हर तरफ कहा जा रहा है कि गंगा खतरे में है। पर पर्यावरण मंत्रालय यह कह रहा है कि ग्लेशियरों को कोई खतरा नहीं है या जल्दी नहीं सूखने वाले हैं। गंगा उद्गम पर ही खतरे में है यह बात गंगा की कई सहायक नदियों के विलुप्त या सूख जाने के कारण साफ तौर पर कही जा सकती है। ग्लेशियर में सिर्फ गंगोत्री ग्लेशियर की बात करने से काम नहीं चलेगा। गणेशगंगा, गरूड़गंगा, ऋषिगंगा, रूद्र गंगा, धवलगंगा, विरहीगंगा, खाण्डवगंगा, आकाशगंगा, नवग्राम गंगा आदि- आदि गंगाएं ही गंगा को सम्पूर्ण रूप प्रदान करती हैं। इन गंगाओं के ग्लेशियर को भी बचाना गंगोत्री ग्लेशियर के बचाने जैसा ही महत्व का है। इनके ग्लेशियर गायब होना क्या गंगा के ग्लेशियर गायब होना नहीं है।
पौराणिक साहित्य में गंगा अस्त
गंगा की उत्पत्ति ‘गां गता’ शब्द से हुई है इसका अर्थ होता है जो पृथ्वी की ओर गयी (बराह पुराण अध्याय-82)। भागवत में भी यह आख्यान है जिसमें गंगा कहती है मेरा प्रचण्ड बेग कौन धारण करेगा? (भागवत 9/9/4 व 7) इस आधार पर भी शीघ्र गमन के कारण ही गंगा नाम प्रतीत होता है। केदारखण्ड में भी शिव पार्वती से कहते हैं कि-
मया मुक्तापि सा धारा श्री मुखे गिरौ ।
तस्या प्रवाह वेगेन खण्डिता वहवोSद्रव ।।
(केदारखण्ड 35/41)
मेरे द्वारा छोड़ी गयी गंगा की धारा श्रीमुख नाम के पर्वत के ऊपर अवतरित हुयी। गंगा के प्रवाह के वेग से बहुत सारे पर्वत खण्डित हो गये। गंगा शीघ्रगामी हैं। वेदों में गंगा को ‘त्रिपथगा’ और ‘त्रिपथगामिनी’ (ऋग्वेद 6/61/17) व (ऋग्वेद 8/85/1) कहा है जिसका अभिप्राय होता है ऊर्ध्वगामी, मध्यगामी व अधोगामी अथवा स्वर्ग, मर्त्य और पाताललोक गामिनी। गंगा का उद्भव स्वर्ग से हुआ है, मृत्युलोक में आने से पहले गंगा स्वर्ग में प्रवाहमान थी। भगीरथ गंगा पितरों के उद्धार के लिए मृत्युलोक लाये। जब वो गंगा को पृथ्वी पर ला रहे थे तो रास्ते में नागों ने गंगा को पाताल लोक ले जाने के लिये सहस्रनाम से गंगा की स्तुति की। नागों पर प्रसन्न गंगा पाताललोक चलने के लिये तैयार हो गयी और भगीरथ से विदा लेने लगीं, लेकिन बड़ी कारुणिक प्रार्थना और विकट प्रयासों के कारण ही भगीरथ वापस गंगा को धरती पर लाने में सफल हो पाये परन्तु गंगा नागों को वरदान दें गयीं कि-
कलेर्द्वितीय पादे तु गमिष्यामि पुनस्तले ।
(केदारखण्ड 39/14)अर्थात कलियुग के द्वितीय चरण में मैं पाताल चली जाऊंगी। वैसे भी सतयुग-त्रेता में गंगा स्वर्ग में रहीं, त्रेता-द्वापर में पृथ्वी पर और कलियुग में गंगा का निवास पाताल में है इसलिये शीघ्रगामी गंगा का पाताल जाना सुनिश्चित है।
अब मान लो वैज्ञानिक लोगों को ये बातें सब झूठ और बकवास लगती हों, परन्तु इससे सच तो नहीं बदल जायेगा। आखिर सच तो एक दर्पण है जिसको हम बार बार निहारते हैं आइये जरा सच के दर्पण में गंगा जी की इन धाराओं को निहारें-
