(ए) जल ग्रहण क्षेत्र में जल भराव, क्षार और लावणीयता के कारण प्रमुख कृषि भूमि की पच्चीस प्रतिशत हानि होती है जैसा कि केंद्रीय जल आयोग की रिपोर्ट कहती है।
(बी) वार्षिक चक्र में 60 प्रतिशत जल का क्षय, सिंचाई परियोजनाओं में 65 प्रतिशत अर्थात उपयोग केवल 35 प्रतिशत और दिल्ली को दिए जाने वाले जल का संभरण और परिवहन में जैसा पूर्व में बताया गया है और क्षरण 55 प्रतिशत यह अदालतों और विभिन्न आयोगों में बहुत प्रस्तुत हल्फनामों के आधार पर है।
(सी) बड़ी पानी योजनाओं के जलाशयों और नहरों के निर्माण में बड़े कृषि भूमि और इज्जत-जीवन की हानि।
(डी) बड़ी संख्या में मछलियों का नाश और नदियों में जैव विविधता का ह्रास, जिसमें कुछ लुप्तप्राय प्रजातियां भी सम्मिलित हैं। यमुना किनारे के दिल्ली के दक्षिण की ओर मछुआरों के लगभग सात सौ गांव अब नहीं रहे और गंगा में पाए जाने वाले बैक्टीरिया भोजी प्रजातियों को बड़े तरीके से नष्ट किया गया है।
(ई) बांधो के जलाशयों की डूब में मूल्यवान वन क्षेत्र नष्ट हुए। उदाहरणत: सबसे मूल्यवान टीक का लगभग तीन हजार हैक्टेयर वन खण्ड नर्मदा सागर में समा गया है। ऐसी हानि की भरपाई के लिए वैकल्पिक वनीकरण कभी भी पर्याप्त रूप से नहीं किया जाता।
(एफ) नदियों और जलधाराओं का प्रवाह मोड़ने का प्रभाव भूमिगत जलभरण में कमी या पूर्णत: समाप्त होता है। इस तथ्य का उल्लेख एम्स्टर्डम में प्रकाशित पत्रिका हाइड्रोलोजी में डा. झांग के चर्चित आलेख में किया गया है।
(जी) नदियों का जलस्तर कम होने पर वे उनमें छोड़े जाने वाले सीवेज के कारण अति गन्दगीपूर्ण हो जाती हैं। इससे भूमिगत जल भी प्रदूषित होता है, परिणामत: उन गरीब लोगों का स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित होता है, जो भूमिगत जल पर निर्भर करते हैं और इसे पीते भी हैं।
(एच) सामाजिक द्वंद उठते हैं, जैसा कि सतलुज-यमुना लिंक नहर के मामले में हुआ, यदि जल और पर्यावरण की दृष्टि से कमजोर परियोजनाओं के कारण इसमें पानी की और कमी हो जाए तो स्थिति और खराब हो सकती है। जल के कारण युद्धों की भविष्यवाणियां की जा रही हैं और ऐसे विद्रोह असंख्य हो सकते हैं।
(आई) इन परियोजनाओं के लिए वृहद धनराशि आबंटित की जाती है। इसलिए इनको स्वीकृति कराने और बाद में इसके क्रियान्वयन की एक समयकाल में बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार होता है।
(जे) इन परियोजनाओं से प्रभावित लोग अपने घरों, सम्पत्तियों, पर्वों और रोजगार से वंचित होकर दर-दर भटकते हैं और वेश्यावृत्ति जैसे धंधों में पड़ने को मजबूर हुए हैं। ऐसी परियोजनाएं भारत की मूल संस्कृति को प्रभावित करती हैं। और साथ ही पुनर्वास के वादे समयानुसार पूरे नहीं किए जाते।
(के) परियोजना के जलाशयों से होने वाले भूकम्पीय प्रभाव से गंभीर भूकम्प आने की आशंका बनी रहेगी। टिहरी डैम के किसी उत्पात से दिल्ली और हरियाणा तक में काफी नुकसान हो सकता है।
(एल) छोटी-बड़ी नदियों में जल का स्तर कम हो तो कम भूमिगत जलभरण होता है, इस कारण जलभृतों के न रहने से भूमि का बड़ा क्षेत्र घसक जाता है और भूतल पर दरारें पड़ जाती हैं। इससे अनेक लोग घर-बार और अपनी कृषि भूमि से वंचित हो जाते हैं।
(एम) बांधों और बैराजों के कारण उर्वर जलोढ़ का विस्तार रूक जाता है और उससे कृषि भूमि को मिलने वाले उर्वर तत्व मिलना बंद हो जाते हैं।
