वन मंत्रालय को ही नहीं पता, वन हैं क्या

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नई दिल्ली। वन क्या हैं। इस सीधे और छोटे से सवाल का जवाब पर्यावरण एवं वन मंत्रालय केपास भी नहीं है। एक आरटीआई आवेदन पर यह खुलासा हुआ है। वन मंत्रालय ने कहा है कि वनों के लिए परिभाषा पर सक्रिय विचार विमर्श चल रहा है। इसे अभी अंतिम रूप दिया जाना बाकी है। दिलचस्प यह है कि बिना किसी परिभाषा के ही मंत्रालय देश के वन क्षेत्र में इजाफा होने के दावे करता रहा है। मुंबई में रहने वाले अजय मराठे ने सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत इस बारे में जानकारी मांगी थी।

उन्होंने वनों के बारे में राज्यवार और क्षेत्रवार तुलनात्मक जानकारी देने के लिए भी कहा था, जिससे पिछले दशक में वन क्षेत्र में वृद्धि होने के बारे में जानकारी मिलती हो। मराठे ने कहा कि यह हैरान करने वाली बात है कि 30 मार्च, 2011 को अपडेट की गई वनों की कटाई और उत्सर्जन घटाने से संबंधित एक रिपोर्ट में मंत्रालय ने बताया है कि किस तरह देश में 30 लाख हेक्टेयर वन क्षेत्र पिछले दशक में बढ़ा है। ऐसा तब है, जब हम वन क्षेत्र में बिल्डरों के अतिक्रमण, तेजी से वनों के कटने जैसी खबरें रोजाना पढ़ते रहते हैं। मराठे ने कहा कि इसलिए मैंने पूछा था कि उनकी रिपोर्ट में वनों की क्या परिभाषा है, जिसके आधार पर वे वन क्षेत्र बढ़ने का दावा कर रहे हैं।

उन्होंने वनों की गुणवत्ता पर भी परिभाषा पूछी थी। उन्होंने बताया कि मंत्रालय की रिपोर्ट में वनों का क्षेत्र बढ़ाने से ध्यान हटाकर अब वनों की गुणवत्ता बढ़ाने पर केंद्रित करने के लिए कहा गया है। साथ ही पारिस्थितिकी तंत्र सुधारने की बात भी कही गई है। इसलिए मैंने उनसे वनों की गुणवत्ता के बारे में पूछा था कि यह क्या है और कैसे मापी जाती है। वहीं, मंत्रालय में वन नीति विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि जहां तक वनों के लिए परिभाषा की बात है तो हम सुप्रीम कोर्ट के 12 दिसंबर, 1996 के उस आदेश का जिक्र करेंगे, जो टीएन गोदावरमन और केंद्र सरकार व अन्य के मामले में दिया गया था।
 

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