विशाल ब्रह्मपुत्र और बराक के अंतर्राज्यिक जलनिकास बेसिन प्रणाली प्रायः पूरे उत्तर-पूर्वी भारत के जलविज्ञान- परिदृश्य का प्रतिनिधित्व करता है। क्षेत्र का विरोधाभासी जलमौसमीय परिदृश्य का विश्व के मानचित्र पर एक विशिष्ट जलविज्ञानीय अस्तित्व है। विराट जल संसाधन उपजों से संपन्न यह कभी पावर हाउस और “देश का जलाशय” जैसा हो सकता है, वहीं आज के वर्तमान हालातों में यहाँ की जल संसाधन समस्याएं हैं, जहां प्रतिवर्ष करोड़ों की क्षति, अव्यक्त कष्टों का सामना करना पड़ता है।
यह क्षेत्र मानसून महीनों के दौरान भारी वर्षा और बाढ़ का सामना करता है जो पानी-पानी सर्वत्र को चरितार्थ करता है और साथ ही गैर-मानसून महीनों में यहाँ पीने के लिए पानी की इतनी किल्लत हो जाती है कि विश्व के सबसे ज्यादा भीगे क्षेत्र चेरापुंजी सहित अन्य भागों में एक ही गूँज सुनाई पड़ती है। ‘‘पीने को एक बूंद पानी नहीं”। गैर-मानसून महीनों में करीब 70 प्रतिशत पहाड़ी राज्यों में साथ ही समतल क्षेत्रों में भी जहाँ करीब 9 महीनों से भी ज्यादा सूखा रहता है और जल संरक्षण की बहुत अधिक आवश्यकता हो जाती है। असम राज्य की जल-नीति के मसौदे के अनुसार संरक्षण की जागरूकता का प्रसार - शिक्षा, नियमित प्रोत्साहनों और डिसइनसेंटिव्स, वर्षाजल हार्वेस्टिंग, आधुनिक वैज्ञानिक प्रणाली और पारंपरिक प्रणाली दोनों के द्वारा बढ़ावा और संवर्धन किये जाने हैं।
इसके अतिरिक्त, सूचनाओं के प्रसार द्वारा प्रोत्साहित और प्रचारित किया जाएगा, प्रदर्शन और प्रोत्साहन, पारंपरिक वर्षाजल संचयन के तरीकों को आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यमों द्वारा आधुनिकीकरण पर बल देते हुए वर्षाजल संचयन द्वारा भू-जल के पुनर्भरण पर बल दिए जाने की अपेक्षा है। इस परिप्रेक्ष्य में यह शोध आलेख के गुवाहटी में धारित वर्षाजल के संचयन में लेखकों का एक वैयक्तिक और स्वदेशी प्रयास है। तब से लेकर एक दशक से भी ज्यादा समय तक विभिन्न घरेलू और कृषि लाभों में प्रयुक्त और नाममात्र प्रौद्योगिकी ज्ञान के जरिए भू-जल पुनर्भरण में वर्षाजल संचयन का ऐसा विवरण प्रस्तुत किया है कि कैसे टैक्नोलाजी इस पर काम करती है।
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यह क्षेत्र मानसून महीनों के दौरान भारी वर्षा और बाढ़ का सामना करता है जो पानी-पानी सर्वत्र को चरितार्थ करता है और साथ ही गैर-मानसून महीनों में यहाँ पीने के लिए पानी की इतनी किल्लत हो जाती है कि विश्व के सबसे ज्यादा भीगे क्षेत्र चेरापुंजी सहित अन्य भागों में एक ही गूँज सुनाई पड़ती है। ‘‘पीने को एक बूंद पानी नहीं”। गैर-मानसून महीनों में करीब 70 प्रतिशत पहाड़ी राज्यों में साथ ही समतल क्षेत्रों में भी जहाँ करीब 9 महीनों से भी ज्यादा सूखा रहता है और जल संरक्षण की बहुत अधिक आवश्यकता हो जाती है। असम राज्य की जल-नीति के मसौदे के अनुसार संरक्षण की जागरूकता का प्रसार - शिक्षा, नियमित प्रोत्साहनों और डिसइनसेंटिव्स, वर्षाजल हार्वेस्टिंग, आधुनिक वैज्ञानिक प्रणाली और पारंपरिक प्रणाली दोनों के द्वारा बढ़ावा और संवर्धन किये जाने हैं।
इसके अतिरिक्त, सूचनाओं के प्रसार द्वारा प्रोत्साहित और प्रचारित किया जाएगा, प्रदर्शन और प्रोत्साहन, पारंपरिक वर्षाजल संचयन के तरीकों को आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यमों द्वारा आधुनिकीकरण पर बल देते हुए वर्षाजल संचयन द्वारा भू-जल के पुनर्भरण पर बल दिए जाने की अपेक्षा है। इस परिप्रेक्ष्य में यह शोध आलेख के गुवाहटी में धारित वर्षाजल के संचयन में लेखकों का एक वैयक्तिक और स्वदेशी प्रयास है। तब से लेकर एक दशक से भी ज्यादा समय तक विभिन्न घरेलू और कृषि लाभों में प्रयुक्त और नाममात्र प्रौद्योगिकी ज्ञान के जरिए भू-जल पुनर्भरण में वर्षाजल संचयन का ऐसा विवरण प्रस्तुत किया है कि कैसे टैक्नोलाजी इस पर काम करती है।
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