गंगा की प्रमुख धाराओं की वर्तमान स्थिति
(जेष्ठ शुक्ला दशमी गंगा दशहरा संवत 2058 विक्रमी)
क्रसं |
नाम गंगा |
उद्गम स्थान |
मुख्य धारा में संगम |
वर्तमान स्थिति |
1 |
गणेशगंगा (पाताल गंगा) |
गणेश पर्वत |
टंगणी |
सूख गयी है |
2 |
गरूड़गंगा |
विल्लेश्वर |
पाखी |
सूख गयी है |
3 |
ऋषिगंगा |
नीलकंठ पर्वत |
बदरीनाथ |
जल स्तर तेजी से गिर रहा है |
4 |
रूद्र गंगा |
रूद्र पर्वत |
जोशीमठ |
विलुप्त |
5 |
धवलगंगा |
नीती दर्रा |
विष्णुप्रयाग |
जल स्तर में कमी आ रही है |
6 |
विरहीगंगा |
नन्दाघुंघटी |
विरही |
जल स्तर में कमी आ रही है |
7 |
खाण्डवगंगा |
कठूलस्यूं |
भिल्लकेदार |
विलुप्त |
8 |
आकाशगंगा |
तुंगनाथ शिखर |
मनसूना |
जल स्तर में कमी आ रही है |
9 |
नवग्राम गंगा |
दशरथ पर्वत |
व्यास घाट |
विलुप्त |
10 |
शीर्षगंगा |
दशरथ पर्वत |
व्यास घाट |
विलुप्त |
11 |
कोट गंगा |
दशरथ पर्वत |
व्यासघाट |
विलुप्त |
12 |
गूलर गंगा |
नीलकंठ पर्वत |
वशिष्ठगुहा |
जल स्तर में कमी आ रही है |
13 |
हेम गंगा |
सुरखण्डा के समीप |
शिवपुरी |
सूख गयी है। |
14 |
हेमवती गंगा |
सुरखण्डा के समीप |
फूलचट्टी |
विलुप्त |
15 |
हनुमान गंगा |
वनराचल हिमशिखर |
हनुमानचट्टी के निकट |
जल स्तर में कमी आ रही है |
16 |
सिद्धतरंग गंगा |
सिद्धकूट पर्वत |
हनुमानचट्टी के निकट |
जल स्तर में कमी आ रही है |
17 |
शुद्धतरंगिणिगंगा |
कूट पर्वत |
सुधा तीर्थ |
विलुप्त |
18 |
धेनु गंगा |
धेनु वन |
विन्दाल |
विलुप्त |
19 |
सोमगंगा |
वासुकी ताल |
सोमप्रयाग |
विलुप्त |
20 |
अमृत गंगा |
कीलाचल पर्वत |
मण्डल |
जल स्तर में कमी आ रही है |
21 |
कंचन गंगा |
कुबेर पर्वत |
बदरीनाथ |
वनस्पति के तीब्र विदोहन से स्लाइड बढ़ गया है |
22 |
लक्ष्मणगंगा |
लोकपाल |
पाण्डुकेश्वर के निकट |
जल स्तर में कमी आ रही है |
23 |
हेम गंगा |
हिमदाव आश्रम |
भट्टगांव के निकट |
विलुप्त |
24 |
दुग्ध गंगा |
प्रताप नगर की पहाड़ी |
रामपुर |
विलुप्त |
25 |
घृत गंगा |
टिहरी के समीपस्थ पहाड़ी |
टिहरी |
विलुप्त |
26 |
प.रामगंगा |
दूधातोली |
टिहरी |
तेजी से सूख रही है |
27 |
केदार गंगा |
केदार शिखर |
गंगोत्री |
जलस्तर में कमी |
गंगा की उपरोक्त 27 धाराओं में से 11 धारायें धरा से विलुप्त हो चुकी हैं। पांच सूख गयी हैं और ग्यारह के जलस्तर में तेजी से कमी आ रही है।
