लाॅकडाउन के कारण आज हमें जैव विविधता स्वच्छ और पर्यावरण खिला हुआ दिखाई दे रहा है। हो सकता है, ‘हमें उतना ही पता हो, जिनता हम देखना चाहते हैं या विभिन्न संचार माध्यम हमें दिखाना चाहते हैं ?’’ लेकिन जितना भी सकारात्मक बदलाव फिलहाल लाॅकडाउन के कारण दिखाई दे रहा है, वो अस्थायी है। ये बदलाव कुछ दिन के लिए है। सब कुछ सामान्य होते ही प्रकृति में ज़हर घोलने की प्रक्रिया फिर से प्रारंभ हो जाएगी। जिसका प्रभाव बड़े पैमाने पर इंसानों सहित जलस्रोतों, हवा और जीव-जंतुओं पर पड़ेगा। कई स्थानों पर इसका असर दिखने भी लगा है। इन इलाकों में मैदान ही नहीं बल्कि पहाड़ी राज्य भी शामिल हैं, जहां गर्मियां शुरु होते ही जैव विविधता की अहम कड़ी माने जाने वाले पक्षी बूंद बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं।
जैव विविधता किसी भी स्थान पर प्राकृतिक परिवेश को बनाए रखने के लिए बेहद जरूरी है। क्षेत्र की विभिन्नता और पर्यावरण की अलौकिकता का अंदाजा स्थान विशेष की जैव विविधता से आसानी से लगाया जा सकता है। क्योंकि जैव विविधता न केवल अनुकूल व समृद्ध वातावरण उपलब्ध कराती है, बल्कि जलस्रोतों का विकास भी होता है, जो भविष्य के लिए विभिन्न आयाम खोलता है। एक प्रकार से जैव विविधता और जल एक दूसरे के पूरक हैं। जैव विविधता पर ही जल निर्भर करता है, लेकिन अब जैव विविधता खतरे में है। जैव विविधता के कम होने से जल संकट खड़ा हो रहा है। इसने उन जीव-जंतुओं के लिए पानी की समस्या खड़ी कर दी है, जो प्रत्यक्ष तौर पर विभिन्न स्रोतों पर निर्भर हैं। कई लोगों का मानना है कि मौसम की अनिश्चितता और तापमान में उतार-चढ़ाव के कारण जलवायु परिवर्तन की घटनाएं हो रही हैं, जिससे जैव विविधता घट रही है, लेकिन इसका सबसे बड़ा कारण लगातार बढ़ता प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग और वनों का कटान है। इन सभी को बढ़ावा दे रही है तेजी से बढ़ती आबादी और शहरीकरण। आबादी बढ़ने से प्राकृतिक स्रोतों पर अतिरिक्त दबाव पड़ रहा है, लेकिन अनियोजित विकास का ढांचा पहले ही अधिकांश प्राकृतिक जल स्रोतों को सुखा चुका है।
जलस्रोतों के सूखने से इसानों के लिए दूर-दराज के इलाकों से पेयजल लाइनों के माध्यम से पानी की व्यवस्था की जाती है। फिर भी समस्या आए तो पानी के टैंकर मंगवाए जाते हैं। कोई पेयजल योजनाओं के लिए बांधों से पानी खींच रहा है, तो कोई अंतिम सांस लेती नदियों से। जहां साफ पानी के पर्याप्त स्रोत उपलब्ध नहीं हैं, वहां गंदे पानी का प्रबंधन करके लोगों की पानी संबंधी जरूरतों को पूरा किया जा रहा है, लेकिन जीव-जंतु, पक्षी आदि इससे वंचित रह जाते हैं। इन्हें नदियों और स्रोतों से ही पानी नसीब होता है। जंगल में पानी की व्यवस्था के लिए चाल, खाल और खंतियां बनाए जाते हैं, जो बरसात में भर जाते हैं और जानवरों के लिए पानी की जरूरतों को पूरा करते हैं, लेकिन बरसात तक विभिन्न स्रोत सूखे होने के चलते जीव पानी पीने कहां जाएं ? कुछ स्रोतों में पानी बचा भी होता है, तो भीषण गर्मी के कारण वे सूख जाते हैं। जैसा कि अधिकांश इलाकों में होता है। उत्तराखंड में ऐसा ही हो रहा है। राज्य की राजधानी देहरादून में डिहाइड्रेशन के कारण पक्षी बेहोश होकर गिर रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में