वन्यजीव कॉरिडोर

 वन्यजीव कॉरिडोर
 वन्यजीव कॉरिडोर

वन्यजीव या एनिमल कॉरिडोर का अभिप्राय पशुओं हेतु दो पृथक निवास स्थानों के बीच सुरक्षित मार्ग सुनिश्चित करना। वन्य जीवन के संदर्भ में, गलियारे या कॉरिडोर मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं: कार्यात्मक और संरचनात्मक।कार्यात्मक गलियारे पशुओं के दृष्टिकोण से कार्यक्षमता के संदर्भ में परिभाषित किये जाते हैं (मूल रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ वन्यजीवों की आवाज़ाही दर्ज की गई है)।संरचनात्मक गलियारे, वनाच्छादित क्षेत्रों में निर्मित संरेखित पट्टियों को कहते हैं और ये संरचनात्मक परिदृश्य रूप से अन्य खंडित भागों को जोड़ते हैं।

जब संरचनात्मक गलियारे मानवजनित गतिविधियों से प्रभावित होते हैं, तो कार्यात्मक गलियारे पशुओं की आवाज़ाही के कारण स्वचालित रूप से विस्तृत हो जाते हैं।काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिज़र्व के पारिस्थितिक-संवेदनशील क्षेत्र के भीतर कम से कम तीन एनिमल कॉरिडोर पर वन भूमि, खुदाई और निर्माण गतिविधियों की मंज़ूरी से संबंधित मुद्दे सामने आए हैं।भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2019 के एक आदेश में कहा था कि "नौ संसूचित एनिमल कॉरिडोर के क्षेत्रों में निजी भूमि पर किसी भी नए निर्माण की अनुमति नहीं दी जाएगी।"सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित एक विशेष समिति ने अपनी रिपोर्ट में काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में नौ पशु गलियारों के परिसीमन की सिफारिश की थी।

नौ संसूचित पशु गलियारे हैं:असम के नागाँव ज़िले में अमगुरी, बागोरी, चिरांग, देवसूर, हरमाती, हाटीडंडी एवं कंचनजुरी तथा गोलाघाट ज़िलों में हल्दीबाड़ी और पनबारी गलियारे स्थित है।पहले से स्थित नौ गलियारे कार्यात्मक गलियारों के रूप में व्यवहार करते हैं, लेकिन नई सिफारिश के अनुसार, अब ये गलियारे आवश्यकता के आधार पर संरचनात्मक और कार्यात्मक दोनों के रूप में कार्य करेंगे।रिपोर्ट ने सुझाव दिया कि संरचनात्मक गलियारों को वानिकी और वन्यजीव प्रबंधन प्रयासों को छोड़कर सभी मानव-जनित गतिविधियों (गड़बड़ियों) से मुक्त किया जाना चाहिये।दूसरी ओर, कार्यात्मक गलियारे ( जब संरचनात्मक गलियारों में विसंगति उत्पन्न होती है तो वह महत्वपूर्ण हो सकते हैं), भूमि उपयोग में परिवर्तन पर रोक लगाने के साथ-साथ बहु-उपयोग को विनियमित कर सकते हैं।

ये गलियारे विभिन्न पशुओं जैसे:-गैंडा, हाथी, बाघ, हिरण और अन्य जानवरों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, जो मानसून अवधि के दौरान काज़ीरंगा के बाढ़ वाले क्षेत्रों से निकलकर कार्बी आंगलोंग ज़िले की पहाड़ियों के सुरक्षित मार्गो से होते हुए राजमार्ग क्षेत्रों से दूर स्थित टाइगर रिज़र्व की दक्षिणी सीमा क्षेत्रों में निवास करते हैं।मानसून अवधि समाप्त होने के बाद, ये सभी जानवर घास के मैदानों में वापस आ जाते हैं।

काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान एवं टाइगर रिज़र्वय असम राज्य में स्थित है और 42,996 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैला हुआ है।  यह ब्रह्मपुत्र घाटी के बाढ़ मैदानों में सबसे बड़ा अविभाजित और प्रतिनिधि क्षेत्र है।इस उद्यान को वर्ष 1974 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था।इसे वर्ष 2007 में बाघ आरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया। इसे वर्ष 1985 में यूनेस्को की विश्व धरोहर घोषित किया गया था।

इसे बर्डलाइफ इंटरनेशनल द्वारा एक महत्त्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र के रूप में मान्यता दी गई है।विश्व में सर्वाधिक एक सींग वाले गैंडे काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में ही पाए जाते हैं ।गैंडो की संख्या में असम के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के बाद पोबितोरा  वन्यजीव अभयारण्य का दूसरा स्थान है जबकि पोबितोरा अभयारण्य विश्व में गैंडों की उच्चतम जनसंख्या घनत्व वाला अभयारण्य है।

इस उद्यान क्षेत्र से राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-37 गुजरता है।उद्यान में लगभग 250 से अधिक मौसमी जल निकाय हैं, इसके अलावा डिपहोलू नदी इससे होकर गुजरती है।असम में स्थित अन्य राष्ट्रीय उद्यान डिब्रू-सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान,मानस राष्ट्रीय उद्यान,नामेरी राष्ट्रीय उद्यान तथा राजीव गांधी ओरंग राष्ट्रीय उद्यान हैं

प्रेषक : डॉ.दीपक कोहली , संयुक्त सचिव , पर्यावरण,वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग, उत्तर प्रदेश शासन ,5 /104, विपुल खंड, गोमती नगर,  लखनऊ - 226010 (उत्तर प्रदेश) ( मोबाइल-9454410037)

 

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Post By: Shivendra
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