पहले गंगा में कितना अधिक पानी रहा होगा इसका अन्दाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ऋग्वैदिक ऋषि गंगा को सिन्धु कहते थे सिन्धु का अर्थ होता है समुद्र अर्थात गंगा में समुद्र के समान अथाह जलराशि थी। जिसका आंकलन वे समुद्र के समान करते थे। गंगा की 7 मुख्य धारायें सरस्वती (गंगा), धवला या श्वेता (धौली), रसा (नन्दाकिनी), क्रमू (पिण्डर), कुंभा (मन्दाकिनी), ध्वस्त्रा-परूष्णी (नयार या नबालका) और जान्हवी प्रमुख थीं जिन्हें सप्तसिंधु के नाम से पुकारा जाता था। इसलिये इस सम्पूर्ण प्रदेश को सप्तसिन्धु कहा जाता था।
नदी निनाद कर (ध्वनि से) बहती है, यह निनाद जल के तीब्रगति से बहने का है। जो मनुष्य, पशु, पक्षियों और जीव जंतुओं को सावधान करने वाला होता है कि मैं प्रचण्ड बेग से बह रही हूं तुम मुझे रोंदकर (चलकर) पार नहीं कर सकते। ऐसा शब्द करने वाली जलधारा को ही नदी का नाम दिया जाता है। इस आधार पर हमारे पूर्वजों ने नदियों और (नालों) गधेरों को अलग-अलग भागों में बांटा है। यहां ऐसी जलधाराओं को नदी की मान्यता कभी नहीं मिली जिनको व्यक्ति चलकर पार कर जाता था। केवल प्रचण्ड बेगवाल जलधाराओं को ही नदी का नाम दिया गया और गंदली जल धाराओं को गधेरे का नाम दिया गया। लेकिन आज सप्त सिन्धु की प्रमुख नदियां भी नालों के रूप में परिणित हो रही हैं। ऋग्वेद में सप्तसिंधु प्रदेश में (वैदिककाल में) सात (ऋग्वेद 6/7/6), 37 (ऋग्वेद 10/64/8), 90 (ऋग्वेद 1/121/13) तथा 99 (ऋग्वेद 1/32/14) व (ऋग्वेद 10/104/8) नदियों का वर्णन है। लेकिन पौराणिक काल आते आते इन 233 धाराओं में से अधिकांश लुप्त हो गयीं। अकेले गढ़वाल क्षेत्र में केदारखण्ड (जिसे विद्वानों ने एक हजार साल पुराना माना है। कालीन नदियों की स्थिति निम्न है –
देवभूमि में पतित पावन नदियों की वर्तमान स्थिति
(गंगा दशहरा संवत 2058 विक्रमी)
क्रसं |
नाम नदी |
उद्गम स्थान |
संगम स्थान |
वर्तमान स्थिति |
|
1 |
भागीरथी |
गोमुख हिमानी |
देवप्रयाग |
जलस्तर में कमी |
|
2 |
केदारगंगा |
केदार शिखर |
गंगोत्री |
जलस्तर में कमी |
|
3 |
जान्हवी |
जान्हवी हिमानी |
भैरवघाटी |
जलस्तर में कमी |
|
4 |
असगाड़ |
डोड़ीताल |
गंगोरी |
जलस्तर में कमी |
|
5 |
कोटि नदी |
चम्बा की पहाड़ियां |
भागवतपुर |
विलुप्त |
|
6 |
जलकुर नदी |
मुखेम की पहाड़ियां |
भाल्डियाना |
विलुप्त |
|
7 |
सिरांई नदी |
नागराजधार |
सिराई |
विलुप्त |
|
8 |
मैताकी नदी |
सार्जुला की पहाड़ियां |
आडट लैफ्ट |
विलुप्त |
|
9 |
पलास्की नदी |
आलावाड़ी |
प्लासू |
विलुप्त |
|
10 |
उप्पूगाड़ |
काणाताल |
उप्पूग्राम |
विलुप्त |
|
11 |
गड़गाड़ |
धौलीधार |
गड़देवता |
विलुप्त |
|
12 |
संयांसू नदी |
कमान्द की पहाड़ियां |
स्यांसू ग्राम |
विलुप्त |
|
13 |
धरासू नदी |
दस्की की पहाड़ियां |
धरासू |
जलस्तर में कमी |
|
14 |
नाकुरी नदी |
नाकुरी की पहाड़ियां |
नाकुरी के समीप |
जलस्तर में कमी |
|
15 |
भिलंगना |
भिलंड्गण पर्वत |
टिहरी |
जलस्तर में कमी |
|
16 |
धन्यार नदी |
