भविष्य में हो सकता है कि पौधों को विकास करने के लिए बहुत अधिक पानी की जरूरत न पड़े, क्योंकि पर्ड्यू यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने पौधों में आनुवांशिक परिवर्तन की खोज की है, जो कि पौधों को बायोमास की हानि के बिना बेहतर ढंग से टिकाए रख सकता है। ऐसे में पौधों को विकास करने के लिए अधिक पानी की जरूरत नहीं पड़ती है। साथ ही उसे प्रतिकूल परिस्थितियों में भी टिके रहने में मदद मिलती है।
स्टोमाटा के खुलने एवं बंद होने निर्भरता
पौधे प्राकृतिक रूप से स्टोमाटा के खुलने एवं बंद होने पर नियंत्रित होते हैं। पत्तियों के छिद्र कार्बन-डाई-ऑक्साइड ग्रहण करते हैं और पानी छोड़ते हैं। सूख जाने के बाद पानी सुरक्षित रखने के लिए पौधों का स्टोमाटा बंद हो जाता है। इसके बावजूद पौधे कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस का उत्सर्जन करते हैं और प्रकाश-संश्लेष्ण की प्रक्रिया पूरा करते हैं और विकसित होते हैं।
आनुवांशिक परिवर्तन की खोज
एसोसिएट प्रोफेसर प्रमुख शोधकर्ता माइक माइकलबर्ट ने बताया कि उन्होंने तथा उनके सहयोगियों ने अरैबिडोप्सिस थैलियाना पौधे में आनुवांशिक परिवर्तन की खोज की है, जो कि उसमें स्टोमाटा की संख्या कम करती है। इसके बावजूद कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस की मात्रा सीमित रहती है। यह जीन पौधों के लिए लाभकारी संतुलन बनाए रखता है, जिसके कारण पौधे विकास करते हैं।
कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस की मात्रा सीमित
इस शोध में माइकलबर्ट की सहायता माइक हसेगावा और स्नातक छात्र चल चुल यू ने की। माइकलबर्ट ने बताया कि यह पौधा कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस की मात्रा सीमित कर देता है। इस पौधे का सीमित स्टोमाटा पौधे के विकास के लिए सीमित कार्बन-डाई-ऑक्साइड का ही प्रयोग करता है और इसमें जल संरक्षित रहता है। इसमें अधिक देर तक जल संरक्षित रहता है। यह शोध जनरल द प्लांट सेल में प्रकाशित हुआ है। माइकलबर्ट ने बताया कि इस शोध में पता चला कि इस विशेष जीन की मदद से पौधे को हानि पहुंचे बिना वास्पोत्सर्जन भी घटता है।
गैस एनालाइजर का प्रयोग
इस शोध को पूरा करने के लिए माइकलबर्ट और यू ने इंफ्रारेड गैस एनालाइजर का प्रयोग किया। दोनों को कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस, पानी और पौधे की स्थिति का पता लगाया। उन्होंने एक चैंबर में कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस और अरैबिडोप्सिस थैलियाना पौधे को एक साथ डाला गया। पौधे द्वारा कार्बन-डाई-ऑक्साइड ग्रहण करने के बाद एनालाइजर ने अपना काम शुरू कर दिया। उन्होंने देखा कि वाष्पोत्सर्जन में पानी खत्म हो रहा था। पानी पौधों की पत्तियों के द्वारा निकल रहा था।
जीन का नाम जीएलटी1
शोधकर्ताओं ने बताया कि शोध के बाद पता चला कि जीएलटी1 जीन के कारण पौधे कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस की मात्रा तो कम नहीं कर पा रहे थे, लेकिन विकास करने के लिए उन्होंने 20 फीसदी कम पानी का उपयोग किया। इससे यह साबित हुआ कि इस जीन की मदद से पौधे विकास करने के लिए कम-से-कम पानी का प्रयोग करेंगे, क्योंकि इस जीन के कारण जल-संचयन की क्षमता बढ़ जाती है।
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