्माण शामिल है। यह स्थानीय अधिकारियों, विशेषकर तालुका के ब्लॉक शिक्षा अधिकारी (BEO) के साथ मिलकर काम करने और जितना संभव हो उतना स्थानीय व सहभागी होने की माँग करता है। बारिश के पानी के संग्रहण के लिए आवश्यक संरचनाओं के निर्माण के बाद भी बायोम जल शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए जितना संभव हो उतना स्कूलों के साथ जुड़ाव बनाए रखता है। अपने परिवेश में पानी की स्थिति के बारे में समझना और जल संरक्षण को व्यवहार में लाना स्कूल के छात्रों को अपने आस-पास पानी और स्वच्छता से संबंधित तात्कालिक मुद्दों के बारे में अधिक जागरूक और सचेत बनाता है। अब तक बायोम ने 40 सरकारी स्कूलों के साथ काम किया है जहाँ जल संरक्षण के लिए आवश्यक बुनियादी ढाँचे के क्रियान्वयन का कार्य कुछ महीनों तक चला।

यह लेख बायोम टीम के वास्तविक अनुभव के आधार पर विद्यालय के परिवेश में वर्षा के जल को संचित करने हेतु आवश्यक संरचनाओं के निर्माण के माध्यम से शिक्षण और सीखने की प्रक्रिया का वर्णन करता है। इस प्रक्रिया में बायोम टीम, स्कूल के अधिकारियों और छात्रों के साथ मिलकर काम करती है।

वर्षा जल संचयन के लिए पहले छत पर एकत्र वर्षा के जल को पाइप के एक नेटवर्क के माध्यम से इकट्ठा किया जाता है, छाना जाता है और फिर स्कूल की प्राथमिकता के आधार पर या तो उसे भूमिगत गड्ढे या ओवरहेड टैंक में संग्रहित किया जाता है। औसतन 180 वर्गमीटर क्षेत्र वाली छत से जहाँ लगभग 800 मिमी की वार्षिक वर्षा होती हो, एक लाख लीटर (100 के.एल.) से अधिक पानी का संचयन किया जा सकता है। यदि प्रतिदिन 1000 लीटर जल की औसत ज़रूरत हो तो 200 कार्य दिवसों के लिए लगभग 200 के. एल. (2,00,000 लीटर) पानी की ज़रूरत होती है। दूसरे शब्दों में, यदि संग्रहण की व्यवस्था ठीक हो और इसे ठीक तरह से काम में लिया जाए तो स्कूल की पानी की आधी ज़रूरत बारिश के पानी के संग्रहण से पूरी की जा सकती है।

सबसे पहले बायोम टीम वर्षा के जल को संचित करने वाली प्रणाली (RWH) की रूपरेखा और योजना के बारे में सलाह लेने के लिए शिक्षकों और विद्यालय विकास और प्रबंधन समिति (SDMC) के साथ चर्चा करती है। उनकी मंजूरी के बाद बायोम वहाँ के स्थानीय संसाधन जैसे कि गाँव के प्लंबर और श्रमिकों और स्थानीय निर्माण सामग्री को इस योजना में शामिल करता है।

छात्र वर्षा के जल को संचित करने वाली संरचना के बारे में उत्सुक रहते हैं। बारिश के पानी को इकट्ठा करने, इसे संग्रहित करने और इसका उपयोग करने का विचार रोमांचक है लेकिन इस बारे में उनकी जागरूकता सीमित होती है; कि इसे क्यों स्थापित किया जा रहा है या उनके है लिए इसके क्या फायदे हैं। इसलिए बायोम टीम कक्षाओं में इस विषय पर सीखने की कुछ गतिविधियों पर काम करती है।

छात्रों के साथ बातचीत की शुरुआत एक सामान्य प्रश्न के साथ होती है वे पानी के बारे में क्या जानते हैं? आमतौर पर सभी उत्तर पाठ्यपुस्तक से आते हैं जैसे पानी द्रव है, पानी गैस है, जल चक्र, आदि। अक्सर छात्र पानी से जुड़े हुए अपने स्थानीय मुद्दों जैसे कि एक सूखे बोरवेल, पीने के पानी की कमी, संदूषण आदि के बारे में नहीं सोचते हैं। अपने गाँव में पानी से संबंधित मुद्दों-जैसे खेती के लिए, पशुओं के लिए घरेलू उपयोग के लिए पानी की उपलब्धता, अपने गाँव में खुले कुओं का होना, गाँव की टंकियों जैसे सामूहिक संसाधनों के बारे में सोचने के लिए बच्चों को चर्चा के एक ख़ास स्तर पर पहुँचने की ज़रूरत होती है।

हम 'जलीय चक्र को मापने की गतिविधि अर्थात् जलस्रोत से पानी के निकलने से लेकर स्कूल से अपशिष्ट जल की निकासी तक के चक्र से बच्चों को परिचित कराते हैं। छात्रों को उनके स्कूल में पानी के विभिन्न स्रोतों की पहचान करने और स्कूल में पानी कैसे और किन कामों के लिए उपयोग में लिया जाता है इसे बताने के लिए कहा जाता है। आमतौर पर इसके जवाब में बच्चे नदी, झील, खुले कुएं, बोरवेल टैंकर और यहाँ तक कि पानी के स्रोत के रूप में नल का भी नाम लेते हैं। छात्र स्कूल में पानी के विभिन्न उपयोग जैसे पीने के लिए, खाना पकाने, कक्षा की सफाई, बागवानी, हाथ, प्लेट और बर्तन धोने और शौचालय में इस्तेमाल करने का उल्लेख करते हैं।