चन्द्रवदनी की पहाड़ियां |
मार्सो |
जलस्तर में कमी |
|
17 |
अलकन्नदा |
सतोपंथ |
देवप्रयाग |
जलस्तर में कमी |
|
18 |
सरस्वती |
देवताल |
माणा |
जलस्तर में कमी |
|
19 |
नन्दाकिनी |
त्रिशूलपर्वत |
नन्दप्रयाग |
जलस्तर में कमी |
|
20 |
पिण्डर |
पिण्डारी ग्लेशियर |
कर्णप्रयाग |
जलस्तर में कमी |
|
21 |
मन्दाकिनी |
केदार शिखर |
रूद्रप्रयाग |
जलस्तर में कमी |
|
22 |
हर्षवती |
बछणस्यूं |
खांकरा(कूलप्रयाग) |
विलुप्त |
|
23 |
चित्रवती |
क्षीर सुत पर्वत |
पन्तग्राम |
विलुप्त |
|
24 |
कटकवती |
गोलक्ष पर्वत |
घसिया महादेव |
विलुप्त |
|
25 |
ढोंडकी |
गणेशपर्वत |
ढुण्डरी प्रयाग |
विलुप्त |
|
26 |
पट्टवती |
- |
जगदीश प्रयाग |
विलुप्त |
|
27 |
चन्द्रभागा |
चन्द्रवदनी |
भलेगांव |
सूख गयी है |
|
28 |
सीताधारा |
- |
कुलासू |
विलुप्त |
|
29 |
देववाहिनी |
- |
देवानीगाड़ |
विलुप्त |
|
30 |
धनवती |
धनेश्वरमंदिर |
देवप्रयाग |
विलुपत |
|
31 |
सरस्वती |
मदमहेश्वर सरस्वती कुण्ड |
कालीमठ के समीप |
जलस्तर में कमी |
|
32 |
नन्दा |
नन्दीकुण्ड |
सरस्वती नदी में |
जलस्तर में कमी |
|
33 |
मरखण्डा |
चौखम्बा की पहाड़ियां |
बनतोली |
जलस्तर में कमी |
|
34 |
क्यारगाड़ |
विसुड़ीताल |
क्यरगड़ |
विलुप्त |
|
35 |
भीमसीगाड़ |
मद्य केदार डांडा |
रांसी-गोंडार |
जलस्तर में कमी |
|
36 |
काकड़गाड़ |
भीरी के समीप की पहाड़ियों पर |
भीरी |
सूख गयी है |
|
37 |
चन्द्रभागा |
भीरी के समीप की पहाड़ियों पर |
चन्द्रपुरी |
सूख रही है |
|
38 |
अलसतरंगंणी |
लस्तर पर्वत |
सूर्य प्रयाग |
सूख रही है |
|
39 |
शान्ता |
दशरथ पर्वत |
देवप्रयाग |
विलुप्त |
|
40 |
वर्णिता |
दशरथ पर्वत |
देवप्रयाग से आगे |
विलुप्त |
|
41 |
वर्णिजा |
दशरथ पर्वत |
देवप्रयाग के समीप |
विलुप्त |
|
42 |
ऐन्दी(रिन्दी) |
दशरथ पर्वत |
देवप्रयाग के समीप |
विलुप्त |
|
43 |
नयार |
दूधातोली |
व्यासघाट इन्द्रप्रयाग |
जलस्तर में कमी |
|
44 |
काण्डीगाड़ |
दूधातोली पर्वत |
व्यासघाट काण्डी चट्टी |
विलुप्त |
|
45 |
सेमल गाड़ |
दूधातोली पर्वत |
सेमलचट्टी |
विलुप्त |
|
46 |
रूद्रगाड़ |
दूधातोली पर्वत |
बन्दरभेल |
विलुप्त |
|
47 |
खैड़ा |
बन्दर भेल |
बन्दरभेल |
विलुप्त |
|
48 |
विजनी |
बन्दर भेल |
छोटी विजनी |
विलुप्त |
|
49 |
मधुमती |
मणिकूट पर्वत |
मणिभद्रा |
विलुप्त |
|
50 |
रूद्रधारा |
मणिकूट पर्वत |
गूलरचट्टी के समीप |
विलुप्त |
|
51 |
पंड्कजा (चन्द्रभद्रा) |
विष्णुकूट पर्वत |
मणिभद्रा में |
विलुप्त |
|
52 |
नन्दिनी |
ब्रह्मकूट पर्वत |
मणिभद्रा में |
विलुप्त |
|
53 |
मणिभद्रा |
नीलकण्ठ पर्वत |
गूलर चट्टी |
सूख रही है |
|
54 |
गणधारा |
गणकुंजरपर्वत |
गरूड़चट्टी के समीप |
जलस्तर में कमी |
