वियतनाम : बांध को लेकर बढ़ती जागरूकता

मई में हुई विश्व विरासत समिति की एक बैठक में पाया गया कि जलविद्युत संयंत्रों, खनन और वन्य जीवों के व्यापार के खतरों के चलते, राष्ट्रीय वन की गरिमा को धक्का पहुंच रहा था। अतएव समिति ने इस राष्ट्रीय वन को प्राकृतिक विश्व विरासत का दर्जा देने से इन्कार कर दिया था। अंततः वियतनाम के उप प्रधानमंत्री ने परियोजनाओं के पर्यावरणीय प्रभावों की रिपोर्ट प्राप्त कर लेने और वियतनाम रिवर नेटवर्क सहित स्थानीय समूहों के दबावों के मद्देनजर इन बांधों पर रोक लगा दी। वियतनाम ने डोंग नाई नदी पर बनने वाले दो बांधों के निर्माण की योजना को इस आधार पर रद्द कर दिया क्योंकि इसकी वजह से 327 हेक्टेयर जंगल नष्ट हो रहे थे। इसमें से 128 हेक्टेयर केट टिईन राष्ट्रीय वन का हिस्सा था परियोजना के दूरगामी प्रभाव राष्ट्रीय पार्क के अंतर्गत स्थित बाऊ-साऊ (घड़ियाल झील) वेटलैंड को भी नुकसान पहुंचाते। केट टिईन राष्ट्रीय पार्क को युनेस्को ने सन् 2001 में जीवमंडल संरक्षित क्षेत्र के रूप में मान्यता दी थी और अब यह विश्व के छः सबसे बड़े जीवमंडलों में से एक है। यहां पर दुर्लभ पौधों की करीब 1700 प्रजातियां और 700 से अधिक जानवर व चिडि़याएं मौजूद हैं, जिनमें से कई का अस्तित्व खतरे में है। वेटलैंड पर हुए रामसार सम्मेलन के तहत राष्ट्रीय वन में स्थित बाऊ-साऊ वेटलैंड का भी अंतरराष्ट्रीय महत्व का है। क्षेत्र में जलविद्युत क्षमता के विस्तार से इसका राष्ट्रीय वन का दर्जा ही खतरे में पड़ जाता।

मई में हुई विश्व विरासत समिति की एक बैठक में पाया गया कि जलविद्युत संयंत्रों, खनन और वन्य जीवों के व्यापार के खतरों के चलते, राष्ट्रीय वन की गरिमा को धक्का पहुंच रहा था। अतएव समिति ने इस राष्ट्रीय वन को प्राकृतिक विश्व विरासत का दर्जा देने से इन्कार कर दिया था। अंततः वियतनाम के उप प्रधानमंत्री ने परियोजनाओं के पर्यावरणीय प्रभावों की रिपोर्ट प्राप्त कर लेने और वियतनाम रिवर नेटवर्क सहित स्थानीय समूहों के दबावों के मद्देनजर इन बांधों पर रोक लगा दी।

इस वर्ष के प्रारंभ में वियतनाम के प्रधानमंत्री न्गुयेन रान डंग ने देशभर की सभी जलविद्युत परियोजनाओं में बांध सुरक्षा बढ़ाने के लिए निर्देश दिए थे। प्रधानमंत्री की यह घोषणा 190 मेगावाट विद्युत उत्पादन क्षमता वाले सांग ट्रांह- 2 विद्युत परियोजना काम्प्लेक्स को लेकर हुई थी, जिसमें जलाशय की क्षमता या भूकंप की स्थिति में इसकी स्थिरता का ठीक से आंकलन न होने की बात सामने आई थी। सन् 2011 से सांग थान्ह बांध में भूकंप के झटकों की झड़ी सी लग गई है, जिसने गाँवों को तबाह कर दिया था। इस घटना से ग्रामीण भी घबड़ाए हुए हैं।इसी वर्ष जून में गिआ-लाई के मध्य उच्च क्षेत्र में केरी-2 बांध के ध्वस्त होने से बांधों की सुरक्षा पर पुनः प्रश्नचिन्ह लग गया है। इस संबंध में हुई जांच से यह बात सामने आई है कि बांध का निर्माण स्वीकृत डिजाइन के अनुरूप नहीं हुआ था। इस बांध में अंदर के ढांचे को 20 सेंटीमीटर मोटी सीमेंट की परत से ढकने के बजाए इसे मिट्टी से बना दिया, इससे बांध तय योजना से बहुत कमजोर बना था। मई में वियतनाम की सरकार ने परियोजना के पर्यावरणीय मानकों पर खरा न उतरने पर 338 जलविद्युत परियोजनाओं को रद्द कर दिया था। उपप्रधानमंत्री के अनुसार तब से 67 अन्य जलविद्युत परियोजनाओं को या तो निलंबित या रद्द कर दिया गया है।

