वर्षाजल भंडारण-जल कोठी

बांस के कमीचे से निर्मित जल कोठी
बांस के कमीचे से निर्मित जल कोठी

मेघ पाईन अभियान इस विश्वास पर आधारित है कि हर व्यक्ति को ‘गरिमा, दृढ़ संकल्प और प्रभुत्व‘ के साथ जीवन व्यतीत करने का अधिकार है। अभियान एक प्रतिबद्धता है, जो ग्रामीण समुदाय के बीच व्यवहार परिवर्तन की कोशिश कर रहा है, ताकि समाज प्रभावी ढंग से पुनर्जीवित हो। जल और स्वच्छता प्रबंधन की परंपरागत मुख्यधारा के मुद्दों कोसामूहिक जबाबदेही और क्रिया के माध्यम से प्रदर्शित करें। यह जमीनी संस्थाओं और पेसेवरों का कार्यात्मक नेटवर्क है। यह बाढ़ प्रभावित उत्तर बिहार के पांच जिले सुपौल, सहरसा, खगड़िया, मधुबनी और पश्चिम चम्पारण में काम कर रहा है।

‘‘जल कोठी” पर तकनीकी दस्तावेज बाढ प्रभावित उत्तर बिहार के जिलों के लिए वर्षाजल संग्रह हेतु सुविधा का एक विकास। यह सामान्य रूप से पाए जाने वाले परंपरागत मिट्टी के बर्तन का संशोधन है। इसमें धारण क्षमता और बनाने की विधि का परिवर्धन हुआ है।

उत्तर बिहार प्रतिवर्ष कोसी, कमला, बागमती, गंडक, बूढ़ी गंडक, भूतही बलान, घाघरा एवं महानन्दा नदियों की बाढ़ से ग्रसित रहता है। भारत के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में बिहार सबसे अधिक प्रभावित राज्य है। बिहार वासियों के लिए बाढ़ एक नियति बन गई है। प्रतिवर्ष बाढ़ से जान-माल का नुकसान होता है। मवेशी बाढ़ के पानी में डूब जाते हैं या बह जाते हैं। साथ ही फसल की भी बर्बादी होती है। फलतः बाढ़ मानव जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। बाढ़ के दौरान आने वाली समस्याएं- ठहरने का ऊंचे स्थान, भोजन की व्यवस्था, आवागमन सुविधा, स्वास्थ्य सुविदा (बच्चे एवं गर्भवती महिलाएं), शौचालय एवं पेयजल जैसी मुख्य समस्याएं पैदा होती हैं। चारों तरफ बाढ़ का गंदा पानी रहता है। इसी गंदे पानी को लोग पीने व खाना बनाने के लिए इस्तेमाल करते हैं।

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