वर्षा जल का मोल समझाया

एक स्वस्थ समाज स्वस्थ जलग्रहण व्यवस्था के बिना लंबे अर्से तक नहीं टिक सकता है। इस साधारण सच को गोर्डम ब्राउन ने सन् 1964 में ही समझ लिया था। इन्होंने मोरल रियरमामेंट सेंटर के निर्माण के नक्शे में वर्षाजल संग्रहण की अवधारणा को शामिल किया। यह सेंटर महाराष्ट्र स्थित पुणे से 150 किलोमीटर की दूरी पर पंचगनी के क्षेत्र में बनाया गया है। यह राजमोहन गांधी और देश के अन्य भागों के व्यक्तियों द्वारा चलाए गए आंदोलन का एक हिस्सा था, जिससे लोगों में फिर से नैतिक मूल्य पिरोए जा सकें।

इस सेंटर के ढांचे का नक्शा ही अपने आप में इसका जवाब है। इसके परिसर का क्षेत्र पंचगनी की पहाड़ियों पर स्थित है। जब इसका पहला ढांचा बनाया गया था, उस समय इसमें तीन तालाबों का निर्माण किया गया था, जिनमें प्रत्येक में पानी ग्रहण करने की क्षमता एक लाख लीटर की थी। इसके एक तालाब को दो हिस्सों में बांटा गया। रॉक व्यू इमारत में पुस्तकालय है,जिसे इनके एक तालाब के ऊपर बनाया गया है। इनके सुराख ढके हुए हैं। जिसे टैंकों को साफ करने के लिए खोला जा सकता है।

इनमें जो पानी एकत्रित होता है, उसका पूरे साल पेयजल के अलावा अन्य उद्देश्यों के लिए भी उपयोग किया जाता है। इसमें पानी की निरंतर रूप से जांच की जाती है। पाइपों को छत से लेकर भूतल जल के ढांचे के साथ जोड़ा जाता है, जहां वर्षा जल का पानी जमा होने के लिए नीचे पहुंचता रहता है इस टैंक के ऊपर एक सभा भवन भी बनाया गया है। नहाने में भी इस टैंक के पानी का उपयोग किया जाता है। सेंटर के बागानों में इसके गंदे पानी का उपयोग होता है।

इस सेंटर का ढांचा एक ऐसा जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिससे लोगों की आर्थिक, सांस्कृतिक तथा नैतिक जरूरतें पूरी हो सकें। साथ ही स्थाई जल संग्रहण के चलन भी बरकरार रहें क्योंकि इनका कोई कहीं भी अमल कर सकता है।

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें : मोरल रियरमामेंट सेंटर एशिया प्लेटो, पंचगनी, महाराष्ट्र
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