विकास संवाद द्वारा नौवाँ नेशनल मीडिया कॉन्क्लेव

तारीख : 17 से 19 जुलाई 2015
स्थान : झाबुआ,


गरीबी की स्थितियों ने यहाँ पर पलायन को विकराल रूप में पेश किया है। पलायन ने यहाँ पर सिलिकोसिस को जानलेवा बना दिया है। बच्चे बीमार हैं, कुपोषण भयानक हैं और इसके चलते बच्चे बड़ी संख्या में हर साल मरते हैं। पीने के पानी का संकट यहाँ पर फ्लोरोसिस पैदा करता है। खेती भी अब वैसी नहीं बची, इससे इलाके की पोषण सुरक्षा लगातार घटी है और उसके चलते सबसे ज्यादा जो स्थितियाँ दिखाई देती हैं वह किसी-न-किसी तरह की बीमारी के रूप में सामने आती हैं। पिछले आठ सालों से हम हर साल राष्ट्रीय मीडिया संवाद का आयोजन कर रहे हैं। इसका मकसद है जनसरोकारों के मुद्दों पर पत्रकारों के बीच एक गहन संवाद स्थापित करना है। पचमढ़ी से शुरू होकर संवाद का यह सिलसिला बांधवगढ़, चित्रकूट, महेश्वर, छतरपुर, पचमढ़ी, सुखतवा, चन्देरी तक का सफर तय कर चुका है।

इन ऐतिहासिक जगहों पर आयोजित सम्मेलनों में हमने, पत्रकारिता, कृषि, आदिवासी आदि विषयों पर बातचीत की है। इन सम्मेलनों में कई ​वरिष्ठ पत्रकार साथियों ने भागीदारी की है।

शुरुआती सालों में हमने इस संवाद को किसी एक विषय से बाँधकर नहीं रखा, लेकिन आप सभी साथियों के सुझाव पर महेश्वर से हमने इस संवाद को विषय केन्द्रित रखने की शुरुआत की। इस बार हम इस संवाद को स्वास्थ्य के विषय पर बातचीत के लिये प्रस्तावित कर रहे हैं।

स्वास्थ्य एक ऐसा विषय है जिससे हर व्यक्ति सरोकार रखता है। स्वास्थ्य पर हमारे देश में जो स्थितियाँ हैं उससे यह भी निकलता है कि देश में जनस्वास्थ्य की स्थितियाँ कमोबेश बेहतर नहीं हैं। खासकर मध्यमवर्गीय और निम्नवर्गीय समाज में बेहतर स्वास्थ्य रखना और बिगड़े हुए स्वास्थ्य को दुरुस्त करवाना खासा मुश्किल हो रहा है।

स्वास्थ्य के निजीकरण ने इस क्षेत्र को सेवा क्षेत्र से लाभ आधारित व्यवस्था का पर्याय बना दिया है। ऐसी स्थितियों में हम स्वास्थ्य के अलग-अलग आयामों को सुनना-समझना चाहते हैं। इस विषय पर बात करने के लिये हमें पश्चिमी मध्य प्रदेश का झाबुआ जिला बेहतर लगता है। यहाँ पर बैठकर संवाद करना और ज़मीनी स्थितियाँ देखना दोनों ही इस सम्मेलन को निश्चित ही सार्थकता प्रदान करेंगे।

इस बार हम आपको ले चल रहे हैं झाबुआ। झाबुआ सुनकर हमारे जेहन में दो ही तस्वीरें सामने आती हैं। एक तो इसका सांस्कृतिक आधार जिसमें भगोरिया से लेकर और भी कई रंग हैं और दूसरा इसका स्याह पक्ष, गरीब, पिछड़े और बीमारू होने का। यह देश के उन चन्द जिलों में है जहाँ कि आदिवासी आबादी 89 प्रतिशत तक है, लेकिन स्थितियाँ इतनी भयावह और डराने वाली हैं जिन्हें यहाँ पर बहुत सामान्यत: देखा, समझा जा सकता है।