(बी) वार्षिक चक्र में 60 प्रतिशत जल का क्षय, सिंचाई परियोजनाओं में 65 प्रतिशत अर्थात उपयोग केवल 35 प्रतिशत और दिल्ली को दिए जाने वाले जल का संभरण और परिवहन में जैसा पूर्व में बताया गया है और क्षरण 55 प्रतिशत यह अदालतों और विभिन्न आयोगों में बहुत प्रस्तुत हल्फनामों के आधार पर है।
(सी) बड़ी पानी योजनाओं के जलाशयों और नहरों के निर्माण में बड़े कृषि भूमि और इज्जत-जीवन की हानि।
(डी) बड़ी संख्या में मछलियों का नाश और नदियों में जैव विविधता का ह्रास, जिसमें कुछ लुप्तप्राय प्रजातियां भी सम्मिलित हैं। यमुना किनारे के दिल्ली के दक्षिण की ओर मछुआरों के लगभग सात सौ गांव अब नहीं रहे और गंगा में पाए जाने वाले बैक्टीरिया भोजी प्रजातियों को बड़े तरीके से नष्ट किया गया है।
(ई) बांधो के जलाशयों की डूब में मूल्यवान वन क्षेत्र नष्ट हुए। उदाहरणत: सबसे मूल्यवान टीक का लगभग तीन हजार हैक्टेयर वन खण्ड नर्मदा सागर में समा गया है। ऐसी हानि की भरपाई के लिए वैकल्पिक वनीकरण कभी भी पर्याप्त रूप से नहीं किया जाता।
(एफ) नदियों और जलधाराओं का प्रवाह मोड़ने का प्रभाव भूमिगत जलभरण में कमी या पूर्णत: समाप्त होता है। इस तथ्य का उल्लेख एम्स्टर्डम में प्रकाशित पत्रिका हाइड्रोलोजी में डा. झांग के चर्चित आलेख में किया गया है।
(जी) नदियों का जलस्तर कम होने पर वे उनमें छोड़े जाने वाले सीवेज के कारण अति गन्दगीपूर्ण हो जाती हैं। इससे भूमिगत जल भी प्रदूषित होता है, परिणामत: उन गरीब लोगों का स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित होता है, जो भूमिगत जल पर निर्भर करते हैं और इसे पीते भी हैं।
(एच) सामाजिक द्वंद उठते हैं, जैसा कि सतलुज-यमुना लिंक नहर के मामले में हुआ, यदि जल और पर्यावरण की दृष्टि से कमजोर परियोजनाओं के कारण इसमें पानी की और कमी हो जाए तो स्थिति और खराब हो सकती है। जल के कारण युद्धों की भविष्यवाणियां की जा रही हैं और ऐसे विद्रोह असंख्य हो सकते हैं।
(आई) इन परियोजनाओं के लिए वृहद धनराशि आबंटित की जाती है। इसलिए इनको स्वीकृति कराने और बाद में इसके क्रियान्वयन की एक समयकाल में बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार होता है।
(जे) इन परियोजनाओं से प्रभावित लोग अपने घरों, सम्पत्तियों, पर्वों और रोजगार से वंचित होकर दर-दर भटकते हैं और वेश्यावृत्ति जैसे धंधों में पड़ने को मजबूर हुए हैं। ऐसी परियोजनाएं भारत की मूल संस्कृति को प्रभावित करती हैं। और साथ ही पुनर्वास के वादे समयानुसार पूरे नहीं किए जाते।
(के) परियोजना के जलाशयों से होने वाले भूकम्पीय प्रभाव से गंभीर भूकम्प आने की आशंका बनी रहेगी। टिहरी डैम के किसी उत्पात से दिल्ली और हरियाणा तक में काफी नुकसान हो सकता है।
(एल) छोटी-बड़ी नदियों में जल का स्तर कम हो तो कम भूमिगत जलभरण होता है, इस कारण जलभृतों के न रहने से भूमि का बड़ा क्षेत्र घसक जाता है और भूतल पर दरारें पड़ जाती हैं। इससे अनेक लोग घर-बार और अपनी कृषि भूमि से वंचित हो जाते हैं।
(एम) बांधों और बैराजों के कारण उर्वर जलोढ़ का विस्तार रूक जाता है और उससे कृषि भूमि को मिलने वाले उर्वर तत्व मिलना बंद हो जाते हैं।
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