|
55 |
चन्द्रवती |
गणकुंजरपर्वत |
गरूड़चट्टी |
जलस्तर में कमी |
|
56 |
सुवन |
गणकुंजरपर्वत |
गरूड़ चट्टी |
विलुप्त |
|
57 |
शाकिनी |
गणकुंजरपर्वत |
गरूड़चट्टी |
जलस्तर में कमी |
|
58 |
यमुना |
बन्दरपुंछ |
गरूड़चट्टी |
जलस्तर में कमी |
|
59 |
ब्रह्मज्वाला |
रत्नकोटि पर्वत |
हनुमानचट्टी के निकट |
जलस्तर में कमी |
|
60 |
ब्रह्मनदी |
स्फटिक पर्वत |
शुद्धतंरंगिणी में |
जलस्तर में कमी |
|
61 |
रिस्पना |
मसूरी पर्वत |
देहरादून से आगे |
सूख गयी है |
|
62 |
रूद्रभद्रा |
रुद्रपर्वत |
देहरादून से आगे |
विलुप्त |
|
63 |
चित्रवती |
कूटपर्वत |
देहरादून से आगे |
विलुप्त |
|
64 |
भस्म धारा |
कूटपर्वत |
देहरादून से आगे |
विलुप्त |
|
65 |
कामधारा |
कूटपर्वत |
देहरादून से आगे |
विलुप्त |
|
66 |
ब्रह्मधारा |
कूटपर्वत |
देहरादून से आगे |
विलुप्त |
|
67 |
देवजुष्टा |
यमनोत्री हिमशिखर |
यमुना |
जलस्तर में कमी |
|
68 |
सोसवा |
बाखारोडी के समीप |
कारंगीग्राम |
विलुप्त |
|
69 |
टोंस |
कुनलिंग हिमानी |
कालसी |
जलस्तर में कमी |
|
70 |
रूपिन |
तमसा की सहायक |
कालसी |
जलस्तर में कमी |
|
71 |
सुपिन |
तमसा की सहायक |
- |
जलस्तर में कमी |
|
इसके अतिरिक्त निम्न नदियां भी विलुप्त होने के कगार पर हैं। |
|||||
क्रसं |
नाम नदी |
उद्गम स्थान |
वर्तमान स्थिति |
|
|
72 |
हरिणी |
कैलाश पर्वत |
विलुप्त |
|
|
73 |
वायव्या |
महाहिमालय |
विलुप्त |
|
|
74 |
गण्डकी |
महाहिमालय |
विलुप्त |
|
|
75 |
सतद्रू |
पश्चिमी केदारखण्ड |
विलुप्त |
|
|
76 |
सितस्रुवा |
सुगिरि |
विलुप्त |
|
|
77 |
वरूणा |
भागीरथी का उत्तरभाग |
विलुप्त |
|
|
78 |
बालखिल्य |
तुंगनाथ शिखर |
जलस्तर में कमी |
|
|
79 |
शंखिनी |
बिल्व पर्वत |
विलुप्त |
|
|
80 |
वेत्रवती |
धेनु पर्वत |
विलुप्त |
|
|
81 |
केलिका |
धेनुपर्वत |
विलुप्त |
|
|
82 |
वाणजा |
सोमेश्वर मंदिर |
विलुप्त |
|
|
83 |
अत्रिपुत्री |
लांगूल पर्वत |
विलुप्त |
|
|
84 |
श्वेततरंगिंणी |
सिह्ल पर्वत |
विलुप्त |
|
|
85 |
करिणी |
रेणुका पर्वत |
विलुप्त |
|
|
86 |
यदुमति |
महीषखण्ड पर्वत |
विलुप्त |
|
|
87 |
दिव्यनदी |
हिमदावेश्वर |
विलुप्त |
|
|
88 |
पुण्यवती |
कुबेर पर्वत |
विलुप्त |
|
|
89 |
वैतरणी |
केदार क्षेत्र |
विलुप्त |
|
|
90 |
स्वीनगाड़ |
हरियाल पर्वत |
जलस्तर में कमी |
|
|
91 |
चन्द्रभागा |
कांडीखाल की पहाडिंया |
विलुप्त |
|
|
92 |
ऐरावती |
- |
विलुप्त |
|
|
93 |
असन |
शिवालक |
विलुप्त |
|
|
94 |
पश्चिमी रामगंगा |
दूधातोली |
जलस्तर में कमी |
|