गरीबी की स्थितियों ने यहाँ पर पलायन को विकराल रूप में पेश किया है। पलायन ने यहाँ पर सिलिकोसिस को जानलेवा बना दिया है। बच्चे बीमार हैं, कुपोषण भयानक हैं और इसके चलते बच्चे बड़ी संख्या में हर साल मरते हैं। पीने के पानी का संकट यहाँ पर फ्लोरोसिस पैदा करता है। खेती भी अब वैसी नहीं बची, इससे इलाके की पोषण सुरक्षा लगातार घटी है और उसके चलते सबसे ज्यादा जो स्थितियाँ दिखाई देती हैं वह किसी-न-किसी तरह की बीमारी के रूप में सामने आती हैं।

केवल झाबुआ नहीं। स्वास्थ्यगत नजरिए से जब हम देखते हैं तो हमें अगड़े माने जाने वाले सम्पन्न इलाकों में भी ऐसी ही तस्वीरें दिखाई देती हैं। वरिष्ठ पत्रकार पी साईंनाथ का एक तर्क तो यही है कि हमारा समाज और गरीब इसलिये है, हो रहा है क्योंकि हमारे यहाँ स्वास्थ्य के मद पर प्रति व्यक्ति खर्चा बहुत अधिक है।

हमारे समाज में एक ओर बीमारियों का दायरा और अधिक गम्भीर और महँगा हुआ है वहीं दूसरी ओर लोकस्वास्थ्य के लिये काम करने वाली सरकारी संस्थाएँ लगातार कमजोर हुई हैं। इससे स्वास्थ्य के निजीकरण को सीधे तौर पर प्रश्रय मिला है। स्वास्थ्य की वैकल्पिक धाराएँ भी कमजोर हुई या की गई हैं।

पिछले आठ सालों से हम मीडिया के साथ कुछ-कुछ मुद्दों पर तमाम चुनौतियों के बावजूद लगातार संवाद की प्रक्रिया को आप सभी के सहयोग से ही चला पाए हैं। जिला और क्षेत्रीय स्तर से शुरू होकर साल में एक बार हम एक बड़े समूह के रूप में बैठते हैं। आपकी सकारात्मक उर्जा ही हमें इसे और आगे ले जाने के लिये प्रेरित करती है।

तो इस बार 17-18-19 (शुक्रवार, शनिवार, रविवार) जुलाई को हम झाबुआ में मिल रहे हैं। हम अपेक्षा करते हैं कि आप पूरे तीन दिन इस समूह के साथ रहेंगे।

हम आपसे निवेदन करते हैं कि इस सम्मलेन में शरीक होना चाहते हैं तो कृपया उसकी सुचना देते हुए अपनी यात्रा का आरक्षण करवा लें। इस सम्मलेन से सम्बन्धित सूचनाओं को हम आपसे साझा करते रहेंगे।

झाबुआ के बारे में : झाबुआ पश्चिमी मध्य प्रदेश का एक आदिवासी बाहुल्य वाला जिला है। यहाँ पर बस और रेल कनेक्टिविटी उपलब्ध है। इन्दौर से यह लगभग 150 किमी की दूरी पर स्थित है। दूसरा नज़दीकी शहर गुजरात का दाहौद है। नजदीकी रेलवे स्टेशन मेघनगर है। यहाँ पर सभी प्रमुख राज्यों के लिये रेल सुविधा उपलब्ध है।

रेलगाड़ियों की सूची हम आपके साथ जल्दी ही शेयर करेंगे। आईआरसीटीसी की वेबसाइट पर भी यह उपलब्ध है।

किसी भी और जानकारी के लिये आप नीचे दिये नम्बरों पर सहर्ष सम्पर्क करें।

आपके साथी


राकेश दीवान, सौमित्र रॉय, सचिन जैन, राकेश मालवीय और विकास संवाद के साथी

9826066153, 9977958934, 8889104455, 9977704847, (0755-4252789)

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