वियतनाम पड़ोसी देशों में निर्मित बांधों खासकर मेकांग मुख्यधारा में बनाए जा रहे बांधों से पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों की गणना और उन्हें रोकने के प्रयास भी कर रहा है। उप प्रधानमंत्री ने मेकांग देशों का आह्वान किया है कि वे वर्ष 1997 के सं.रा. वाटरकोर्स सम्मेलन का अनुमोदन करें जो सन् 1995 के ऐसे मेकांग समझौते की तरह नहीं है जिसमें कि लाओस के झायाबुरी बांध से वियतनाम और कंबोडि़या पर पड़ने वाले प्रभावों को संज्ञान में ही नहीं लिया गया था। लेकिन इस बार के समझौते में उन बांधों पर रोक लगाने का प्रावधान मौजूद है, जिससे व्यापक पैमाने पर सीमा पार प्रभाव पड़ते हों। दुर्भाग्यवश लाओस ऐसे किसी सम्मेलन के प्रति सहमति देने को तैयार नहीं है और वह क्षेत्र में अकेला ही है, जो सन् 1995 के मेकांग समझौते का अभी तक पालन कर रहा है।

जबकि दूसरी ओर वियतनाम अपने देश में वर्तमान में विद्यमान और भविष्य में पड़ोसी देशों में निर्मित होने वाले बांधों के प्रभाव व सुरक्षा प्रभावों के आंकलन को लेकर गंभीर प्रयत्न करता नजर आ रहा है। वहीं लाओस बहुत नाटकीय ढंग से मेकांग मेनस्ट्रीम में बदलाव को लेकर जबरन आगे बढ़ता जा रहा है। इस प्रक्रिया में न तो वह यह ध्यान रख रहा है कि इसका इसके पड़ोसी देशों पर क्या प्रभाव पड़ेगा और न ही इस बात का कि इन परियोजनाओं से स्वयं उसे भी न्यूनतम लाभ ही प्राप्त होगा। मई के महीने में लाओस ने मेकांग नदी आयोग (एमआरसी) और इसके सदस्य देशों की योजना के तहत दूसरी मेकांग मेनस्ट्रीम परियोजना के अंतर्गत 260 मेगावाट के डॉन साहोंग बांध की अधिसूचना जारी कर दी। पूर्व अधिसूचना पत्र के माध्यम से एम आर सी की अधिसूचना जारी कर लाओस ने एम आर सी के “पूर्व सलाह’’ की प्रक्रिया का उल्लंघन किया है और यह एमआरसी सचिवालय एवं अंतरराष्ट्रीय दानदाता राष्ट्रों द्वारा जारी उस वक्तव्य के भी खिलाफ कार्य कर रहा, जिसमें विचार-विमर्श और आंचलिक स्तर पर निर्णय लेने को कहा गया था।

यदि साहोंग बांध बन गया तो इससे सूखे मौसम में मेकांग में उपलब्ध मछलियों के आने जाने का एकमात्र रास्ता बाधित हो जाएगा, जिससे विश्व में सबसे विशाल आंतरिक मछली मारने का व्यवसाय न केवल जोखिम में पड़ जाएगा बल्कि वियतनाम और कंबोडिया जैसे देशों के खाद्य संकट में फंस जाने का खतरा भी पैदा हो जाएगा।

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