उपरोक्त विवरण उत्तराखण्ड में जल संसाधनों की क्षरित होती स्थिति का चित्रण प्रस्तुत करता है। जो नदियां विलुप्त हो गयी हैं वहां अब सूखी खाइयां या नाले हैं। जिनमें अब केवल वर्षात के दिनों में ही पानी के दर्शन हो पाते हैं। वर्षात में भी वर्षा बंद और नाला सूखा, खाई शेष। जो नदी सूख गयी है वह अहसास कराती है कि यहां कभी सदाबहार नदी रही होगी। जो नदियां हैं और जिनका जलस्तर कम होता जा रहा है वे नाले बन गये हैं तथा गर्मियों में तो कतिपय स्थानों पर इनको चल के पार किया जा सकता है। कुल मिलाकर ऋग्वेद की सप्तसिंधु अब सिमट कर नाले और सूखे नाले का रूप लेती जा रही हैं। हां अलकनन्दा व गंगा अभी नदी के रूप में विद्यमान हैं परन्तु यही हाल रहा तो एक दिन यह गंगा भी सूख जायेगी।
दरअसल आज देवभूमि की नदियां ही नहीं सूख रही हैं बल्कि नदियों के सूखने के साथ-साथ यहां की संस्कृति भी सूख रही है। इन नदियों के किनारे वैदिक ऋषियों के गुरूकुल व आश्रम थे जिनका यज्ञ अर्घ्य आदि इन नदियों को पवित्र करता था। ऐसी पवित्र धारायें जहां मिलती वहीं संगम हो गया। हमारे प्रयाग जल की दो धाराओं का संगम मात्र ही नहीं हैं बल्कि प्रयाग वैदिक ऋषियों के ज्ञान व आध्यात्म की दो धाराओं का मिलन है जो मोक्ष बन कर ऊर्ध्वलोक को गमन करती है इसलिये गंगा को मोक्षदायिनी भी कहा जाता है। गंगा के तटों पर वैदिक ऋषि सामगान भी करते हैं। जिस कारण गंगा को वेदमाता (केदारखण्ड 38/34) वेदान्तिनी, वेदवदान्या, वेदगम्या, वेदत्रयी, वेदान्त प्रतिपादिनी, वेदान्त निलया, (केदारखण्ड 38/111) और वेदान्तिक जन प्रिया कहा गया है। कारण स्पष्ट है कि जिस शिव के डमरू से 14 स्वर सूत्र (समस्त प्रकार की विद्यायें) निकले उसी शिव की जटा से गंगा की 14 धाराओं के तटों पर बैठकर ऋषियों ने समस्त विद्याओं (ज्ञान) का स्नानकत्व प्राप्त किया। इसलिए इन 14 धाराओं का मुख्यधारा (ब्रह्मविद्या या भगवान नारायण के आश्रम से निकलने वाली अलकनन्दा) में मिलन के स्थान का प्रयाग का नाम दिया गया है। इस प्रकार देवभूमि से चतुर्दश प्रयागों वाली भारतीय संस्कृति हुयी और इसीलिये इन चतुर्दश प्रयागों को महत्ता प्राप्त हुयी।
अन्यथा दुनिया में दो जलधाराओं (नदियों) के संगम तो हजारों हैं लेकिन प्रयाग नहीं हैं। वहां पर ज्ञान व आध्यात्म की साधना नहीं हुयी है, वहां लोक कल्याण के लिये महायज्ञ नही हुये हैं, वहां पर मानव मात्र के लिये मोक्ष के द्वार नहीं खुले हैं। (महाभारत अनुशासन 108/18 को भी देखिये) वहां सिर्फ पानी इकट्ठा हुआ है, उसमें सिर्फ लौकिक उपभोग की दृष्टि है, उसमें आध्यात्म या ब्रह्म का योग नहीं है इसलिये इनकी प्रतिष्ठा भी नहीं है। इन प्रयागों पर सृष्टि और ब्रह्माण्ड के रहस्यों का अन्वेषण हुआ है इन प्रयागों में जीवन की दृष्टि विकसित हुयी है ये प्रयाग निम्न हैं-
भारतीय संस्कृति के चतुदर्श प्रयाग
क्रसं |
प्रयाग का नाम |
नदियों का नाम |