अधिकतर स्कूलों में पानी का मुख्य स्रोत बोरवेल हैं, जहाँ बोरवेल नहीं है वहाँ स्थानीय ग्राम पंचायत द्वारा पानी की आपूर्ति या तो नल कनेक्शन के माध्यम से या टैंकरों के माध्यम से की जाती है। हालांकि, अक्सर छात्र इस बारे में अनिश्चित होते हैं कि स्कूल में उत्पन्न होने वाले अपशिष्ट जल का क्या किया जाता है। कुछ सेप्टिक टैंक का जिक्र करते हैं या सिर्फ यह कह देते हैं कि पानी स्कूल परिसर से बाहर चला जाता है, लेकिन उनके पास इसके बारे में बहुत कम जानकारी और समझ है कि उसके बाद उस पानी का क्या होता है- क्या इसका शोधन किया जाता है या यह अशुद्ध ही रहता है, क्या उसे फिर से काम में लिया जाता है या ऐसे ही बहा दिया जाता है?

छात्रों को विभिन्न उद्देश्यों के लिए काम में लिए जाने वाले पानी की मात्रा को मापने के लिए कहा जाता है। उदाहरण के लिए, हाथ धोने के लिए उपयोग में आने वाले पानी की मात्रा को मापने के लिए लीटर की बोतल से एक छात्र या छात्रा द्वारा हाथ धोने में काम में ली गई पानी की मात्रा को आधार माना जाता है। एक बार हाथ धोने के बाद बोतल में पानी के स्तर को मापा जाता है और बोर्ड पर नोट किया जाता है।

प्लेट और बर्तन धोने के लिए भी इसी गतिविधि को दोहराया जाता है। शौचालयों, कक्षा की सफाई और बागवानी के लिए उपयोग में आने वाले पानी को मापने के लिए छात्रों द्वारा काम में ली जाने वाली बाल्टी या मग को मापक के रूप में लिया जाता है। इस तरह सभी कामों या प्रयोजनों के दौरान इस्तेमाल होने वाले पानी की मात्रा को नोट किया जाता है और इन सभी को जोड़कर यह निकाला जाता है कि स्कूल के लिए प्रतिदिन कितने पानी की आवश्यकता होती है। यह गतिविधि किन कामों में पानी की अधिक और कहाँ कम खपत होती है (खपत के उच्च और निम्न बिन्दुओं) यह तय करने और प्रत्येक गतिविधि में होने वाले अपव्यय को निर्धारित करने में मदद करती है। अक्सर यह पाया जाता है कि स्कूल के शौचालयों में सबसे अधिक पानी काम में लिया जाता है, इसके बाद स्कूल में उपलब्ध कक्षाओं और बगीचे के क्षेत्रफल के आधार पर बागवानी या कक्षाओं की सफाई में पानी की खपत होती है।

जल संरक्षण और उसके उपयोग से संबंधित मुद्दों का परिचय देने में इस तरह की गतिविधि मदद करती है। एक स्कूल के प्रधानाध्यापक ने एक बार इस तरह की गतिविधि के ख़त्म होने के बाद टिप्पणी की थी, "हमारे पास 7500 लीटर के दो टैंक हैं, जिन्हें हम रोजाना काम में लेते हैं। इसलिए मुझे यह पता था कि स्कूल में पानी की दैनिक खपत 1500 लीटर है, लेकिन मुझे यह कभी पता नहीं चला कि हम केवल बागवानी पर इतना पानी बर्बाद कर रहे थे। अब आगे से, हम इस बात का ध्यान रखेंगे।"
कक्षा में वर्षामापी से बच्चों को परिचित कराना उन्हें उनके स्कूल की छत पर गिरने वाली बारिश को मापने में मदद करता है। वे यह भी सीखते हैं। कि वर्षा का जल भी पीने के पानी का एक स्रोत हो सकता है पानी का परीक्षण करने वाले किट की मदद से छात्र अपने स्कूल और घर के पानी की गुणवत्ता की जाँच करते हैं, और साथ ही रसायन शास्त्र सीखते हैं!

प्रत्येक स्कूल में बायोम नए सेट किए गए वर्षा जल संचयन प्रणाली की निगरानी और किसी खराबी के कारण मरम्मत के लिए सूचना देने के लिए एक प्रोजेक्ट वॉच समिति की स्थापना का सुझाव देता है, जिसमें शिक्षक भी शामिल होते हैं।
स्कूलों में जल प्रबंधन की शिक्षा परिवारों और घरों में जल संरक्षण के तरीकों को बढ़ावा दे सकती है और व्यापक स्तर पर समुदाय को दीर्घकालिक लाभ प्रदान कर सकती है। सफलता की हमारी सबसे अच्छी कहानी में से एक यह थी- इन स्कूलों में से एक स्कूल के छात्र ने अपने पिता को अपने घर में एक वर्षा जल संचयन प्रणाली का निर्माण करने के लिए तैयार किया। पिता शुरू में अनिच्छुक थे, लेकिन उन्होंने बच्चे की बात मानी और अब वो खुश हैं कि उनके पास साल भर के लिए पानी है।
लेखकअ दिति हस्तक बायोम एनवॉयरमेंटल ट्रस्ट, बैंग्लूरु में कार्यरत हैं।
भाषान्तर : मधुलिका झा
संपर्क: aditi@biome-solutions.com
स्रोत - शिक्षा विमर्श मार्च-अप्रैल, 2021

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Post By: Shivendra
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