सभी स्रोत सूख गए हैं। यहां जीव जंतुओं व इंसानों के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी है, लेकिन रिस्पना, बिंदाल जैसी नदियां दून घाटी में नाला बन गई हैं, जिसमें न केवल घरों से निकलने वाला सीवरेज मिलता है, बल्कि उद्योगों से निकलने वाला कैमिकल भी बहाया जाता है। ये जहरीला पानी सीधे जाकर गंगा नदी में मिल जाता है, जो विभिन्न बीमारियों का कारण बन रहा है। ऐसे पानी को भला कौन-सा जीव पानी पीएगा ? जानवर तो इंसानों की तरह गंदे पानी को ट्रीट भी नहीं कर सकते हैं। देहरादून के एक स्वतंत्र पत्रकार मनमीत ने अपनी फेसबुक पर लिखा कि ‘‘दुनिया भर की जैव विविधता को कोरोना संकट के चलते ऑक्सीजन मिली है। लेकिन, इसी जैव विविधता में सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले पक्षी फिर भी संकट में हैं। देहरादून में संरक्षित प्रजाति के बाज और कौवे जमीन पर बेहोश होकर गिर रहे हैं। गत साल भी सैकड़ों बाज और कौवे देहरादून के बंजारावाला सहसधारा रोड डालनवाला आदि इलाकों में गिरकर मर गए थे। इस साल भी पारा जैसे ही 35 से पर हुआ, पक्षी डिहाइड्रेशन का शिकार हो रहे हैं। आज दोपहर को मैं किसी काम से सहस्त्रधारा रोड की तरफ जा रहा था कि उषा काॅलोनी के बाहर सड़क के बीच में एक के बाद कई कौवे बेहोश मिले। उनमें से कुछ को उठाकर मैंने और मेरे साथी गौरव असवाल ने पानी पिला दिया और उनकी जिंदगी बच भी गई। लेकिन ऐसे सैकड़ों पक्षी दून में प्यासे हैं। जिनको इंसानी मदद की जरूरत है। इंसानी मदद की इसलिए भी क्योंकि उनको इस हाल तक पहुंचाने का कारण भी इंसान ही हैं।’’ मनमीत लिखते हैं कि ‘‘मैंने कुछ विशेषज्ञों से बात की है। उन्होंने इसका कारण डिहाइड्रेशन बताया। मतलब, बाजों और कौवों को प्रयाप्त पानी पीने को नहीं मिल रहा। जिस कारण कई बाज देहरादून से कहीं और शिफ्ट भी हो गये हैं। जो शिफ्ट नहीं हुये, वो प्यास से मर रहे हैं। विशेषज्ञ ये भी बताते हैं कि पहले दून के बीचों बीच बहुत जलधाराएं थी। जैसे ईसी रोड, कैनाल रोड, डब्ल्यूसी रोड आदि। ये सभी नहर थी, जो अब अंडरग्राउंड हो गई है। यानी पूरा शहर कंक्रीट हो गया है।’’
कांक्रीटीकरण का कार्य पूरे विश्व में चल रहा है। इंसान की आबादी को आबाद करने के लिए हमने प्रकृति की आबादी और धरोहरों को बर्बाद कर दिया है। नजीजतन, जीव-जंतु और प्राकृतिक धरों जैसे वन संपदा, तालाब, झील व नदियां इतनी तेजी से समाप्त हो रहे हैं कि इंसान दुनिया में अकेला पड़ने लगा है। इंसान इस अकेलेपन से फिर भी जागरुक नहीं हो रहा है और इसे अपनी जीत समझ रहा है। परिणामतः जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग जैसी घटनाओं में तेजी से होने लगी हैं, जो एक प्रकार से धरती की भौगोलिक परिस्थितियों को बदल रही हैं। सैंकड़ों दुर्लभ प्रजातियां नष्ट हो चुकी हैं। वास्तव में, हम इंसानी अस्तित्व को खत्म करने की ओर बढ़ रहे हैं। ऐसे में पृथ्वी और इंसान को बचाने के लिए हमें अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना होगा। जैव विविधता का संरक्षण करना इंसान का कर्तव्य और समृद्ध भविष्य की जरूरत है। हमारे अस्तित्व के लिए जरूरी है।
हिमांशु भट्ट (8057170025)
/articles/vaisava-jaaiva-vaivaidhataa-daivasah-baina-paanai-kaaisae-bacaaengae-jaaiva-vaivaidhataa