स्थिर समस्थानिकों का जल विज्ञान के क्षेत्र में उपयोग एक बड़ी उपलब्धि है। सर्वप्रथम फ्रीडमान द्वारा वर्षा जल में हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन के समस्थानिकों में सह-परिवर्ती के अध्ययन के उपरांत क्रेग के द्वारा ग्लोबल मीटिओरिक वॉटर लाइन (जी.एम.डब्ल्यू.एल.) के रूप में स्थापना की गयी।
अंतर्राष्ट्रीय परमाणु उर्जा एजेंसी (आई.ए.ई.ए.) वियना ने विश्व मौसम विज्ञान (डब्ल्यू.एम.ओ.) के सहयोग से अवक्षेपण में स्थिर समस्थानिकों के भौतिक तंत्र को स्थापित किया, जिसके लिए अवक्षेपण के 180 एवं D को ज्ञात करने के लिए अवक्षेपण के नमूने एकत्रित किये गये इस तंत्र तथा प्रस्तुत आंकड़े पर्यावरणीय समस्थानिक जलविज्ञान के लिए आवश्यक है। ये आंकड़े विश्व व्यापी http:isohis.isca.org पर उपलब्ध है। प्रस्तुत प्रपत्र में विगत तीन वर्षों में विभिन्न स्थानों से एकत्रित किये गये, वर्षाजल तथा भू-जल के नमूनों के स्थिर समस्थानिक 0-18, D का विश्लेषण किया गया है।
पृथ्वी पर जल की कुल मात्रा स्थिर है, परंतु इसका वितरण, समय व स्थान के साथ बदलता रहता है। मानव समाज को नियमित रूप से शुद्ध जल की आवश्यकता रहती है। जल की बढ़ती अशुद्धता, वितरण व संसाधनों को संरक्षित रखना एक चिर परिचित समस्या है। परंतु आबादी बढ़ने व तेजी से औद्योगिकरण व प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के कारण यह समस्या विकराल होती जा रही है, यदि समय रहते जल विज्ञानीय समस्याओं के प्रत्येक पहलूओं का अध्ययन सूक्ष्मता से नहीं किया गया तो शुद्ध जल की उपलब्धता, वितरण, व संसाधनों को सुरक्षित रखना एक जटिल समस्या हो सकती है।
पिछले कुछ दशकों के सूक्ष्म नाभिकीय जल विज्ञानीय यंत्रों का निर्माण हुआ है। जिसकी मदद से जल विज्ञानीय समस्याओं के विभिन्न पहलूओं का अध्ययन अति शुद्धता के साथ करना संभव हो पाया है। इन यंत्रों की मदद से रेडियोधर्मी एवं स्थिर समस्थानिकों की माप अधिक शुद्धता से की जा रही है, जिसके फलस्वरूप जल विज्ञानीय अध्ययनों के लिए विभिन्न समस्थानिकों का भी विकास हुआ है। समस्थानिक तकनीकों की मदद से कृषि, उद्योग, जल संसाधन से जुड़ी समस्याओं, भू-जल, सतह जल, वायु मंडल जल आदि की जटिल समस्याओं का निराकरण करना आसान हो गया है, जिनका विगत समय में प्रचलित तकनीकों से समाधान करना कठिन था।
हमारे देश में तेजी से बढ़ती जनसंख्या एवं बढ़ते औद्योगीकरण के कारण सतह की, भूजल एवं वायुमंडलीय जल की गुणवत्ता में दिन प्रतिदिन ह्रास हो रहा है। जल में विषैले प्रदूषक, पदार्थों के कारण भूजल प्रदूषित हो रहा है साथ ही साथ भूजल की उपलब्धता में कमी आ रही है। अतः सतही व भूजल का परस्पर सामंजस्य व वर्षा का भूजल की उपलब्धता में योगदान का अध्ययन आवश्यक हो गया है।
भारतवर्ष में अवक्षेपण में समस्थानिकों के विश्वसनीय दीर्घवधि आंकड़े केवल दो स्थलों दिल्ली व मुम्बई में उपलब्ध हैं। अयंत्र भारतीय स्थलों कोजिखाड़, शिलांग, हैदराबाद में केवल एक वर्ष के आंकड़े ही उपलब्ध हैं। पूर्वी तटीय व मध्य भारत के किसी भी स्थल के आंकड़े उपलब्ध नहीं है। अतः भारत वर्ष में अवक्षेपण के दीर्घावधि के समस्थानिक आंकड़ों की अत्यधिक आवश्यकता है। इस समस्या को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, रुड़की ने अवक्षेपण में समस्थानिक वर्गीकरण एवं जी.एम.डब्ल्यू.एल. के संदर्भ सहित क्षेत्रीय एवं स्थानीय उल्का जल रेखाओं का स्थापन करने का प्रयास किया है। जिससे भारतवर्ष तथा विभिन्न क्षेत्रों के लिए आई.एम.डब्ल्यू.एल. एवं आर.एम.डब्ल्यू.एल. की स्थापना होने पर जल संसाधनों की विभिन्न समस्याओं के निराकरण से संबंधित अध्ययनों को समस्थानिकों की मदद से आसानी से प्लान किया जा सकता है।
