वहाँ तो अब भी इंद्रावती

वहाँ तो अब भी इंद्रावती
शालवनों के लिए
गुनगुनाती हुई

सारी-सारी रात सुलगते पहाड़
पूरा धरती के बचपन को फिर से
सोचते हुए

और तमाम सागरतटों का शोर
इस रात को इस कदर
बेचैन करवटों में फेंकते हुए

यह कैसा शायर होना
चौकन्ना और डरा
अपने कल होने में
सारी रात छिपता हुआ।

1995

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