वर्तमान स्थिति |
1 |
केशवप्रयाग |
अलकनन्दा + सरस्वती |
शीत के कारण स्नान नहीं |
2 |
विष्णुप्रयाग |
अलकनन्दा + धवलगंगा |
शीत के कारण स्नान नहीं |
3 |
नन्दप्रयाग |
अलकनन्दा + नन्दाकिनी |
लगभग उपेक्षित |
4 |
कर्णप्रयाग |
अलकनन्दा + पिंडर |
केवल वैशाखी के दिन स्नान |
5 |
रूद्रप्रयाग |
अलकनन्दा + मन्दाकिनी |
स्नान दान, पूजा आदि प्रचलन में है |
6 |
देवप्रयाग |
अलकनन्दा + भागीरथी |
प्रतिष्ठित है तथा काफी भीड़ रहती है |
7 |
सोमप्रयाग |
अलकनन्दा + सोमगंगा |
शीत के कारण सन्न नहीं |
8 |
सूर्यप्रयाग |
मन्दाकिनी + अलसतरंगिंणी |
उपेक्षित अलसतरंगिंणी सूख रही है |
9 |
ढुण्डीप्रयाग |
अलकनन्दा + ढ़ोडकी |
ढ़ोंडकी सूखने के कारण प्रयाग समाप्त |
10 |
शिवप्रयाग |
अलकनन्दा + खाण्डवगंगा |
खाण्डवगंगा सूखने के कारण प्रयाग विलुप्त |
11 |
जगदीश प्रयाग |
अलकनन्दा + पट्टवती |
पट्टवती विलुप्त होने के कारण प्रयाग विलुप्त |
12 |
गणेशप्रयाग |
भगीरथी + भिलंगना |
टिहरी बांध में विलीन |
13 |
कूलप्रयाग |
अलकनन्दा + हर्षवती |
हर्षवती सूखने के कारण प्रयाग विलुप्त |
14 |
इन्द्रप्रयाग |
गंगा + नयार |
नयार का पानी गंधला होने के कारण प्रयाग विलुप्त |
उपरोक्त प्रयागों में हर्षवती, पट्टवती, खाण्डवगंगा व ढ़ोढकी नदियां सूख जाने के कारण इनके प्रयाग भी विलुप्त हो गये हैं। इन प्रयागों में अब तीर्थ व्रत, पूजा पाठ, स्नान नहीं होता। नबालका व अलसतरंगिंणी में पानी इतना कम है कि ये नदियों नालों के रूप में परिणित हैं और कम पानी के कारण ये नदियां अपनी ही गंदगी साफ करने में अक्षम हैं इसलिये ये प्रयाग तीर्थ की महत्ता खोते जा रहे हैं। गणेश प्रयाग टिहरी बांध में जल समाधि ले चुका है। केशवप्रयाग व सोमप्रयाग में संगम पर जाने तक का रास्ता नहीं बना है, इसलिये प्रचलन में नहीं हैं। नन्दप्रयाग व कर्णप्रयाग में वैशाखी के दिन ही कुछ लोग स्नान करते हैं। ऐसा ही कुछ हाल रूद्रप्रयाग का भी है। हां देवप्रयाग प्रचलन में है। लेकिन इन प्रयागों में शहरीकरण की प्रक्रिया जो जुल्म ढ़ा रही है वह किसी से छुपी बात नहीं है ( इससे भी लोग इन प्रयागों से विमुख हो रहे हैं) कारण है गंगा के प्रति भोग की दृष्टि है, उसे केवल पानी की धारा मात्र समझा जा रहा है। योग की दृष्टी नहीं है, जबकि गंगा का तो सृजन ही योग के कारण हुआ था। यही कारण है कि जब गंगा की धारायें ही लुप्त होने लगी हैं तो प्रयागों का लुप्त होना भी स्वाभाविक ही है। गंगा के प्रति दृष्टि बदली, आचार विचार व व्यवहार बदला, भोग ने गंगा के अस्तित्व को ही लीलना शुरू कर दिया है। ईश्वर न करे कि आने वाली पीढ़ी को वह दिन देखना पड़े, जब गंगा धरा से विलुप्त हो।
/articles/vailaupata-haotai-gangaa-aura-gangaaen