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अंतर्राष्ट्रीय परमाणु उर्जा एजेंसी (आई.ए.ई.ए.) वियना ने विश्व मौसम विज्ञान (डब्ल्यू.एम.ओ.) के सहयोग से अवक्षेपण में स्थिर समस्थानिकों के भौतिक तंत्र को स्थापित किया, जिसके लिए अवक्षेपण के 180 एवं D को ज्ञात करने के लिए अवक्षेपण के नमूने एकत्रित किये गये इस तंत्र तथा प्रस्तुत आंकड़े पर्यावरणीय समस्थानिक जलविज्ञान के लिए आवश्यक है। ये आंकड़े विश्व व्यापी http:isohis.isca.org पर उपलब्ध है। प्रस्तुत प्रपत्र में विगत तीन वर्षों में विभिन्न स्थानों से एकत्रित किये गये, वर्षाजल तथा भू-जल के नमूनों के स्थिर समस्थानिक 0-18, D का विश्लेषण किया गया है।
पृथ्वी पर जल की कुल मात्रा स्थिर है, परंतु इसका वितरण, समय व स्थान के साथ बदलता रहता है। मानव समाज को नियमित रूप से शुद्ध जल की आवश्यकता रहती है। जल की बढ़ती अशुद्धता, वितरण व संसाधनों को संरक्षित रखना एक चिर परिचित समस्या है। परंतु आबादी बढ़ने व तेजी से औद्योगिकरण व प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के कारण यह समस्या विकराल होती जा रही है, यदि समय रहते जल विज्ञानीय समस्याओं के प्रत्येक पहलूओं का अध्ययन सूक्ष्मता से नहीं किया गया तो शुद्ध जल की उपलब्धता, वितरण, व संसाधनों को सुरक्षित रखना एक जटिल समस्या हो सकती है।
पिछले कुछ दशकों के सूक्ष्म नाभिकीय जल विज्ञानीय यंत्रों का निर्माण हुआ है। जिसकी मदद से जल विज्ञानीय समस्याओं के विभिन्न पहलूओं का अध्ययन अति शुद्धता के साथ करना संभव हो पाया है। इन यंत्रों की मदद से रेडियोधर्मी एवं स्थिर समस्थानिकों की माप अधिक शुद्धता से की जा रही है, जिसके फलस्वरूप जल विज्ञानीय अध्ययनों के लिए विभिन्न समस्थानिकों का भी विकास हुआ है। समस्थानिक तकनीकों की मदद से कृषि, उद्योग, जल संसाधन से जुड़ी समस्याओं, भू-जल, सतह जल, वायु मंडल जल आदि की जटिल समस्याओं का निराकरण करना आसान हो गया है, जिनका विगत समय में प्रचलित तकनीकों से समाधान करना कठिन था।
हमारे देश में तेजी से बढ़ती जनसंख्या एवं बढ़ते औद्योगीकरण के कारण सतह की, भूजल एवं वायुमंडलीय जल की गुणवत्ता में दिन प्रतिदिन ह्रास हो रहा है। जल में विषैले प्रदूषक, पदार्थों के कारण भूजल प्रदूषित हो रहा है साथ ही साथ भूजल की उपलब्धता में कमी आ रही है। अतः सतही व भूजल का परस्पर सामंजस्य व वर्षा का भूजल की उपलब्धता में योगदान का अध्ययन आवश्यक हो गया है।
भारतवर्ष में अवक्षेपण में समस्थानिकों के विश्वसनीय दीर्घवधि आंकड़े केवल दो स्थलों दिल्ली व मुम्बई में उपलब्ध हैं। अयंत्र भारतीय स्थलों कोजिखाड़, शिलांग, हैदराबाद में केवल एक वर्ष के आंकड़े ही उपलब्ध हैं। पूर्वी तटीय व मध्य भारत के किसी भी स्थल के आंकड़े उपलब्ध नहीं है। अतः भारत वर्ष में अवक्षेपण के दीर्घावधि के समस्थानिक आंकड़ों की अत्यधिक आवश्यकता है। इस समस्या को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, रुड़की ने अवक्षेपण में समस्थानिक वर्गीकरण एवं जी.एम.डब्ल्यू.एल. के संदर्भ सहित क्षेत्रीय एवं स्थानीय उल्का जल रेखाओं का स्थापन करने का प्रयास किया है। जिससे भारतवर्ष तथा विभिन्न क्षेत्रों के लिए आई.एम.डब्ल्यू.एल. एवं आर.एम.डब्ल्यू.एल. की स्थापना होने पर जल संसाधनों की विभिन्न समस्याओं के निराकरण से संबंधित अध्ययनों को समस्थानिकों की मदद से आसानी से प्लान किया जा सकता है।
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