पंजाब के संगरूर जिले के भवानीगढ़ के गांव आलोऱाख गांव और उसके आस-पास में ट्यूबवैलों में कैमिकल युक्त जहरीला व रंगीन पानी निकल रहा है, जो जानलेवा साबित हो रहा है। इस संबंध में गांववासियों ने एडवोकेट एचसी अरोड़ा के माध्यम से दिल्ली स्थित नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में याचिका दाखिल की है। याचिका में कहा गया है कि भवानीगढ़ ब्लाक में ट्यूबवैलों से निकल रहा जहरीला पानी किसी भी प्रकार से इस्तेमाल योग्य नहीं है। पीने के पानी में जहर और केमिकल कहां से मिल रहे हैं, इसकी जांच की मांग भी उठाई गई है।
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने अधिकारियों के विरुद्ध दायर की गई एक याचिका पर सुनवाई करते हुए, संगरूर जिले के भिवानी गढ़ ब्लॉक के अलोराख गांव में भूजल प्रदूषण के खिलाफ उपचारात्मक कदम उठाने का आदेश दिया। एनजीटी के प्रमुख, न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की अगुवाई वाली बेंच ने 31 मार्च को दिए गए एक आदेश में यह भी कहा कि उपचार की लागत को प्रारंभिक रूप से राज्य सरकार द्वारा वहन किया जाना चाहिए।
एडवोकेट एचसी अरोड़ा ने अलोराख गांव जहरीले पानी का मुद्दा उठाया
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के एडवोकेट एचसी अरोड़ा ने इस मुद्दे पर एनजीटी में याचिका दायर की थी, जिसके बाद ट्रिब्यूनल ने संगरूर के डिप्टी कमिश्नर जितेंद्र जोरवाल, नरेंद्र शर्मा (सीपीसीबी के अतिरिक्त निदेशक), हरिंदर सिंह (पर्यावरण इंजीनियर पीपीसीबी) और आदर्श निर्मल (कार्यकारी अभियंता, जल आपूर्ति एवं स्वच्छता विभाग)। की संयुक्त समिति का गठन किया था।
क्या कहती है संयुक्त समिति की रिपोर्ट
संयुक्त समिति ने आगे का अध्ययन किसी प्रतिष्ठित संस्थान से कराने का सुझाव दिया है। पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीपीसीसीबी) ने प्रदूषण के लिए 2005 में बंद हुई एक निजी रासायनिक फैक्ट्री को जिम्मेदार ठहराया है, जिसके बाद बोरवेल से गहरे भूरे रंग का पानी निकल रहा था। एनजीटी ने पहले पर्यावरण की बहाली के लिए कारखाने पर 2 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था, लेकिन पैसे की वसूली नहीं हो पाई थी।एनजीटी को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में, संयुक्त समिति ने कहा कि चूंकि दूषित स्थल का उपयोग वर्तमान में कृषि के लिए किया जा रहा है, इसलिए पीपीसीसीबी को क्षेत्र में अनुभव रखने वाले एक प्रतिष्ठित संस्थान को शामिल करके एक विस्तृत जांच करने की आवश्यकता है।
भूजल प्रदूषण और उपचारात्मक उपायों पर कार्रवाई पर स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने में देरी पर असंतोष व्यक्त करते हुए , नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ( एनजीटी ) ने पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ( पीपीसीबी ) और राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान ( नीरी ) की खिंचाई की । ट्रिब्यूनल ने नीरी के निदेशक और पीपीसीबी सदस्य सचिव को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर अपनी स्थिति स्पष्ट करने का निर्देश दिया। निर्देश एनजीटी पीठ द्वारा जारी किए गए थे जिसमें प्रकाश श्रीवास्तव, सुधीर अग्रवाल, डॉ ए सेंथिल वेल और डॉ अफ़रोज़ अहमद शामिल थे। उन्होंने संगरूर जिले के भिवानीगढ़ ब्लॉक के आलोरख गांव में सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा करने वाले जल प्रदूषण के एक मामले के जवाब में यह निर्देश दिया। क्षेत्र के 18 बोरवेलों से एकत्र किए गए नमूनों के विश्लेषण से पता चला कि प्रदूषण काफी फैल गया है। ट्रिब्यूनल ने पाया कि समस्या गंभीर है, जिस पर विचार करने और तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।
पीपीसी बोर्ड ने 18 अगस्त, 2023 को ट्रिब्यूनल को सूचित किया कि नमूने लेने, समस्या की सीमा का पता लगाने और उपचारात्मक उपाय सुझाने का काम नीरी को सौंपा गया था। मामला 5 दिसंबर और 2 जनवरी को फिर से उठाया गया, जब पीपीसीबी के वकील ने कहा कि नीरी द्वारा सर्वेक्षण 31 जनवरी तक पूरा कर लिया जाएगा। देरी से नाखुश ट्रिब्यूनल ने कहा: "हमें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि समस्या इतनी गंभीर होने के बावजूद, नीरी रिपोर्ट जमा करने में तत्पर नहीं है, जिसके कारण मामले को बार-बार स्थगित किया जा रहा है और समस्या का समाधान नहीं किया गया है।"
फिलहाल नीरी की रिपोर्ट का इंतजार
ट्रिब्यूनल ने कहा कि पीपीसीबी और नीरी, वैधानिक निकाय और अनुसंधान एवं विकास संस्थान होने के नाते, अल्पकालिक उपचारात्मक उपाय भी नहीं कर पाए हैं। इसलिए, उसके पास सुनवाई की अगली तारीख पर निदेशक, नीरी और सदस्य सचिव, पीपीसीबी को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का निर्देश देने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, ताकि उसे देरी के कारणों और रिपोर्ट की स्थिति के साथ-साथ उठाए जा सकने वाले तत्काल उपायों के बारे में अवगत कराया जा सके।
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